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न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.

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आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार, न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार. मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये, आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार. बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर , आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार. अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल, ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार. आंसू की एहसानमंद है तबसे ''शालिनी'' जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार. कुछ शब्द-अर्थ: उमरे-रफ्ता--गुज़रती हुई जिंदगी, जरखेज़-कीमती, मादूम-नष्ट-समाप्त, आलमे-फरेफ्तगी--दीवानगी का आलम. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com