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शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013

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अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को , अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को . अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये  , घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को . मिलजुल कर जब किया अलाव  गर्मी आई अर्दली बन , अलका बनकर ये शीतलता  छेड़े जाकर कोमल तृण को . आकंपित हुआ है जीवन फिर भी आतुर उत्सव को , यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को . पायें उन्नति हर पग चलकर खुशियाँ मिलें झोली भरकर , शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .                      शालिनी कौशिक                          [कौशल] शब्दार्थ :अमरावती -स्वर्ग ,इन्द्रनगरी ,अरुणिमा -लालिमा ,अरुणोदय-उषाकाल ,अर्दली -चपरासी ,अर्नोद -बादल ,तुहिन -हिम ,बर्फ ,अर्नवनेमी -पृथ्वी 

सरकार का विरोध :सही तथ्यों पर हो

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: दिल्ली गैंगरेप केस न केवल सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का घ्रणित उदाहरण है बल्कि सरकार के दोष को खुलेरूप में प्रदर्शित करता है .गैंगरेप राजधानी की सड़कों पर हुआ और एक ऐसी बस में किया गया जिसे वहां आवागमन का अधिकार ही नहीं था क्या  कहा जाये इसे ?यदि राजधानी में इस तरह की बस में इस तरह का घिनोना अपराध किया जा सकता है तो देश के अन्य स्थानों की सुरक्षा के सम्बन्ध में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता पिछले काफी समय से अन्ना ,केजरीवाल ,बाबा रामदेव जिस भ्रष्टाचार  के खिलाफ जंग लड़ रहे थे और दिल्लीवासी जिसमे बढ़ चढ़कर उनका साथ दे रहे थे उसकी भेंट एक उदयीमान प्रतिभा को ही चढ़ना पड़ गया .घरेलू हिंसा के मामले में सरकार की सीधी  जिम्मेदारी नहीं बनती है किन्तु यहाँ सरकार दोषी है पूरी तरह से दोषी है और संभव है कि इसकी भरपाई सरकार को सत्ता से बाहर  होकर करनी पड़े और ये सही भी है जो सरकार अपने कर्तव्य  के पालन में असफल है उसे सत्ता में बने रहने  का कोई नैतिक हक़ नहीं है क्योंकि सत्ता वह मुकुट है जो काँटों से भरा है जिसे पहनने वाला भी काँटों से पीड़ित होता है और पहनने की इच्छा रख  छीनने की कोशिश करने वाला  भी .और वर्

भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .

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 छोटे से छोटा घर हो या बड़े से बड़ा राष्ट्र समुचित व्यवस्था के बिना अराजकता व् बिखराहट से भरा नज़र आता  है .व्यवस्था  महत्वपूर्ण स्थान रखती है किसी  घर को सफल परिवार बनाने में और किसी देश को विकास की राह पर चलाने में .ये व्यवस्था जिस नियम पर आधारित हो अपने काम सुचारू ढंग से करती है उसे कानून कहते हैं .कानून के बारे में कहा गया है - ''law is nothing but commonsense .'' अर्थात कानून सामान्य समझ से अतिरिक्त और कुछ नहीं है .ये एक सामान्य समझ ही तो है कि घर में माँ-बाप का हुक्म चलता है और माँ से भी ज्यादा पिता का ,माँ स्वयं पिता के हुक्म के आधीन काम करती है .ऐसा भी नहीं है कि इसमें कोई गलत बात है .घर की व्यवस्था बनाये रखने को ये एक सामान्य समझ के अनुपालन में किया जाता है क्योंकि सभी का हुक्म चलना घर की नाव में छेद कर सकता है और उसकी नैय्या डुबो सकता है .ऐसे ही देश के सञ्चालन का अधिकार कहें या दायित्व संविधान को सौंपा गया है .देश में संविधान को सर्वोच्च कानून का दर्ज दिया गया है और इसके संरक्षण का दायित्व सर्वोच्च  न्यायालय को सौंपा गया है . संविधान के अनुच्छेद १४१ में क

नारी महज एक शरीर नहीं

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  महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है .महिलाएं सशक्त हो रही हैं .सभी क्षेत्रों में महिलाएं अपना परचम लहरा रही हैं .२०१२ की शुरुआत ज्योतिषियों के आकलन ''शुक्र ग्रह का प्रभुत्व रहेगा ''फलस्वरूप महिलाएं ,जो कि शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करती हैं ,प्रभावशाली होंगी .सारे विश्व में दिखाई भी दिया कहीं महिला पहली बार राष्ट्रपति हो रही थी तो कहीं प्रधानमंत्री बन रही थी .अरब जैसे देश से पहली बार महिला एथलीट ओलम्पिक में हिस्सा ले रही थी .सुनीता विलियम्स के रूप में महिला दूसरी बार अन्तरिक्ष में जा रही थी और पता नहीं क्या क्या .चारों ओर महिलाओं की सफ़लता  के गुणगान गाये जा रहे थे  कि एकाएक ढोल बजते बजते थम गए ,,पैर ख़ुशी में नाचते नाचते रुक गए ,आँखें फटी की फटी रह गयी और कान के परदे सुनने में सक्षम होते हुए भी बहरे होने का ही मन कर गया जब वास्तविकता से दो चार होना पड़ा और वास्तविकता यही थी कि महिला होना ,लड़की होना एक अभिशाप है .सही लगी अपने बड़ों की ,समाज की बातें जो लड़की के पैदा होने  पर  की जाती हैं .सही लगी वो हरकत जिसका अंजाम कन्या भ्रूण हत्या होता है .जिस जिंदगी को इस दुष्ट दुनिया म

भारतीय भूमि के रत्न चौधरी चरण सिंह

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कोई जीना ही जिंदगी समझा , और फ़साना बन गया कोई . अपनी हस्ती मिटाकर ए-अंजुम , अपनी हस्ती बना गया कोई .  सुलक्षणा  'अंजुम' द्वारा कही गयी उपरोक्त पंक्तियाँ अक्षरशः सही प्रतीत होती हैं परम पूजनीय ,किसानों के मसीहा ,दलितों के देवता ,चौधरी चरण सिंह जी पर .२३ दिसंबर १९०२ को  किसान परिवार में जन्मे  चौधरी साहब इस प्रकार आकाश में नक्षत्र की भांति दमकेंगें   ये शायद किसी को पता नहीं था किन्तु ये चौधरी साहब के कर्म व् भाग्य की विशेषता थी कि वे एक साधारण किसान रहने के स्थान पर देश के किसानों की आवाज़ बने .     आज देश की राजनीति जातियों के घेरे में सिमट कर रह गयी है और भारत जैसा देश जहाँ हिन्दू व् मुस्लिम धर्मों में ही कई जातियां हैं वहां अन्य धर्मों की जातियों का तो हिसाब लगाना ही कठिन है और फिर अगर हम ये सोचें कि हम हिन्दू न होकर पहले ब्राह्मण हैं ,विषय हैं ,जैन हैं ,सैनी हैं ,गूजर हैं ,जाट हैं तो क्या हम प्रगति कर सकते हैं ?इस जातिगत राजनीति और धर्म सम्प्रदायों पर आधारित राजनीति ने चौधरी चरण सिंह के किसान मजदूर तथा गाँव की कमर तोड़ दी है .चौधरी साहब जातिवाद के घोर विरोधी थे .वे इसके व

फाँसी :पूर्ण समाधान नहीं

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   दिल्ली ''भारत का दिल ''आज वहशी दरिंदों का ''बिल'' बनती नज़र आ रही है .महिलाओं के लिए यहाँ रहना शायद आरा मशीन में लकड़ी या चारे की तरह रहना हो गया है कि हर हाल में कटना ही कटना है .दिल ही क्या दहला मुट्ठियाँ व् दांत भी भिंच गए हैं रविवार रात का दरिंदगी की घटना पर ,हर ओर से यही आवाजें उठ रही हैं कि दरिंदों को फाँसी की सजा होनी चाहिए क्योंकि अभी तक ''भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७६ [२] बलात्संग के लिए कठोर कारावास जिसकी अवधि दस वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी ,दंड व् जुर्माने का प्रावधान करती है और वर्तमान बिगडती हुई परिस्थितियों में ये सभी को कम नज़र आने लगी है और ऐसे में जहाँ सारा विश्व फाँसी को खत्म करने की ओर बढ़ रहा है वहां भारत में बढ़ता ये मामले भारतीयों को फाँसी के पक्ष में कर रहे हैं .     दिल्ली में चलती बस में फिजियोथेरेपिस्ट के साथ घटी इस दरिंदगी की घटना ने दोनों सदनों को भी हिला दिया .भाजपा की सुषमा स्वराज ,नजमा हेपतुल्लाह ,शिव सेना के संजय राउत ,आसाम गण परिषद् के वीरेंद्र कुमार वैश्य ,सपा के चौधरी मुन्नवर सलीम ने ब

आगे बढ़कर हाथ मिला ....

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पाकिस्तान के रहमान मालिक आये और भारत में नयी आग लगा गए .पुराना  काम है पाकिस्तानी नेताओं का यहाँ आकर आग लगाने का ऐसे में जो मन में उद्गार भरे थे कुछ यूँ प्रकट  हो गए.   आ रहे हैं तेरे दर पर ,आगे बढ़कर हाथ मिला . दिल मिले भले न हमसे ,आगे बढ़कर हाथ मिला .  घर तेरे आकर भले हम खून रिश्तों का करें , भूल जा तू ये नज़ारे ,आगे बढ़कर हाथ मिला . जाहिरा तुझसे गले मिल भीतर चलायें हम छुरियां , क्या करेगा देखकर ये,आगे बढ़कर हाथ मिला . हम सदा से ही निभाते दोस्त बनकर दुश्मनी , तू मगर है दोस्त अपना,आगे बढ़कर हाथ मिला . घर तेरा गिरने के दुःख में आंसू  मगरमच्छी बहें, पर दुखी न दिल हमारा,आगे बढ़कर हाथ मिला . आग की लपटों से घिरकर तेरे अरमां यूँ  जलें , मिल गयी ठंडक हमें ,अब आगे बढ़कर हाथ मिला .  जिंदगी में तेरी हमने क्या न किया ''शालिनी '', भूल शहादत को अपनी, आगे बढ़कर हाथ मिला .                       शालिनी कौशिक                                  [कौशल ]

भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं

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''भारत पाक का एकीकरण कश्मीर समस्या का एकमात्र हल -एम्.काटजू ''     सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश से ऐसी बयानबाजी की उम्मीद शायद नहीं की जा सकती किन्तु ये शब्द सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के ही हैं जो उन्होंने दक्षिण एशिया मीडिया आयोग के भारतीय चैप्टर की ओर से आयोजित संगोष्ठी के संबोधन में कहे .                       भारत पाक का विभाजन ब्रिटिश हुकूमत की ''बाँटो और राज करो ''की नीति के तहत हुआ किन्तु कश्मीर राज्य कोई समस्या था ही नहीं इसे समस्या बनाया पाकिस्तान ने .कश्मीर के महाराजा हरीसिंह की तटस्थ नीति की अवहेलना करते हुए पाकिस्तान का कश्मीर को सैनिकों द्वारा हड़पने की योजना बनाना इसे समस्या के रूप में जन्म देना था . शेख अब्दुल्लाह ने पाकिस्तान से बचाव हेतु भारत से मदद मांगी और इस तरह से भारत को इस मामले में दखल देना पड़ा और तब भारत सरकार ने मदद के नाम पर कश्मीर को भारत में विलय की शर्त रखी जिसे महाराजा हरीसिंह ने मान लिया .ऐसे में एक स्वतंत्र राज्य ने अपनी इच्छा से भारत में विलय स्वीकार कर लिया था और भारतीय सेना भी पाकिस्तानी से

शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .

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५ दिसंबर २०१२ दैनिक जागरण का मुख पृष्ठ चौधरी चरण सिंह विश्वविध्यालय के २४ वें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलाधिपति /उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी.एल.जोशी के कथनों को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा था .एक ओर जहाँ माननीय राज्यपाल महोदय ने युवाओं को दहेज़ जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आगे आने का आह्वान कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया वहीँ उन्होंने शोध के सम्बन्ध में ''....लेकिन  तमाम विश्वविद्यालयों  में एक भी रिसर्च ऐसी नहीं देखने को मिल रही जिसका हम राष्ट्रीय या वैश्विक स्तर पर गौरव के साथ उल्लेख कर सकें .''कह अपने नितान्त असंवेदनशील होने का परिचय दिया है .                     न्याय के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण कथन है ''कि भले ही सौ गुनाहगार छूट जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए .''मैंने शोधार्थियों  के वर्तमान शोध में से केवल एक के शोध का अवलोकन किया है और उसके आधार पर मैं कह सकती हूँ कि माननीय कुलाधिपति महोदय का ये कथन उन शोधार्थियों के ह्रदय को गहरे तक आघात पहुँचाने वाला है जिन्होंने अपनी दिन रात की मेहनत से ये उपाधि प्राप्त

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज

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दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज      एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .                   'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,                 उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .'' बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब