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जिसकी नहीं कदर यहाँ पर ,ऐसी वो बेजान यहाँ है .

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अबला हमको कहने से ,सबकी बढती शान यहाँ है , सफल शख्सियत बने अगर हम ,सबका घटता मान यहाँ है . .................................................. बेटी घर की इज्ज़त होती ,इसलिए रह तू घर में , बेटा कहाँ फिरे भटकता ,उसका किसको ध्यान यहाँ है . ............................................................................. बहन तू मेरी बुरी नज़र से ,तुझको रोज़ बचाऊंगा , लड़का होकर क्या क्या करना ,मुझको इसका ज्ञान यहाँ है . ............................................................................................... पराया धन है तू बेटी ,तेरी ससुराल तेरा घर , दो दो घर की मालिक को ,मिलता न मकान यहाँ है . ...................................................................... बेटी वाले को बेटे पर ,खर्चे की फेहरिस्त थमा रहे , ऊँची मूंछ के रखने वाले ,बिकते सब इन्सान यहाँ हैं . ................................................................... बेटा अपना फिरे आवारा ,बहू लगा दो नौकरी पर , इतना सब करके भी नारी ,पाती बस फरमान यहाँ है . ....................................................

मात-पिता का संग मिले , -मात-पितृ दिवस की शुभकामनायें

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मात-पिता का संग मिले ,  -मात-पितृ दिवस की शुभकामनायें  पुण्योदय उस जीव का जग में,मात-पिता का संग मिले , पुण्यभूमि वह गृह धरा पर ,जिसमे इनका संग मिले . ............................................................................. मात-पिता ही सदा मनाएं ,संतानों के उत्सव को , पुण्योत्सव तो वही कहाए ,इनकी खुशियाँ संग मिलें . ............................................................................. पुण्यार्थ संतानें करती ,अनगिन कर्म ज़माने में , आदर दें इच्छा को इनकी ,पुण्य सच्चा संग मिले . ............................................................................ पुण्यशील संतान वही है ,माने न जो बोझ इन्हें , कर्तव्य न प्रभु का वर है ,जिनको इनका संग मिले . .......................................................................... श्रवण कुमार से तुलना मत कर ,राम न बनने की कोशिश , साधारण सी ख़ुशी ही दे दे ,पुलकित इनका संग मिले . ................................................................................. मात-पिता जो देते हमको ,दे न सकेंगे कभी भी हम , थोडा दें

बहन की असलियत

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''भैय्या ''भाभी का सुना ,बड़ा दुःख हुआ ,आप और दोनों बेटियां तो अब बिल्कुल अकेले ही रह गए और देखो कितने दुःख की बात है ये और मैं आ भी नहीं सकते बहुत बीमार हैं ना और इतनी उम्र में इतनी दूर आना जाना संभव भी तो नहीं है . कोई बात नहीं तुम्हारे आने से हो भी क्या जायेगा ,जो होना था सो हो गया अपना और प्रमोद जी का ध्यान रखो ,पत्नी की मृत्यु पर भाई को लखनऊ बैठी बहन उत्तरा के सांत्वना देने पर मुजफ्फरनगर बैठे भाई कुमार ने समझाते हुए कहा . दो महीने बाद ............ ''भैय्या''आप यहाँ नहीं आ रहे ?छोटे की बेटी की शादी है ,मैं और ये तो यहाँ आये हुए हैं और आपके पास भी आना चाहते हैं .आप घर पर ही मिलोगे न ? अरे नहीं उत्तरा ,कोई ज़रुरत नहीं है .....सड़के बहुत ख़राब हैं ,बेकार में तुझे और प्रमोद जी को बहुत तकलीफ होगी और मैंने पहले ही कह दिया था ,जो होना था सो हो गया ,अब ये सब बेकार की बाते हैं .तुझे कोई ज़रुरत नहीं यहाँ आने की .तू आराम से मेरठ में गीता की शादी में शामिल हो ,''मौज कर ''दिखावटी अपनापन दिखाने वाली बहन को फिर टालते हुए कुमार जी ने कहा . औ

क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो ,

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क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो , खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .  ………………………… ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में , खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो . .................................................. खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से , खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो . .................................................. करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी , फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो . .................................................. करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी , खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो . .................................................. खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो , क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो . .................................................. ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती , पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो . .................................................. खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी , खूबी को भूल

उत्तराखंड के दलितों की जय हो .

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अमर उजाला हिंदी दैनिक से साभार  ''उत्तराखंड में दलितों का ब्राह्मण विद्रोह ''समाचार पढ़कर आज वास्तव में अगर कहूं तो मन खुश हो गया . स्वयं ब्राह्मण  होते हुए मैं  उनके इस कदम की सराहना कर  रही हूँ ,कारण केवल एक आज स्वयं ब्राह्मणों ने ही ब्राह्मणत्व का नाम डुबो दिया है . जिनकी समाज में उपस्थिति ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में है और उन्होंने स्वयं को ईश्वर ही मान लिया है और अपने हर कृत्य को सही ठहराने की जैसे कसम ही खा ली है .यही नहीं आज यह समुदाय न केवल ''पेट पूजक ''बल्कि ''धन पूजक ''के रूप में भी ख्याति पा रहा है और जिसके चरण छूकर सभी अपने को धन्य मानते हैं वही आज पूंजीपतियों व् धनिकों के चरणों में झुका जा रहा है .    उत्तराखंड के दलितों ने आज इस वर्ग को चुनौती देने की ठानकर न केवल अपने वर्ग हेतु बल्कि समस्त वर्गों के लिए हितकारी कार्य किया है क्योंकि ये मात्र दलितों को ही नहीं बल्कि क्षेत्रवार भी भेदभाव की नीति अपनाते हैं .एक क्षेत्र के ब्राह्मण दूसरे क्षेत्र के ब्राह्मण को वरीयता नहीं देते .                एक अपने ही बड़ों से सुनी ब

सबक दहेज़ के दानवों को

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  मंडप भी सजा ,शहनाई बजी , आई वहां बारात भी , मेहँदी भी रची ,ढोलक भी बजी , फिर भी लुट गए अरमान सभी . समधी बात मेरी सुन लो ,अपने कानों को खोल के , होगी जयमाल ,होंगे फेरे ,जब दोगे तिजोरी खोल के . आंसू भी बहे ,पैर भी पकड़े , पर दिल पत्थर था समधी का , पगड़ी भी रख दी पैरों में , पर दिल न पिघला समधी का . सुन लो समधी ये भावुकता ,विचलित न मुझे कर पायेगी , बेटे पर खर्च जो मैंने किया ,ये मुझको न दे पायेगी . देख पिता की हालत को , बेटी का घूंघट उतर गया . सम्मान जिन्हें कल देना था , उनसे ही माथा ठन गया . सुन लो बाबूजी बात मेरी ,अब खुद की खैर मना लो तुम , पकड़ेगी पुलिस तुम्हें आकर ,खुद को खूब बचा लो तुम . सुनते ही नाम पुलिस का वे , कुछ घबराये ,कुछ सकुचाये , फिर माफ़ी मांग के जोड़े हाथ , बोले रस्मे पूरी की जाएँ . पर बेटी दिल की पक्की थी ,बाबूजी से अड़कर बोली , अब शादी न ये होगी कभी ,बोलो चाहे मीठी बोली . ए लड़की !बोलो मुँह संभाल , तू लड़की है ,कमज़ोर है , हम कर रहे बर्ताव शरीफ , समझी तू शायद और है . बेटी से ऐसी भाषा पर ,बाप का क्रोध भी उ

भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,

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भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की , संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की . ....................................................................... भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है , पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की. .................................................................................. होती है हर कली पल्लवित ,उसके आँचल के दूध से , ईश्वर के भी करे बराबर ,यह पदवी हर नारी की . ................................................................................... जितने भी इस पुरुष धरा पर ,जन्मे उसकी कोख से , उनकी स्मृति दुरुस्त कराना ,कोशिश है हर नारी की . ......................................................................... प्रेम प्यार की परिभाषा को ,गलत रूप में ढाल रहे , सही समझ दे राह दिखाना ,यही मलाहत नारी की . ............................................................................... भटके न वह मुझे देखकर ,भटके न संतान मेरी , जीवन की हर कठिन डगर पर ,इसी में मेहनत नारी की . ....................................

हे प्रभु !अब तो सद्बुद्धि दे ही दो मोदी पथभ्रष्ट को .

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हे प्रभु !अब तो सद्बुद्धि दे ही दो मोदी पथभ्रष्ट को . एक कहावत है -   '' बड़ा नाम रखकर कोई आदमी बड़ा नहीं हो जाता ,बड़ा वह होता है जो बड़े काम करता है.'' पर शायद नरेन्द्र दामोदर मोदी ने यह नहीं सुनी क्योंकि जैसे जैसे लोकसभा चुनाव के दिन नज़दीक आ रहे हैं ,भाजपा के फायर ब्रांड नेता नरेन्द्र मोदी अपना आपा खोते जा रहे हैं .ब्लीचिंग पाउडर लेकर अपने चेहरे के दाग धोने में जुटे मोदी अपनी हडबडाहट में  जो कर रहे हैं उससे उनके चेहरे पर दाग और बढ़ते जा रहे हैं और उसे लेकर वे इस कदर परेशान हैं कि अब वे हाथ पैर मारने की स्थिति में पहुँचते जा रहे हैं .कभी राहुल गाँधी को बच्चा कह अपने से कम आंकने वाले मोदी आज उनकी परिपक्वता के आगे स्वयं को हताश महसूस कर रहे हैं . और यही कारण है कि पहले गाँधी के गुजरात को मोदी के गुजरात कह उसका नाम डुबोने वाले आज अटल बिहारी वाजपेयी जैसी संतुलित ,धर्मनिरपेक्ष शख्सियत से तुलनाकर उनकी भी किरकिरी करने को आतुर हैं .    जब जब सं कट आता है सेक्युलरिज्म का बुर्का   पहनकर बनकर में छिप जाती है कॉंग्रेस''             मोदी कहते हैं &#

झुंझलाके क़त्ल करते हैं वे जनाब आली .

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झुंझलाके क़त्ल करते हैं वे जनाब आली .   नुमाइंदगी करते हैं वे जनाब आली , जजमान बने फिरते हैं वे जनाब आली . ............................................................... देते हैं जख्म हमें रुख बदल-बदल , छिड़कते फिर नमक हैं वे जनाब आली . .................................................................... मुखालिफों को हक़ नहीं मुहं खोलने का है , जटल काफिये उड़ाते हैं वे जनाब आली . ................................................................ ज़म्हूर को कहते जो जनावर जूनून में , फिर बात से पलटते हैं वे जनाब आली . .................................................................. फरेब लिए मुहं से मिलें हाथ जोड़कर , पीछे से वार करते हैं वे जनाब आली . ........................................................................ मैदान-ए-जंग में आते हैं ऐयार बनके ये , ठोकर बड़ों के मारते हैं वे जनाब आली . ...................................................................... जम्हूरियत है दागदार इनसे ही ''शालिनी '' झुंझलाके क़त्ल करते ह

अभिनेता प्राण को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि -शालिनी कौशिक

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चले आज वे महज़ देह छोड़कर , नज़र सामने न कभी आयेंगे . अगर देखें शीश उठाकर सभी , गगन में खड़े वे चमक जायेंगे .                       शरीरों का साथ भी क्या साथ है ?                        है चलती ही रहती मिलन व् जुदाई .                        जो मिलते हैं अपनी आत्मा से हमें                        न मध्य में आती किसी से विदाई . ये फ़िल्मी सितारे अज़र  हैं अमर हैं  हमारे ख्वाबों में रोज़ आया करेंगे . भले भूल जाएँ हमको हमारे ही अपने  ये सबके दिलों पर छाये रहेंगे .                       जो पैदा हुए हैं सभी वे मरेंगे ,                        जो आये यहाँ पर सभी चल पड़ेंगे .                        है इनकी कला का ये जादू सभी पर                         ये जिंदा थे ,जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे . अभिनेता प्राण को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि                                     शालिनी  कौशिक                                             [कौशल ]

आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .

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आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .      दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है , आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है . ............................................................... बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी , मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है . ................................................................. बेवफा है जिंदगी न करना मौहब्बत , रफ्ता-रफ्ता ज़हर का अंजाम मौत है . ............................................................... महबूबा बावफ़ा है दिल के सदा करीब , बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है . ................................................................. महफूज़ नहीं इन्सां पहलू में जिंदगी के , मजरूह करे जिंदगी मरहम मौत है . ................................................................. करती नहीं है मसखरी न करती तअस्सुब, मनमौजी जिंदगी का तकब्बुर मौत है . ................................................................ ताज्जुब है फिर भी इन्सां भागे है इसी से , तकलीफ जिंदगी है आराम मौत है . .............................................................

इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे .

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हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे , गुलाम हर किसी को समझें हैं मर्द सारे . ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' बेटे का जन्म माथा माँ-बाप का उठाये , वारिस की जगह पूरी करते हैं मर्द सारे. ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' ख़िताब पाए औरत श

क्या ये जनता भोली कही जाएगी ?

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     ''जवां सितारों को गर्दिश सिखा रहा था ,  कल उसके हाथ का कंगन घुमा रहा था .  उसी दिए ने जलाया मेरी हथेली को ,   जिसकी लौ को हवा से बचा रहा था .'' तनवीर गाजी का ये शेर बयां करता है वह हालात  जो रु-ब-रु कराते हैं हमें हमारे सच से ,हम वही हैं जो सदैव से अपने किये की जिम्मेदारी लेने से बचते रहे हैं ,हम वही हैं जो अपने साथ कुछ भी बुरा घटित होता है तो उसकी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपते रहते हैं हाँ इसमें यह अपवाद अवश्य है कि यदि कुछ भी अच्छा हमारे साथ होता है तो उसका श्रेय हम किसी दूसरे को लेने नहीं देते -''वह हमारी काबिलियत है ,,वह हमारा सौभाग्य है ,हमने अपनी प्रतिभा के ,मेहनत के बल पर उसे हासिल किया है .''...ऐसे ऐसे न जाने कितने महिमा मंडन हम स्वयं के लिए करते हैं और बुरा होने पर .....यदि कहीं किसी महिला ,लड़की के साथ छेड़खानी देखते हैं तो पहले बचकर निकलते हैं फिर कहते हैं कि माहौल बहुत ख़राब है ,यदि किसी के साथ चोरी ,लूट होते देखते हैं तो आँखें बंद कर पुलिस की प्रतीक्षा करते हैं आदि अदि .आज जनता जिन हालात से दो चार हो रही है उसके लिए सरकार को जिम्मेद

तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,

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गफलती में अपनी हम मार खा गए , गरकाब अपनी नैया हम खुद करा गए . ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: गरजें जो मेघ आकर नाकाम बरसने में , गदगद हों बीज बोके अपने घर में आ गए . ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: ख्वाजा बने हैं फिरते ख्वाहिश है गद्दियों की , संन्यासी समझ हम तो इन्हें सिर बिठा गए. :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: रहमान पसोपेश में पहलू बचा रहे हैं , हमदर्द मुझ से बढ़कर धरती पे आ गए . :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: मुखालफत की खातिर हदें तोड़ें तहजीबों की , दानाई में हमारी ये दीमक लगा गए . ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: खुद्नुमा खुदगर्जी में डूबे खुमार में , खुद्नुमाई करके ये हमको लुभा गए . :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: अब तक आज़ाद न हम एक ज

लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

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लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ... एक समाचार -कैप्टेन ने फांसी लगाकर जान दी ,. बरेली में तैनात २६ वर्षीय वरुण वत्स ,जिनकी पिछले वर्ष २८ जून को एच.सी.एल .कंपनी में सोफ्टवेयर  इंजीनियर रुपाली से शादी हुई थी ,ने घटना के कुछ देर पहले ही गुडगाँव में रह रही पत्नी से फोन पर बात की थी जिसमे दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था और समाचार के मुताबिक नौकरी के कारण पति को समय न दे पाने के कारण दोनों में अक्सर विवाद होता था .    ये स्थिति आज केवल एक घर में नहीं है वरन आज आधुनिकता की होड़ में लगे अधिकांश परिवारों में यही स्थिति देखने को मिलेगी .विवाह करते वक़्त लड़कों के लिए प्राथमिकता में वही लड़कियां हैं जो सर्विस करती हैं .यही नहीं एक तरह से आज लड़कियों के स्थान पर उन्हें पत्नी के रूप में एक मशीन चाहिए जो उनके निर्देशानुसार कार्य करती रहे ,अर्थात पहले सुबह को घर के काम निबटाये ,फिर अपने ऑफिस जाये नौकरी करे और फिर घर आकर भी सारे काम करे .बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई मशीन करती है .अब ऐसे में यदि कोई पति पत्नी से अलग से अपने लिए भी समय चाहता है तो उसकी यह उम्मीद तो बेमानी ही कही जाएगी