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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मानव आज भी पशु है

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''आदमी '' प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति है .आदमी को इंसान भी कहते हैं , मानव भी कहते हैं ,इसी कारण आदमी में इंसानियत , मानवता जैसे भाव प्रचुर मात्र में भरे हैं ,ऐसा कहा जाता है किन्तु आदमी का एक दूसरा पहलु भी है और वह है इसका अन्याय अत्याचार जैसी बुराइयों से गहरा नाता होना .कहते हैं सृष्टि के आरम्भ में आदमी वानर था , वानर अर्थात पशु , सभी ने ये फ़िल्मी गाना सुना ही होगा - '' आदमी है क्या बोलो आदमी है क्या -आदमी है बन्दर -जूते उठाके भागे कपडे चुराके भागे .....'' और धीरे धीरे सभ्यता विकसित हुई और वह पशु से आदमी बनता गया किन्तु जैसे कि एक पंजाबी कहावत है - '' वदादिया सुजादडिया जप शरीर नाल .'' अर्थात बचपन की लगी आदतें शरीर के साथ-साथ जाती हैं ,ठीक वैसे ही जो ये सभ्यता का आरम्भकाल मानव जीवन का आरम्भकाल है अर्थात बचपन के समान है ,उसमे पशु होने के कारण वह आज तक भी उस प्रवृति अर्थात पशु प्रवृति से मुक्त नहीं होने पाया है और पशु प्रवृति के लिए ही कहा गया है - ''यही पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे .'' और इसी प्रवृति के अधीन मनुष्य

जय माता दी !

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शीश नवायेंगें मैया को  ; दर   पर चलकर जायेंगे , मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें  . ................................................................................................... लाल चुनरिया ओढ़ के मैया भक्तों पर मुस्काएंगी , हलवा पूरी भोग मिलेगा तो मेरे घर आएँगी , अपने घर पर रोज़ बुला मैया का दर्शन पाएंगे , मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें  . .................................................................................................... सिंह सवारी करने वाली माँ की बात निराली है , कभी वो दुर्गा कभी भवानी कभी शारदा काली है , इन रूपों का ध्यान धरेंगे भय को दूर भगाएंगे , मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें  . ..................................................................................................... माँ की महिमा गा -गाकर हम संकट दूर भगाते हैं , माँ की मूरत मन में धरकर सफल यहाँ हो पाते हैं , माँ को ही अपने जीवन में प्रेरक तत्व बनायेंगें , मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें  . ........................................

शशि कपूर जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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Shashi Kapoor to get Dada Saheb Phalke Award  प्रसिद्ध  अभिनेता शशि कपूर को २०१४ का दादा साहेब फाल्के दिए जाने के समाचार ने शशि कपूर जी को तो जो प्रसन्नता का एहसास कराया होगा उसका तो अनुमान लगाना मुश्किल है ही उससे भी ज्यादा कठिन शशि कपूर जी के प्रशंसकों की ख़ुशी का एहसास है। १९९१ से लगभग नेपथ्य में चल रहे शशि कपूर एक बार फिर अपने प्रशंसकों से इस पुरुस्कार को ग्रहण करने के माध्यम से रु-ब-रु होंगे ये एहसास ही उनके प्रशंसकों में उत्साह भर देने के लिए पर्याप्त है। १९४८ में एक बाल कलाकार के रूप में बॉलीवुड में पदार्पण करने वाले शशि जी ने अपने बेहतरीन अभिनय से न केवल अपने कपूर खानदान का नाम रोशन किया अपितु अभिनय के क्षेत्र में उत्कृष्टता के नए कीर्तिमान स्थापित किये। जब जब फूल खिले का भोला-भोला कश्मीरी युवक हो या दीवार फिल्म का कर्तव्यनिष्ठ पुलिस वाला अपने हर पात्र को पूरी जीवंतता से निभाने वाले शशि कपूर बहुत पहले ही इस पुरुस्कार के हक़दार थे फिर भी वह तो हमारे भारत वर्ष में राजनीतिज्ञों के हाथों में गए हर पुरुस्कार का जो हाल है बही यहाँ भी है जहाँ किसी की भी योग्यता से ऊपर सत्तानशीनों की प

सभी धर्म एक हैं

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''बाद तारीफ़ में एक और बढ़ाने के लिए, वक़्त तो चाहिए रू-दाद सुनाने के लिए. मैं दिया करती हूँ हर रोज़ मोहब्बत का सबक़, नफ़रतो-बुग्ज़ो-हसद दिल से मिटाने के लिए.'' हमारा भारत वर्ष संविधान  द्वारा धर्म निरपेक्ष घोषित किया गया है कारण आप और हम सभी जानते हैं किन्तु स्वीकारना नहीं चाहते,कारण वही है यहाँ विभिन्न धर्मों का वास होना और धर्म आपस में तकरार की वजह न बन जाएँ इसीलिए संविधान ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया ,किन्तु जैसी कि आशंका भारत के स्वतंत्र होने पर संविधान निर्माताओं को थी अब वही घटित हो रहा है और सभी धर्मों के द्वारा अपने अनुयायियों  को अच्छी शिक्षा देने के बावजूद आज लगभग सभी धर्मों के अनुयायियों में छतीस का आंकड़ा तैयार हो चुका है.   सभी धर्मो  के प्रवर्तकों ने अपने अपने ढंग से मानव जीवन सम्बन्धी आचरणों को पवित्र बनाने के लिए अनेक उपदेश दिए हैं लेकिन यदि हम ध्यान पूर्वक देखें तो हमें पता चलेगा कि सभी धर्मों की मूल भावना एक है और सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य मानव जाति को मोक्ष प्राप्ति की और अग्रसर करना है .संक्षेप म

मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती,

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मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती, बनके ज़हर जो जिंदगी जीने नहीं देती. जी लेता है इन्सान गर्दिशी हज़ार पल, एक पल भी हमको साँस ये लेने नहीं देती. भूली हुई यादों के सहारे रहें गर हम, ये जिंदगी राहत से गुजरने नहीं देती. जीने के लिए चाहियें दो प्यार भरे दिल, दीवार बनके ये उन्हें मिलने नहीं देती. बैठे हैं इंतजार में वो मौत के अगर, आगोश में लेती उन्हें बचने नहीं देती.                       शालिनी कौशिक 

संस्कृति रक्षण में महिला सहभागिता

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- यूनान ,मिस्र ,रोमां सब मिट गए जहाँ से , बाकी अभी है लेकिन ,नामों निशां हमारा . कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी , सदियों रहा है दुश्मन ,दौरे ज़मां हमारा . भारतीय संस्कृति की अक्षुणता को लक्ष्य कर कवि इक़बाल ने ये ऐसी अभिव्यक्ति दी जो हमारे जागृत व् अवचेतन मन में चाहे -अनचाहे विद्यमान  रहती है  और साथ ही इसके अस्तित्व में रहता है वह गौरवशाली व्यक्तित्व जिसे प्रभु ने गढ़ा ही इसके रक्षण के लिए है और वह व्यक्तित्व विद्यमान है हम सभी के सामने नारी रूप में .दया, करूणा, ममता ,प्रेम की पवित्र मूर्ति ,समय पड़ने पर प्रचंड चंडी ,मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री ,माता के समान हमारी रक्षा करने वाली ,मित्र और गुरु के समान हमें शुभ कार्यों  के लिए प्रेरित करने वाली ,भारतीय संस्कृति की विद्यमान मूर्ति श्रद्धामयी  नारी के विषय में ''प्रसाद''जी लिखते हैं - ''नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास रजत नग-पग तल में , पियूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के सुन्दर समतल में .'' संस्कृति और नारी एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं .नारी के गुण ही हमें संस्कृति के लक्षणों के रूप