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रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.

रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.      ग़ज़ल  तू ही खल्लाक ,तू ही रज्ज़ाक,तू ही मोहसिन है हमारा. रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा. एक आशियाँ बसाया हमने चैनो -अमन  का   , नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा. कुदरत के नज़ारे बसे हैं इसमें जा-ब-जा, ये करता तज़्किरा है संसार हमारा. मेहमान पर लुटाते हैं हम जान ये अपनी , है नूर बाज़ार-ए-जहाँ ये मुल्क  हमारा. आगोश में इसके ही समां जाये '' शालिनी '' इस पर ही फ़ना हो जाये जीवन ये हमारा. कुछ शब्द अर्थ- खल्लाक-पैदा करने वाला,रज्ज़ाक-रोज़ी देने वाला मोहसिन-अहसान करने वाला,सब्ज़ाजार-हरा-भरा महरे आलमताब -सूरज,नाकाबिले-तकसीम--अविभाज्य तज़्किरा-चर्चा,बाज़ार-ए-जहाँ--दुनिया का  बाज़ार आगोश-गोद या बाँहों में,जा-ब-जा--जगह-जगह शालिनी कौशिक [कौशल ]

न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.

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आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार, न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार. मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये, आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार. बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर , आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार. अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल, ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार. आंसू की एहसानमंद है तबसे ''शालिनी'' जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार. कुछ शब्द-अर्थ: उमरे-रफ्ता--गुज़रती हुई जिंदगी, जरखेज़-कीमती, मादूम-नष्ट-समाप्त, आलमे-फरेफ्तगी--दीवानगी का आलम. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com

शिक्षक दिवस की बधाइयाँ

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शिक्षक दिवस एक ऐसा दिवस जिसकी नीव ही हमारे दूसरे राष्ट्रपति श्रद्धेय पुरुष डॉ.राधा कृष्णन जी के जनम दिवस पर पड़ी .डॉ.राधा कृष्णन जी को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने हेतु ही देश प्रतिवर्ष ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है . सर्वप्रथम डॉ.राधाकृष्णन जी को जन्मदिन पर मैं उन्हें ह्रदय से नमन करती हूँ. . मैं जब बी.ए. में थी तो आगे के लिए करियर चुनने को मुझसे जब कहा एम्.ए.संस्कृत व् आगे पीएच डी.कर शिक्षण क्षेत्र को अपनाने का सुझाव दिया गया तो मैंने साफ इंकार कर दिया क्योंकि मैं अपने में वह योग्यता नहीं देख रही थी जो एक शिक्षक में होती है  मेरी मम्मी जिन्होंने हमें हमारे विद्यालय की अपेक्षा उत्तम शैक्षिक वातावरण घर में ही दिया वे शिक्षक बनने के योग्य होने के बावजूद घर के  कामों में ऐसी रमी की उसमे ही उलझ कर रह गयी और कितने ही छात्र छात्राएं जो उनसे स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकते थे वंचित रह गए..परिवार को प्रथम पाठशाला  और माता को प्रथम शिक्षिका कहा जाता है इसलिए मैंने सबसे पहले  अपनी शिक्षिका अपनी मम्मी को ही इस अवसर पर याद किया है ये उनका ही प्रभाव है कि हमें कभी ट्यूशन के ज़रुरत 

समाज के लिए अभिशाप बनता नशा‏

  खुशबु(इन्द्री) नशा जिसे हम एक सामाजिक बुराई कहते हैं,के कारण आज के युवा विनाश की गर्त में जा रहे हैं। आज समाज में नशाखोरी कंी प्रवृति इस कद्र अपना साम्राज्य फै ला चुकी है कि युवा इसके कारण मौत के आगोश में समा रहे हैं। आये दिन नशे की ओवरडोज के कारण  किसी न किसी घर का चिराग बुझता रहता है। नशाखोरी के कारण समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है। गांव की न्याय व्यवस्था चरमरा रही है तथा परिवार के परिवार उजड़ रहे हैं। लोगों की मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हालत बिगड़ रही है।   नई पीढ़ी में तो नशाखोरी की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। नशे के कारण तो नई युवा पीढ़ी शिक्षा प्राप्ति के मार्ग से विमुख हो रही है। व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, युवा हो या वृद्ध, महिला हो या पुरूष कोई भी वर्ग इस नशे की प्रवृति से अछूता नहीं है । घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या कालेज, गांव हो या शहर,सडक़ हो या नुक्कड़ सभी स्थानों पर नशाखोरों की जमात दिखाई देती है ।  नशाखोरी क्या है? एक बीमारी या एक प्रवृति जिसके चलते इंसान अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है। यह केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है। इसी प्

रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.

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गूगल से साभार तू ही खल्लाक ,तू ही रज्ज़ाक,तू ही मोहसिन है हमारा. रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा. एक आशियाँ बसाया हमने चैनो -अमन  का   , नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा. कुदरत के नज़ारे बसे हैं इसमें जा-ब-जा, ये करता तज़्किरा है संसार हमारा. मेहमान पर लुटाते हैं हम जान ये अपनी , है नूर बाज़ार-ए-जहाँ ये मुल्क  हमारा. आगोश में इसके ही समां जाये '' शालिनी '' इस पर ही फ़ना हो जाये जीवन ये हमारा. कुछ शब्द अर्थ- खल्लाक-पैदा करने वाला,रज्ज़ाक-रोज़ी देने वाला मोहसिन-अहसान करने वाला,सब्ज़ाजार-हरा-भरा महरे आलमताब -सूरज,नाकाबिले-तकसीम--अविभाज्य तज़्किरा-चर्चा,बाज़ार-ए-जहाँ--दुनिया का  बाज़ार आगोश-गोद या बाँहों में,जा-ब-जा--जगह-जगह शालिनी कौशिक

सांसदों के चुनाव के लिए स्नातक होना अनिवर्य करे‏

हमारे सांसद कानून में सक्षम होने के लिए भले ही अन्ना समर्थकों के निशाने पर हों, लेकिन सच्चाई यह है कि लोकसभा में 80 फीसदी से ज्यादा सांसद स्नातक हैं, जबकि 30 फीसदी के पास परास्नातक और डॉक्टरेट की डिग्री है। लोकसभा से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि संविधान में चुनाव लड़ने के लिए कोई औपचारिक योग्यता की बात नहीं है, लेकिन हमारा अनुभव है कि उचित शिक्षा के स्तर के बिना बहुत कम लोग हैं या देश की विधायिका में ऐसे लोग लगभग नहीं हैं। पिछले हफ्ते अभिनेता ओम पुरी ने रामलीला मैदान में हजारे के आंदोलन का समर्थन करते हुए हमारे सांसदों की शिक्षा के स्तर के मामले को फिर भड़का दिया। बहरहाल आंकड़ों से पता चलता है कि 15वें लोकसभा में कोई भी अनपढ़ नहीं है। करीब 50 फीसदी सांसद या तो स्नातक हैं या फिर उनके पास परास्नातक डिग्री है। संपूर्ण रूप से 80.74 सदस्यों के पास स्नातक या इससे बड़ी डिग्री है। करीब 24 सांसदों के पास डॉक्टरेट की डिग्री है।केवल 20 सांसदों की शिक्षा मैट्रिक से कम हुई है और 32 मैट्रिक पास हैं। निचले सदन में 291 सांसद पहली बार चुनकर आए हैं, जबकि 184 फिर से निर्वाचित होकर आए हैं। फिर्भी अब चुनाव स

आया खुशियों का पैगाम -ईद मुबारक

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आज ही क्या पिछले कई दिनों से बाज़ार हमारे मुसलमान भाई-बहनों से भरे पड़े हैं और हों  भी क्यों न साल भर में एक बार आने वाली ईद-उल-फितर इस्लाम धर्मावलम्बियों के लिए खास महत्व रखती है.बचपन से हम देखते हैं कि सभी रोज़ेदार इस कोशिश में लगे रहते हैं कि दूज का चाँद दिखाई दे जाये और    २९ दिन के रोज़े रखने के बाद ही ईद हो जाये हम कहते ऐसा क्यों ?बाद में हमें हमारे पापा के एक मित्र से ये  पता लगा ''कि भले ही इस समय हम एक रोज़े के करने से बच जाएँ किन्तु   बाद में हमें ये रोज़ा रखना होता है.इस्लाम धर्म में ईद एक तोहफे का सामान है ये कहना है आज के हिंदुस्तान  दैनिक में प्रकाशित एक आलेख के लेखक''फ़िरोज़ बख्त अहमद''जी का .वे कहते हैं- ''ईद की शुरुआत तो ईद से एक रोज़ पहले मगरिब की नमाज़ के बाद चाँद देखने के साथ ही हो जाती है.ईद का यह चाँद महीन होने के साथ ही थोड़ी ही देर के लिए दिखाई देता है. ईद का चाँद देखते ही मुस्लिम लोग खुदा से अमन-शान्ति की दुआ करते  हैं.'' फ़िरोज़  जी आगे कहते हैं कि ईद का अर्थ समझें तो अरबी में किसी भी चीज़ के बार-बार आने को ''ऊ

न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.

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आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार, न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार. मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये, आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार. बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर , आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार. अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल, ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार. आंसू की एहसानमंद है तबसे ''शालिनी'' जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार. कुछ शब्द-अर्थ: उमरे-रफ्ता--गुज़रती हुई जिंदगी, जरखेज़-कीमती, मादूम-नष्ट-समाप्त, आलमे-फरेफ्तगी--दीवानगी का आलम. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com

फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन

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आज के समाचार पत्रों का एक मुख्य समाचार-''सोनिया सातवीं शक्तिशाली महिला''/सबसे शक्तिशाली महिलाओं में  सोनिया''      अभी कल ही फ़ोर्ब्स मैगजीन  ने विश्व की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची जारी की और   उसमे सोनिया गाँधी जी को विश्व में  सातवाँ स्थान दिया गया है.सूची में भले ही महिलाओं की विश्व में शक्ति  और योग्यता के अनुसार  आकलन किया गया हो किन्तु यह कहना कि यह सूची सही है मैं नहीं कह सकती क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं को एक जगह   जोड़ कर आकलन करना  सही प्रतीत नहीं होता  क्योंकि सभी क्षेत्रों के विकास और शक्ति के अलग अलग आकलन होते हैं .अब राजनीतिक क्षेत्र ,आर्थिक क्षेत्र ,मीडिया का यदि हम एक जगह   आकलन  करने  बैठ जाएँ तो हम किसी सही निर्णय  पर नहीं पहुँच पाएंगे.    इन्द्र नूयी पेप्सिको की सी.ई.ओ. हैं, शेरिल सेंद्बर्ग फेसबुक की सी.ई.ओ. हैं ,मेलिंडा गेट्स बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाऊउन्देशन   की सह संस्थापक हैं और इनका कार्य क्षेत्र राजनीति के क्षेत्र से बिलकुल पृथक है और दूसरी बात सोनिया जी से ऊपर जिन राजनीति के क्षेत्र की महिलाओं को भी रखा है वे भी उनके समकक्

एक बार फिर विचार करे सुप्रीम कोर्ट

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एक बार फिर विचार करे सुप्रीम कोर्ट .कहना पड़ रहा है किन्तु क्या कहें ये  ज़रूरी है कि एक बार सुप्रीम कोर्ट अपने आज अमर उजाला के पृष्ठ ११ पर प्रकाशित  निर्णय पर विचार करे निर्णय का शीर्षक है '' जन्मपत्री मान्य ,पर एक कमज़ोर सबूत:सुप्रीम कोर्ट '' इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी शख्स की जन्मतिथि साबित करने के लिए उसकी जन्मपत्री को सबूत तौर पर स्वीकार तो  किया   जा   सकता है लेकिन यह ज्यादा विश्वसनीय नहीं होती है .जस्टिस मुकुंदम  शर्मा  और और जस्टिस अनिल आर दवे ने यह फैसला  मद्रास के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से निचली अदालत के एक जज एम्.मनिक्कम के खिलाफ दायर याचिका पर सुनाया .जज मनिक्कम १९९३ से अपनी जन्मतिथि २४ नवम्बर १९५० से बदलवाकर १९ मार्च १९४७ करवाने के लिए प्रयासरत हैं .बेंच ने कहा कि इस अदालत की ओर से पूर्व में दिए गए फैसलों के मुताबिक हम दोबारा यह कह रहे हैं कि जन्मपत्री एक कमज़ोर सबूत है ओर इसे पेश करने वाले व्यक्ति के पास इसे साबित करने की बड़ी जिम्मेदारी होती है.''    यूँ तो  यहाँ तक देखने तक उच्चतम न्यायालय का निर्णय सही प्रतीत होता है किन्तु

आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

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''श्री कृष्ण-जन्माष्टमी ''एक ऐसा पर्व जो सारे भारतवर्ष में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है .अभी कुछ वर्षों से ये दो  दिन मनाया जाने लगा है .पंडितों ने इसे ''स्मार्त '' और ''वैष्णव ''में बाँट दिया है.अर्थात स्मार्त से तात्पर्य गृहस्थ जानो द्वारा और वैष्णवों से तात्पर्य कंठी माला धारण करने वाले साधू संतों द्वारा . ''जो गृहस्थ जीवन  बिताते  हैं वे स्मार्त होते हैं अर्थात जो व्यक्ति जनेऊ धारण करते हैं गायत्री की उपासना करते हैं और वेद पुराण  ,धर्म शास्त्र ,समृत्ति को मानने वाले पञ्च वेदोंपासक हैं सभी स्मार्त हैं. वैष्णव वे लोग होते हैं जिन लोगों ने वैष्णव गुरु से तप्त मुद्रा द्वारा अपनी भुजा  पर शंख चक्र अंकित करवाएं हैं या किसी धर्माचार्य से  विधिपूर्वक दीक्षा लेकर कंठी और तुलसी की माला धारण की हुई है .वे ही वैष्णव कहला सकते हैं अर्थात वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग. सामान्य जन इसे मथुरा  और गोकुल में बाँट देते हैं अर्थात एक दिन मथुरा में कृष्ण के पैदा होने की ख़ुशी में मनाई  जाती  है और एक द

एक नमन राजीव जी को

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एक  नमन  राजीव  जी  को  आज उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर.राजीव जी बचपन से हमारे प्रिय नेता रहे आज भी याद है कि इंदिरा जी के निधन के समय हम सभी कैसे चाह रहे थे कि राजीव जी आयें और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएँ क्योंकि ये बच्चों की समझ थी कि जो जल्दी से आकर कुर्सी पर बैठ जायेगा वही प्रधानमंत्री हो जायेगा.तब हमारे दिमाग की क्या कहें वह तो उनके व्यक्तित्व पर ही मोहित था जो एक शायर के शब्दों में यूँ था- ''लताफत राजीव गाँधी,नफासत राजीव गाँधी ,          थे सिर से कदम तक एक शराफत राजीव गाँधी , नज़र आते थे कितने खूबसूरत राजीव गाँधी.'' राजीव जी का  जन्म २० अगस्त १९४४ को हुआ था और राजनीति से कोसों दूर रहने वाले राजीव जी अपनी माता श्रीमती इंदिरा जी के  कारण राजनीति में  आये और देश को पंचायत राज और युवा मताधिकार जैसे उपहार उन्होंने दिए .आज उनके जन्मदिन के अवसर पर मैं उन्हें याद करने से स्वयं को नही रोक पाई किन्तु जानती हूँ कि राजीव जी भी राजनीति में आने के कारण बोफोर्स जैसे मुद्दे में बदनामी अपने माथे पर लगाये २१ मई १९९१  को एक आत्मघाती हमले का शिकार होकर हम सभी को छोड़ गए आज भी

स्वास्थ्य सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा बदहाल‏

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  जन्म से एक साल तक के बच्चों की मौत के मामले में देश के 284 सबसे पिछड़े जिलों में उत्तर प्रदेश का श्रावस्ती सबसे ऊपर है। इसी तरह प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की होने वाली मौत के मामले में भी यूपी का फैजाबाद मंडल सबसे पिछड़ा साबित हुआ है। यहां तक कि परिवार नियोजन के मामले में भी यहां सबसे कम दिलचस्पी दिखाई गई है, जबकि इसी से अलग हुए उत्तराखंड ने अधिकांश मामलों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। यही नहीं यूपी में मृत्यु दर, नवजात शिशुओं और बच्चों की मृत्यु दर सबसे ज्यादा है, तथा यहां के 70 में से 34 जिलों में मातृ मृत्यु अनुपात और लिंगानुपात भी बहुत ज्यादा है। देश के नौ सबसे पिछड़े राज्यों में पहली बार जिला स्तर पर हुए स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नतीजे बुधवार को सार्वजनिक किए गए। पैदा होने के बाद से एक साल की उम्र के दौरान मृत्यु का शिकार हो जाने वाले बच्चों (नवजात शिशु मृत्यु दर) के मामले में उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला प्रति हजार जन्म में 19 मौत के अनुपात के साथ सबसे अच्छी स्थिति में रहा, जबकि इस मामले में श्रावस्ती 103 मौत के साथ सबसे बुरी स्थिति में पाया गया। वर्ष 2015 तक नवजा

वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम.''

''ए दोस्त  हमें तूने बहुत आजमा लिया , वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम.'' आज ही क्या हमेशा से महिलाओं के वस्त्र पुरुष सत्तात्मक समाज में विवादों का विषय रहें हैं और जब तब इन्हें लेकर कोई न कोई टीका टिपण्णी चलती ही रहती है .आज सल्ट वाल्क को लेकर विवाद खड़े किये जा रहे हैं कहा जा रहा है कि ये कुछ सिरफिरी युवतियों का कार्य है और साथ ही इसे हिन्दुस्तानी सभ्यता संस्कृति से जोड़कर और  भी गुमराह करने के प्रयास किये जा रहे हैं .कहीं लखनऊ की तहजीब का हवाला दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि ये वो शहर है जहाँ एक समय तवायफें भी सिर ढक कर निकलती थी पर ये कहते हुए भी ये नहीं सोचा जा रहा है कि एक   ऐसी पहल जो बरसों से जुल्म सह रही नारी जाति को वर्तमान में दबाये जा रहे प्राचीन पुरुष  सत्तात्मक समाज में सही स्थान दिलाये जाने के लिए की जा रही है उसे कितनी कुत्सित टिप्पणियों से नवाज़ा जा रहा है .सलीम खान जनाब लखनऊ शहर की तवायफों की सर ढके होने की बात कह इस शहर को  तहजीब वाला कहते हैं पर ये भी तो विचारयोग्य है कि एक शहर सभ्यता में कितना पतनशील कहा जायेगा जहाँ नारी को अपने पेट को भरने

साक्षर भारत मिशन को लेकर उदासीन हैं राज्य‏

खुशबु(इन्द्री)  कागजों में भले ही बहुत कुछ हो, लेकिन प्रौढ़ अनपढ़ों को साक्षर बनाने का मन शायद राज्य सरकारों का भी नहीं करता। केंद्र ने करीब दो साल पहले साक्षर भारत मिशन शुरू किया था, लेकिन राज्यों ने उसे जरूरी तवज्जो नहीं दी। नतीजा यह है कि कोई भी राज्य ऐसा नहीं, जहां इस मिशन का काम लटका न पड़ा हो। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्य भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। सरकार खुद मानती है कि राज्यों के उदासीन रवैए के चलते निरक्षरता मिटाने के अभियान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व की समीक्षा बैठक में सहमति जताने के बावजूद बिहार का कामकाज काफी पीछे है। सभी जिला व ब्लाकों पर समन्वयक नहीं नियुक्त हो पाए हैं। बेगूसराय, भोजपुर एवं खगडि़या जिलों में हजारों प्रौढ़ शिक्षा केंद्र अब भी नहीं शुरू हो पाए हैं। सरकार ने 2009-10 में मिशन में शामिल तीन जिलों में धन खर्च की रिपोर्ट भी केंद्र को देने में कोताही की। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का कुछ ऐसा ही हाल है। साक्षर भारत मिशन के पहले चरण (2009-10) में प्रदेश के 26 जिलों को शामिल किया गया था जबकि 66

स्वतंत्रता दिवस भ्रष्टाचार और आज की पीढ़ी

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स्वतंत्रता दिवस  की ६५ वीं वर्षगांठ मनाने को लेकर जहाँ सरकारी क्षेत्र में हलचल मची है वहीँ जनता में असमंजस है कि हम क्या करें क्योंकि जनता को आज कहीं भी ऐसी स्थिति नहीं दिखती  जिसे लेकर आजादी की खुशियाँ मनाई जा सकें .अमर उजाला ने अपने रविवार के संस्करण में  '' आजादी,अन्ना और सितारों की तमन्ना ''शीर्षक युक्त आलेख में जो कि सुमंत मिश्र ने लिखा है में आजादी को लेकर हमारे कुछ प्रसिद्द फ़िल्मी कलाकारों के विचार प्रस्तुत किये हैं .जो निम्नलिखित हैं- सुष्मिता सेन के अनुसार-''हमें अनुशासित होने की ज़रुरत है....अन्ना की आवाज़ से आम लोगों की उम्मीदें  आ जुडी हैं.'' अनुपम खेर कहते   हैं पिछले ६० सालों से आम लोगों को देश के नेता  बेवकूफ बना रहे हैं लेकिन अन्ना हजारे आम आदमी की आवाज़ बनकर आगे आयें हैं.'' फ़िल्मकार गुलज़ार का कहना है ,''अन्ना हजारे नहीं हजारों हैं.........देश को सुरक्षित रखने की मुहिम में जुटे.....अन्ना के समर्थन में युवाओं की फ़ौज उसी तरह आ कड़ी हुई है जिस तरह जय प्रकाश आन्दोलन के समय आ खड़ी हुई थी .'' अभिनेता   शत्रु

बहन हो तो ऐसी -जैसी शिखा कौशिक

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बहन हो तो ऐसी -जैसी  शिखा  कौशिक                                   ''आदमी  वो  नहीं  हालत  बदल  दें   जिनको ,   आदमी वो  हैं जो  हालत  बदल  देते  हैं.''               पूरी  तरह से खरी उतरती हैं ये पंक्तियाँ मेरी  छोटी  किन्तु  मुझसे विचारों और सिद्धांतों  में  बहुत  बड़ी  मेरी बहन ''शिखा कौशिक पर .           कोई नहीं सोचता था  कि  ये  छोटी सी लड़की इतने  महान विचारों की धनी होगी और इतनी मेहनती.जब छोटी सी थी तो कहती थी भगवान्  के पास रहते थे उन्होंने हमारा घर दिखाया और उससे यहाँ रहने  के बारे में पूछा  और उसके हाँ करने पर उसे यहाँ छोड़ गए .सारे घर में सभी को वह परम प्रिय थी और सभी बच्चे उसके साथ खेलने  को उसेअपने साथ करने को पागल रहते किन्तु हमेशा उसने मेरा मान   बढाया  और मेरा साथ दिया .           छोटी थी तो कोई नहीं सोचता  था कि ये लड़की नेट परीक्षा पास करेगी या डबल एम्.ए. और पी.एच.डी.करेगी  .कोई भी परीक्षा पास कर घर आती तो सभी से कहती फर्स्ट आई हूँ सातवाँ आठवां नंबर है.छुट्टियों में   बाबाजी से कहती क्या बाबाजी जरा से पेपर और सारे साल पढाई.सारे समय गुड्डे गुड़