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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया और वी के सिंह

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विवरण : गाजियाबाद के सांसद और केंद्र में मंत्री जनरल वीके सिंह का पूरा नाम जनरल विजय कुमार सिंह है। उनका जन्‍म 10 मई 1951 को हरियाणा के भिवानी जिले के बपोरा गांव में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम कृष्‍णा कुमारी और जगत सिंह है। उनके पिता भी सेना में कर्नल थे। इतना ही नहीं उनके दादा जेसीओ थे। मतलब वह परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो सेना में गए। उन्‍होंने राजस्‍थान के पिलानी में स्थित बिड़ला पब्लिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की है। वह नेशनल डिफेंस एकेडमी के भी छात्र रह चुके हैं। 1975 में उनकी शादी भारती सिंह से हुई थी।  सेना में सेवा वीके सिंह ने सेना में अपने करियर की शुरुआत 14 जून 1970 को बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट राजपूत रेजीमेंट में की थी। वह 2010 से 2012 तक सेना में जनरल के पद पर रहे। वीके सिंह सेना में 42 वर्ष तक योगदान देने के बाद 31 मई 2012 को रिटायर हो गए। वह भारतीय सेना में 24वें थल-सेनाध्यक्ष थे। वीके सिंह सेना मुख्यालय में मिलेट्री ऑपरेशंस डायरेक्टोरेट के पद पर काम कर चुके हैं। इससे पहले जब भारतीय सेना को 2001 में संसद पर हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम के तहत सीमा पर तैनात किया गया

बेंच से क्या होगा ?

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                          पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथ ही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्र में ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से तो एक फिल्म का भी निर्माण किया गया है .यही नहीं अपराधों की राजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र धन सम्पदा ,भूमि सम्पदा से इतना भरपूर है कि बड़े बड़े औद्योगिक घराने यहाँ अपने उद्योग स्थापित करने को उत्सुक रहते हैं और इसी क्रम में बरेली मंडल के शान्ह्जहापुर में अनिल अम्बानी ग्रुप के रिलायंस पावर ग्रुप की रोज़ा  विद्युत परियोजना में २८ दिसंबर २००९ से उत्पादन शुरू हो गया है .सरकारी नौकरी में लगे अधिकारी भले ही न्याय विभाग से हों या शिक्षा विभाग से या प्रशासनिक विभाग से ''ऊपर की कमाई'' के लिए इसी क्षेत्र में आने को लालायित रहते हैं .इतना सब होने के बावजूद यह

दिखावा ही तो है ,,,,

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अरस्तू के अनुसार -''मनुष्य एक सामाजिक प्राणी  है समाज जिससे हम जुड़े हैं वहां रोज़ हमें नए तमाशों के दर्शन होते हैं .तमाशा ही कहूँगी मैं इन कार्यों को जिनकी आये दिन समाज में बढ़ोतरी हो रही है .एक शरीर ,जिसमे प्राण नहीं अर्थात जिसमे से आत्मा निकल कर अपने परमधाम को चली गयी ,को मृत कहा जाता है और यही शरीर जिसमे से आत्मा निकल कर चली गयी बड़ी संख्या में लोगों द्वारा उस आत्मा के ही कारण अंतिम प्रणाम किये जाने को अंतिम दर्शन हेतु रखा जाता है जबकि आत्मा के जाने के बाद शरीर मात्र एक त्यागा हुआ वस्त्र रह जाता है .आत्मा के शरीर त्यागने के बाद जल्दी से जल्दी अंतिम संस्कार की क्रिया को अंजाम दिया जाता है क्योंकि जैसे जैसे देरी होती है शरीर का खून पानी बनता है और वह फूलना  शुरू हो जाता है साथ ही उसमे से दुर्गन्ध निकालनी आरम्भ हो जाती है ..अंतिम संस्कार का अधिकार हमारे वेद पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को दिया गया है जिसे कभी कभी संयोग या सुविधा की दृष्टि से कोई और भी अंजाम दे देता है और अंतिम संस्कार करने वाले की वहां उपस्थिति को ऐसी स्थिति को देखते हुए अनिवार्यता कह सकते हैं किन्तु परिवहन क

अब जनता मांगे हाईकोर्ट बेंच मेरठ

अब जनता भी मांगे वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच        मुंबई हाईकोर्ट की एक खडपीठ कोल्हापुर में बनने का रास्‍ता साफ हो गया है. कोल्‍हापुर खंडपीठ के लिए महाराष्‍ट्र सरकार कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही सरकार खंडपीठ के लिए 1120 करोड़ रुपये भी प्रदान करेगी. जिसे खंडपीठ की इमारत निर्माण और विभिन्‍न व्‍यवस्‍थाओं पर खर्च किया जाएगा. और यह समाचार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहुँचते ही यहाँ के अधिवक्ताओं के तन बदन में आग सी लग गयी ,१९७९ से लगातार उत्तर प्रदेश सरकार से और केंद्र सरकार से अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच की मांग कर रहे हैं जिसे चाहे कोई भी सरकार आ जाये ,पूरी नहीं करती है ,कभी कुछ कहकर तो कभी कुछ कहकर अधिवक्ताओं को टरका दिया जाता है , आज यह आंदोलन अपने ४० वे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और नतीजा वही ढाक के तीन पात , ये हाल बनाया है आज के सत्ताधारियों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच का कि लगता है कोई हंसी मजाक की बात हो रही है जबकि -         पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि में अ

सेना का तमाशा बनाया बाबू मोशा ने

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   आज के समाचार पत्रों में एक समाचार के शीर्षक ने सर शर्म से झुका दिया ,शीर्षक था -''शहीद का कोई धर्म नहीं होता ,''शीर्षक सही था और लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबू  ने बात कही भी सही थी क्योंकि शहीद का केवल एक धर्म होता है ''वतन '' और केवल एक ही मकसद होता है ''वतन के लिए कुर्बानी '' और यही हम बचपन से सुनते आये हैं - ''शहीद तेरी मौत ही तेरे वतन की ज़िंदगी ,  तेरे लहू से जाग उठेगी इस चमन की ज़िंदगी ,  खिलेंगे फूल उस जगह पे तू जहाँ शहीद हो  वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हों ,''       ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के विवादास्‍पद बयान का इंडियन आर्मी ने करारा जवाब दिया है। नॉर्दर्न कमांड के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबू ने कहा क‍ि सेना धर्म से ऊपर है और सभी जवानों के साथ समान व्‍यवहार किया जाता है। उन्‍होंने कहा, “सेना सर्वधर्म स्‍थल है। आर्मी में हर धर्म और संप्रदाय के जवान हैं, लेकिन यहां धार्मिक पहचान मायने नहीं रखता है। हम जवानों को धर्म के आधार पर नहीं बांटते है

जैसा राजा वैसी प्रजा -अब तनाव कहाँ

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     नया ज़माना आ गया है आज हम वी आई पी दौर में हैं ,पहले हमारे प्रधानमंत्री महोदय साल में बच्चों से मिलने का एक दिन रखते थे और आज प्रधानमंत्री हर वक़्त देश के बच्चों को उपलब्ध हैं और वह भी उन विषयों और समस्याओं के लिए जिसे समझाने व् सुलझाने का काम बच्चों का स्वयं का ,उनके शिक्षक का और उनके माता पिता का ही है ऐसा लगता है कि देश की समस्याएं अब ऊँचे स्तर से ख़त्म हो चली हैं और अब समस्याओं का स्तर नीचे आ गया है ,अब दौर आ गया है बच्चों को उनके पैरों पर खड़े कर काबिल बनाने का और यह जिम्मा समस्याओं की कमी में प्रधानमंत्री महोदय ने लिया है तभी तो एक छात्र प्रधानमंत्री जी से सवाल पूछ सकता है कि ''मोदी सर ,क्या आपको भी परीक्षा का तनाव हुआ था ?''            विचारणीय स्थिति है कि वह समस्या जो बच्चे स्वयं साल भर पढाई कर सुलझा सकते हैं ,वह समस्या जो बच्चों के शिक्षक उन्हें पढ़ाकर और उनसे वार्तालाप कर मिनटों में हल कर सकते हैं और वह समस्या जो बच्चों के माँ-बाप उनके कैरियर को अपनी प्रतिष्ठा का विषय न बनाकर सैकिंडों में संभाल सकते हैं उसके लिए प्रधानमंत्री तक क्यों पहुंचा जा रहा है इसके

वेलेंटाइन मतलब मीडिया का तेजाबी गुलाब

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''गूंजे कहीं शंख कहीं पे अजान है , बाइबिल है ,ग्रन्थ साहब है,गीता का ज्ञान है , दुनिया में कहीं और ये मंजर नहीं नसीब , दिखलाओ ज़माने को ये हिंदुस्तान है .'' ऐसे हिंदुस्तान में जहाँ आने वाली  पीढ़ी के लिए आदर्शों की स्थापना और प्रेरणा यहाँ के मीडिया का पुनीत उद्देश्य हुआ करता था .स्वतंत्रता संग्राम के समय मीडिया के माध्यम से ही हमारे क्रांतिकारियों ने देश की जनता में क्रांति का बिगुल फूंका था .आज जिस दिशा में कार्य कर रहा  हैं वह कहीं से भी हमारी युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक व् प्रेरक नहीं कहा जा सकता .आज १४ फरवरी वेलेंटाइन डे के नाम से विख्यात है .एक तरफ जहाँ इस दिन को लेकर युवाओं के दिलों की धडकनें तेज़ हो रही हैं वहीँ दूसरी ओर लाठियां और गोलियां भी चल रही हैं और इस काम में बढ़ावा दे  रहा है हमारा मीडिया -आज का मीडिया . जहाँ एक ओर मीडिया की सुर्खियाँ हुआ करती थी - ''जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं , वह ह्रदय नहीं है पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं .'' ''पूछा उसने क्या नाम बता ? आज़ाद !पिता को क्या कहते ?

कांधला-कैराना को बेसहारा छोड़ गए बाबू जी

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    बाबू हुकुम सिंह ,वह नाम जिससे कैराना को राष्ट्र स्तर पर वह पहचान मिली कि कैराना का निवासी इस पूरे विश्व में मात्र इतना ही कहते पहचाना जाने लगा कि वह कैराना का रहने वाला है .एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व जो बना ही देश के लिए कुछ करने को था ,क्या किया यह इनके क्षेत्र के निवासियों से पूछो जिनके अश्रु इस वक़्त थमने का नाम नहीं ले रहे हैं ,कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमे बाबू हुकुम सिंह ने अपनी धाक न जमाई हो और क्षेत्र का कोई काम ऐसा नहीं जिसे करने में उन्होंने अपनी दिलचस्पी न दिखाई हो और अपनी सक्रियता से उसे पूरा न किया हो .       हुकम सिंह (5 अप्रैल 1 9 38 - 3 फरवरी 2018)  एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कैराणा से संसद सदस्य के रूप में कार्य किया था।  वह भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के थे। वह 16 वीं लोकसभा के अध्यक्षों के पैनल के सदस्य थे, और जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष थे। श्री सिंह ने गुर्जर समुदाय (चौहान) से स्वागत किया। उन्हें पहले सात विधानों (1 9 74-77, 1 9 80-8 9, 1 99 6-2014) के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।  उन्होंने भाजप