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जुलाई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जख्म देकर जाएँगी.

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उलझने हावी हैं दिल पर कब तलक ये जाएँगी, जिंदगी लेके रहेंगी या तहीदस्त जाएँगी. है अजब अंगेज़ हाल-ए-दिल हमारा क्या कहें, मीठी बातें उनकी हमको खाक ही कर जाएँगी. भोली सूरत चंचल आँखें खींचे हमको अपनी ओर , फसलें-ताबिस्ता में ये यकायक आग लगा जाएँगी. रवां-दवां रक्स इनका है इसी जद्दोजहद में , कैसे भी फ़ना करेंगी ले सुकून जाएँगी. सोच सोच में व्याकुल क्या करेगी ''शालिनी'' जाते जाते भी उसे ये जख्म देकर जाएँगी.                     शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com/

चोर पक्के बने हुए हैं.

जोश में खड़े हुए हैं,      हाथ इनके मुड़े हुए हैं . कवियों ने जो कवितायेँ लिखी          उनको पढने में लगे हुए हैं . चापलूस चेहरे पर अपने ,      कृत्रिम हंसी लिए हुए हैं. बाहर बाहर प्रेम दिखाकर,       भीतर भीतर जले हुए हैं. अपनी टांग को अड़ाकर,      दूसरों में फंसे हुए हैं. कहने को कवि मगर,      चोर पक्के बने हुए हैं.                            शालिनी कौशिक 

अपनी रूह होती .

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न मिलती गर जिंदगी हमें फारिग़  अपनी रूह होती, न पशेमानी कुछ न करने की न रंजीदा अपनी रूह होती . जिंदगी है इसलिए हमको मिलना  मिलकर बिछड़ना होता, ये न होती तो न रगबत कोई न तहीदस्त अपनी रूह होती. जिंदगी नाम फ़ना होने का न मय्यसर तुम्हे कुछ होगा, न ज़बूँ तुमको ही मिल पाती न खुश्क अपनी रूह होती. न होते मुबतला उजालों  में तुमको मेरे लिए मोहलत होती , तब न महदूद मेरी  उमरे-तवील तब न शाकी अपनी रूह होती. न समझो शादमां मुझको न   मसर्रत  हासिल ''शालिनी''को , बुझेगी शमा-ए-जिंदगी जिस रोज़ कर तफरीह अपनी रूह होती.                                      शालिनी कौशिक  http://shalinikaushik2.blogspot.com/   शब्द-अर्थ:-फारिग़-किसी काम से मुक्त होना, रन्जीदा-ग़मगीन, पशेमानी-शर्मिंदगी , मुब्तला-घिरा हुआ रहना, उमरे-तवील-लम्बी उम्र ,रगबत-चाहत, मसर्रत-ख़ुशी ,शादमां-खुशहाल, तफरीह-घूमना फिरना,मौज-मस्ती करना,शाकी-शिकायत करने वाला,महदूद-हदबंदी ,तहीदस्त-खाली हाथ ,ज़बूँ-जिक्र-मिठास

पर ये तन्हाई ही हमें जीना सिखाती है.

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ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,    हमें कुछ करने के काबिल बनाती  है. सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,      पर ये तन्हाई ही हमें जीना  सिखाती है. यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,           वीरान कर देते हैं जिंदगी. उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,         अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है. मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,      ये यकीं हर किसी पर होता नहीं. ये तन्हाई की ही सलाहियत है,      जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.         शालिनी कौशिक  http://shalinikaushik2.blogspot.com/

राज्यों को और अधिक शक्तियां एवं संसाधन सौंपने से राष्ट्र की उन्नति तीव्र गति से होगी

राज्यों को और अधिक शक्तियां एवं संसाधन  सौंपने से राष्ट्र की उन्नति तीव्र गति से होगी  केंद्र तथा राज्यों में शक्तियों का वितरण एक ऐसी विशेषता है जो संघात्मक संविधानों में प्रमुख है .प्रो.के.सी.व्हव्हियर के अनुसार -,''संघात्मक सिद्धांत से तात्पर्य है ,संघ व् राज्यों में शक्तियों का वितरण ऐसी रीति से किया जाये कि दोनों अपने अपने क्षेत्र में स्वतंत्र हों ,किन्तु एक दूसरे के सहयोगी भी हों.''इसका तात्पर्य यह है कि राज्यों को कुछ सीमा तक स्वायत्ता होनी चाहिए .अमेरिकन संविधान संघात्मक संविधानों का जन्म दाता है उसमे केंद्र की शक्तियां परिभाषित की गयी है ,राज्यों की नहीं  .अमेरिकन संविधान में अवशिष्ट शक्तियां राज्यों में निहित की गयी हैं .परिणाम स्वरुप राज्य अधिक शक्तिशाली थे ;किन्तु कालांतर में आवश्यकता पड़ने पर केंद्र की शक्तियां बढती गयी और राज्यों की स्वायत्ता का ह्रास होता गया वर्तमान में स्थिति यह है कि  राज्यों की स्वायत्ता नाम मात्र की रह गयी है.       भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण की जो योजना अपनाई गयी है उसमे प्रारंभ से ही के

''तेरहवीं'

''तेरहवीं'' ''पापा''अब क्या करोगे ,दीदी की शादी को महीना भर ही रह गया है और ऐसे में दादाजी की मृत्यु, ये तो बहुत बड़ा खर्चा पड़ गया ,विजय ने परेशान होते हुए अपने पापा मनोज से कहा .मनोज बोला -''बेटा;क्यों परेशान होता है ,ये तो हमारे लिए बहुत आराम का समय है .वो कैसे पापा? इसलिए न तो मैं पिताजी का वो ऐसे बेटा कीमैं तो तेरे चाचाओं  से  पहले ही कह दूंगा की मुझे तो अपनी बेटी की शादी की तैयारी करनी है इसलिए न तो मैं अंतिम संस्कार ही कर पाऊँगा और न ही इससे सम्बंधित कोई खर्चा ,वैसे भी हम वैश्य जातिऔर सभी जानते हैं की वैश्य जाति में शादी में  के हैं और सभी जानते हैं की वैश्य जाति में  शादी में कितना खर्चा होता है .पापा की बात सुन विजय के चेहरे पर भी चमक आ गयी ,तभी जैसे उसे कुछ याद आया और वह बोला ,''पर पापा चाचा तो बाबाजी के पैसे मांगेगे और कहेंगे कीहमें वे ही दे दो हम उनसे ही उनके अंतिम संस्कार  का खर्चा निकाल लेंगे ,अरे बेटा तू तो बहुत आगे की सोच रहा है ,पिताजी के पास अब कोई पैसा था ही कहाँ ,वो तो सारा ही बाँट चुके थे और रहा जो उनके बक्से में कु

एनआरआइ बच्चों और भारतवंशियों की युवा पीढ़ी को नया पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी

खुशबु(इन्द्री)  भारत अब विदेशों में बसे भारतवंशियों की जनरेशन नेक्स्ट से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश में जुट गया है। एनआरआइ बच्चों और भारतवंशियों की युवा पीढ़ी को भारतीय सभ्यता, संस्कृति से पहचान कराने के लिए सरकार इस कड़ी में एक नया पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी कर रही है। स्टडी इंडिया प्रोग्राम (एसआइपी) के सहारे 18-26 वर्ष के भारतीय मूल के विदेशी युवाओं को देश की कला, धरोहर, इतिहास के अलावा सामाजिक व आर्थिक विकास गाथा से परिचित कराने और इस देश से जुड़ी उनकी जड़ों को नया पानी देने की योजना है। इस कार्यक्रम को शक्ल देने में लगा प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय चार सप्ताह के एसआइपी के लिए विश्वविद्यालयों और बड़े शैक्षणिक संस्थानों की तलाश में जुटा है। मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि एसआइपी की अभिकल्पना एक ऐसे पाठ्यक्रम की है जिसे समर स्कूल की तर्ज पर चलाया जा सके। मंत्रालय की प्रस्तावित योजना गर्मियों और सर्दियों की छुट्टी के दौरान साल में दो बार इस पाठ्यक्रम को आयोजित करने की है, जिसमें भारतीय मूल के तीस विदेशी छात्रों का चयन किया जाएगा। मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार एसआइपी में शैक्

देख लेना तब जिस्म में रूह न रहेगी.

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इस कदर धोखे मिलेंगे ज़माने में,             तो ये जिंदगी जिंदगी न रहेगी. कैसे जी पाएंगे इस ज़माने में ,                 जो आपकी नज़रें इनायत न रहेंगी. तुमको पाने की खातिर दुनिया में,                   चाहा अनचाहा बहुत कुछ कर गए. क्या तुम मिलोगे हमें तब जाकर ,              जब इन चिरागों में रोशनी न रहेगी. अब तो चाहत है बस यही अपनी ,                 तुमको कभी कभी याद आ जाएँ हम . हमसे मिलने भी  आओगे गर तुम,                 देख लेना तब जिस्म में रूह न रहेगी. -- 

बचपन के वो पल

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बचपन के वो पल  आज बैठे बैठे बचपन की याद आ गयी.शायद मानव जीवन का सबसे खूबसूरत समय यही होता है .मनुष्य जीवन के तनावों से परे यह समय मेरी नज़रों में स्वर्णिम कहा जा सकता है .हरदम रोमांच से भरा बचपन रहा है हमारा  बिलकुल वैसे ही जैसे सीमा पर जवानों का रहता है उनको सामना करना होता है पडोसी देश की सेनाओं का तो हमें हरदम सामना करना पड़ता खतरनाक वानर सेनाओं का .होश सँभालते ही बंदरों की फ़ौज मैंने घर में देखी और घर हमारा इतने पुराने समय का बना है कि कहीं कोई रास्ता बंद नहीं था कहीं से भी बन्दर आ जा सकते थे जहाँ चलो ये देखकर चलो कहीं यहीं पर बन्दर बैठा हो .    एक बार की बात तो ये है कि जब मैं बहुत छोटी थी तो अपनी बुआजी के साथ छज्जे पर लेटी थी तो एक बन्दर मेरे ऊपर से कूद कर गया था .एक बार जब मैं कहीं बाहर से आकर केले खा रही थी तो बन्दर मेरे हाथ से केले छीन कर भाग गया था .यूँ तो हमारा एक प्यारा सा कुत्ता भी था जो बंदरों की परछाई देखकर ही भौंक पड़ता था पर हाल ये था कि  एक बार जब वह बन्दर को आगे बढ़ने से रोक रहा था तो बन्दर ने उसके मुहं पर थप्पड़ तक मार दिया था सन १९८७ में २९ मई की शाम को हमार

दलित उत्पीड़न में बिहार चौथे नंबर पर‏

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. पी एल पुनिया ने दलित वर्ग को जारी आरक्षण पर सवाल उठाने वालों की यहां जमकर खबर ली। उन्होंने कहा कि दलित समुदाय के लोगों को जितना हक मिलना चाहिए था, वह अभी तक नहीं मिल सका है। बावजूद इसके लोग उसे बीच में रोके जाने की बात करते हैं। उन्होंने न्यायपालिका में भी एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने की वकालत करते हुए कहा कि एससी-एसटी के उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद बिहार चौथे स्थान पर है। पुनिया रविवार को आयोग द्वारा पटना में आयोजित जागरूकता शिविर में बोल रहे थे। पुनिया ने कहा कि 63 साल की आजादी के बाद यह समाज आज भी गुरबत में है। करीब तीन सप्ताह पूर्व केंद्रीय योजना आयोग द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के मुताबिक पूरे देश में जितने भी गरीब हैं, उसमें आधे से अधिक दलित हैं। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी समुदाय के 75 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश की कुल आबादी में 16.2 प्रतिशत एससी एवं 8.2 प्रतिशत एसटी समुदाय की आबादी है, लेकिन उनके लिए केंद्र या राज्य स्तर पर नौकरियों में आरक्षण की

विश्व जनसँख्या दिवस

आज सुबह रेडियो मिर्ची सुन रही थी तो अनंत और सौरभ के कार्यक्रम से पता लगा कि आज विश्व जनसँख्या दिवस है .पता तो ये बहुत पहले से था तबसे जबसे इस दिन विश्व की जनसँख्या ६ अरब हो गयी थी  पर ये हम जैसे लोगों को यद् भी क्यों रहेगा जिनका परिवार पहले से ही बहुत छोटा है जब ये उन्ही लोगों को याद  नहीं रहता जिन्होंने आज देश विश्व सभी की स्थिति बहुत बिगाड़ दी है.         जब भी बचपन में कोई निबंध याद करते थे जनसँख्या से सम्बंधित तो उसमे इसके कारण में एक बड़ा कारण ''अशिक्षा''लिखा जाता था और हमें जब भी कोई अनपढ़ दिखाई देता था हम उसे देख कर देश की ख़राब स्थिति के लिए जिम्मेदार मान लेते थे  पर आज जब हमें कहने को काफी समझ आ चुकी है तब हम अपने आस पास के बहुत से ऐसे परिवार देख रहे हैं जो कहने को सुशिक्षित है,सभ्य हैं और उनके बहुत बड़े बड़े परिवार हैं.भारतीय समाज बेटे के होने तक बच्चे करता ही रहता है और अब ये लालसा इतनी आगे बढ़ चुकी है कि एक बेटा हो जाये तो कहा जाता है कि ''दो तो होने ही चाहियें''.      आज जो भारत या कहें सरे विश्व में स्थिति है उसके जिम्मेदार हमारे पूर्वजों

क्या यही प्यार है-

 क्या यही प्यार है-    ''न पीने का सलीका न पिलाने का  शऊर   ,    ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में.'' कवि गोपाल दास ''नीरज''की या पंक्तियाँ आजकल के कथित प्रेमी-प्रेमिकाओं पर शत-प्रतिशत खरी उतरती हैं .भले ही कोई मुझसे सहमत हो न हो पर अमर उजाला के आज के मुख्य पृष्ठ पर    छाये एक समाचार ''दुल्हन उठाने आया एम्.एल.सी.का बेटा ''पढ़कर मैं यही कहूँगी.      समाचार के अनुसार ''बसपा एम्.एल.सी. एवं उत्तराखंड अध्यक्ष मेघराज जरावरे का परिवार सरसावा में रहता है .बताया गया है कि उनका भतीजा सन्नी सरसावा के एक शर्मा परिवार की लड़की के पीछे पड़ा था .लड़की की शादी देवबंद के शिव चौक कायस्थ वाडा निवासी रिटायर्ड बैंक कर्मी नत्थुराम शर्मा के बेटे मोनू से गुरुवार को होनी थी .सन्नी के डर से   लड़की का परिवार शादी के लिए देवबंद पहुँच गया था आरोप है कि देर शाम जरावरे का बेटा अमित अपनी सहारनपुर के मिशन कम्पाऔन्द   निवासी  फ्रेंड पिंकी और तीन लड़कों के साथ शादी के मंडप में पंहुचा .उसने शराब पी रखी थी उसने ऐलान कर दिया कि दुल्हन उसके भाई की अमानत है ,वह उसे लेक

कर जाता है....

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कर जाता है.... दिखाता मुख की सुन्दरता,टूट जाता इक  झटके में, वहम हम रखते हैं जितने खत्म उनको कर जाता है. है हमने जब भी ये चाहा,करें पूरे वादे अपने, दिखा कर अक्स हमको ये, दफ़न उनको कर जाता है. करें हम वादे कितने भी,नहीं पूरे होते ऐसे, दिखा कर असलियत हमको, जुबां ये बंद कर जाता है  कहें वो आगे बढ़ हमसे ,करो मिलने का तुम वादा, बांध हमको मजबूरी में, दगा उनको दे जाता है.                        शालिनी कौशिक  http://shalinikaushik2.blogspot.com -- 

सभी धर्म एक हैं-ये जानो

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''बाद तारीफ़ में एक और बढ़ाने के लिए, वक़्त तो चाहिए रू-दाद सुनाने के लिए. मैं दिया करती हूँ हर रोज़ मोहब्बत का सबक़, नफ़रतो-बुग्ज़ो-हसद दिल से मिटाने के लिए.'' हमारा भारत वर्ष संविधान  द्वारा धर्म निरपेक्ष घोषित किया गया है कारण आप और हम सभी जानते हैं किन्तु स्वीकारना नहीं चाहते,कारण वही है यहाँ विभिन्न धर्मों का वास होना और धर्म आपस में तकरार की वजह न बन जाएँ इसीलिए संविधान ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया ,किन्तु जैसी कि आशंका भारत के स्वतंत्र होने पर संविधान निर्माताओं को थी अब वही घटित हो रहा है और सभी धर्मों के द्वारा अपने अनुयायियों  को अच्छी शिक्षा देने के बावजूद आज लगभग सभी धर्मों के अनुयायियों में छतीस का आंकड़ा तैयार हो चुका है.   सभी धर्मो  के प्रवर्तकों ने अपने अपने ढंग से मानव जीवन सम्बन्धी आचरणों को पवित्र बनाने के लिए अनेक उपदेश दिए हैं लेकिन यदि हम ध्यान पूर्वक देखें तो हमें पता चलेगा कि सभी धर्मों की मूल भावना एक है और सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य मानव जाति को मोक्ष प्राप्ति की और अग्रसर करना है .संक्षेप में सभी धर्मों की मौलिक एकता के प्रमुख त

पीछे देखोगे साथ में भीड़ जुट जाएगी.

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है  अगर चाहत तुम्हारी सेवा परोपकार की, तो जिंदगी समझो तुम्हारी पुरसुकूं पायेगी.  दुनिया में किसी को मिले न मिले  दुनियावी  झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी. हैं फंसे आकर अनेकों इस नरक के जाल में, मुक्ति चाह जब उनकी आत्मा तडपायेगी     . तब उन्हें देख तुमको हँसते मुस्कुराते हुए जिंदगी जीने की नयी राह एक मिल जाएगी. मोह अज्ञानवश फिर रहे भटक रहे, मौत के आगोश में गर जिंदगी जाएगी. अंत समय ज्ञान पाने की ललक को देखना इच्छा अधूरी है ये मन में दबी रह जाएगी. देख तुमको एक भी शख्स सुधर जाये अगर, सफलता खुशियाँ तुम्हारे गले लग जाएँगी. साथ पाकर एक और एक ग्यारह बनोगे पीछे देखोगे साथ में भीड़ जुट जाएगी.                शालिनी कौशिक  http://shalinikaushik2.blogspot.com

बनके ज़हर जो जिंदगी जीने नहीं देती.

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मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती, बनके ज़हर जो जिंदगी जीने नहीं देती. जी लेता है इन्सान गर्दिशी हज़ार पल, एक पल भी हमको साँस ये लेने नहीं देती. भूली हुई यादों के सहारे रहें गर हम, ये जिंदगी राहत से गुजरने नहीं देती. जीने के लिए चाहियें दो प्यार भरे दिल, दीवार बनके ये उन्हें मिलने नहीं देती. बैठे हैं इंतजार में वो मौत के अगर, आगोश में लेती उन्हें बचने नहीं देती.                       शालिनी कौशिक