संदेश

जून, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं

चित्र
मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं  ''दिल में जब रौशनी की ख्वाहिश हो ,       शौक से मेरा घर जला लेना .''-मोहम्मद अकरम         एक दूसरे के प्रति कुर्बानी के भाव तक प्रेम में आकंठ डूबे हिन्दू-मुस्लिम समुदायों वाला यह देश चंद कट्टरपंथियों के कारण पिछले कुछ समय से जिस दौर से गुजर रहा है वह हम सभी के लिए शर्मनाक है क्योंकि - ''अब तो रह रहके जली लाशों की बू आती है ,    पहले ऐसी तो न थी मेरे चमन की खुशबू .'' भारत में हिन्दू व् मुसलमान समुदाय कभी एक दूसरे से अलग नहीं रहे .ये हमेशा एक दूसरे के दुःख में दुखी व् एक दूसरे की ख़ुशी में हर उत्सव हर जलसे में शामिल रहे हैं .जहाँ ईद मिलन के अवसर पर हिन्दू सबसे पहले अपने भाई मुसलमान की चौखट पर ईद मिलने पहुँचते हैं वहीँ दीवाली की मिठाई खाने में मुसलमान भी हिन्दू भाई से पीछे नहीं रहते .जहाँ हिन्दू बहन रानी पद्मावती के रक्षा के लिए मुग़ल बादशाह हुमायूँ भाई बन पहुँचता है वहीँ हिन्दू परिवारों के कितने ही बच्चे मुसलमान दाइयों के संरक्षण में पलते हैं .जहाँ हिन्दू विधवा बूढी महिला का कोई करने वाला न होने पर मुसलमान बेटा

फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को ,

चित्र
बेचकर ईमान को ये देश खा गए . बरगला अवाम को ये दिन दिखा गए . .................................................... साहिबे आलम बने घूमे हैं वतन में , फ़र्ज़ कैसे भूलना हमको सिखा गए . ................................................... वीरान सबका आज कर अपना संवारे कल , फरेबी मेहरबान लूटकर खा गए . .................................................... ज़म्हूरियत के निगहबान जमघट के तलबगार , वादों के लचर झूले में सबको झुला गए . ....................................................... फ़ालिज जुदा हो लोकतंत्र देखे टुकुर-टुकुर , बेबसी के आंसू उसको रुला गए . .................................................... फिजायें तक जिस मुल्क की मुरौवत भरी , हवाएं भी वहां की बेरहम बना गए . .................................................. बेताबी में हथियाने को सत्ता की ये कुर्सी , फ़स्ले-बहार में हमें खिज़ा थमा गए . ....................................................... फहमाइश देती ''शालिनी ''इन हुक्मरानों को , झुलसाएगी वो आग जिसे कल लगा गए . .........................

संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए.

चित्र
''सरस्वती चन्द्र '' संजय लीला भंसाली का यह धारावाहिक इस वक्त स्टार प्लस  व् दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहा है और यह प्रसिद्द गुजराती उपन्यास सरस्वतीचंद्र पर आधारित है जो कि १९ वीं सदी में लिखा गया था . Saraswatichandra (Abridged) Front Cover of Saraswatichandra (Abridged) Author(s) Govardhanram M. Tripathi Original title Saraswatichandra Translator Vinod Meghani Country India Language Gujarati ISBN 81-260-2346-5 कुमुद सुन्दरी व् सरस्वती चन्द्र व्यास की यह प्रेम कहानी आज सभी दर्शकों को बांधे हुए है .किन्तु धारावाहिक की आरंभिक पंक्ति ''मुकम्मल मोहब्बत की अधूरी दास्तान''दिल बैठा देती है .दोनों ही चरित्र बहुत ही शालीन और भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का सम्मान करने वाले हैं किन्तु सरस्वती चन्द्र की सौतेली माँ   गुमान की साजिशें और कुमुद की बुआ के पति की प्रतिशोध की प्रवर्ति दोनों के मिलन में बाधा उपस्थित कर देते हैं.         धारावाहिक की आरंभिक पंक्ति ने इस कदर दिल दुखाया है कि विकिपीडिया पर इसकी कहानी की खोज की जिसमे पता चला कि बहुत पहले 1968 मे

मोदी व् मीडिया -उत्तराखंड त्रासदी से भी बड़ी आपदा

चित्र
पिलाकर गिराना नहीं कोई मुश्किल , गिरे को उठाये वो कोई नहीं है . ज़माने ने हमको दिए जख्म इतने , जो मरहम लगाये वो कोई नहीं है .   हरबंस सिंह ''निर्मल'' जी के यही शब्द आज दोहराने को मन करता है .उत्तराखंड में इतनी बड़ी त्रासदी कि स्वयं मीडिया को आरम्भ में कोई सही अनुमान  नहीं था कि कितने लोग फंसे हैं या हमारे बीच में अब नहीं रहे हैं दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ पर २२ जून को समाचार का शीर्षक था कि ''संकट में ६० हज़ार जिंदगियां ''और देखिये किस कदर हावी है राजनीति हमारे मीडिया पर कि ऐसे में भी उसी पृष्ठ  पर समाचार देता है ''कौंग्रेस को न बहा ले जाये उत्तराखंड सैलाब ''क्यों नहीं लिखता कि ''जागिये भारतवासियों कहीं वहां के लोगों पर गुजरती आपदा  न बहा ले जाये हमारे देश में बसा सद्भाव ''        एक तरफ जिदंगी मौत से जूझ रही थी और दूसरी तरफ दुकानदार उन्हें १० रूपए का बिस्कुट का पैकिट १०० में बेच रहे थे ,पायलट विमान में बैठने के पैसे मांग रहा था ५०००० /-और यही नहीं नेपाली लूट रहे थे जिन्दा महिलाओं के जेवर  हाथ  काट  कर . और हमारा मी

पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर .

चित्र
तौबा करते धर्मस्थल में ,भक्त यूँ भीड़ बढाकर , पाप काटते रोज़ चढ़ावा ,ज्यादा खूब चढ़ाकर . >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> सारे साल है मारे बच्चे ,रखे खूब कमाकर , दाई कराये तीर्थ यात्रा बस में लोग बैठाकर . >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>. खाली हाथ ही जाना मुझको ,बोले ये चिल्लाकर , पैसे बीमे के वे खाता ,लोग जो जाएँ जमाकर . >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> देता दावत नेताओं को ,बाप का धन लुटाकर , विधवा माँ को सबके आगे ,पागल बड़ी दिखाकर . >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> इस दुनिया में जिधर भी देखो ,अपनी आँख घुमाकर, पाखंडों का अजगर घूमे ,अपना मुख फैलाकर . >>>>>>>>>>>>>>>>>&

गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है .

चित्र
गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है .   ख़ुदा ने आज़माया है ,अज़ाब हम पर आया है . किया अजहद ज़ुल्म हमने ,अदम ने ये बताया है . कस्साबी नारी सहे ,मुहं सी आदमजाद  की . इन्तहां ज़ुल्मों की उसपर ,उफान माँ का लाया है . करे खिलवाड़ कुदरत से ,आज के इन्सां बेखटके , खेल अपना दिखा रब ने ,कहकहा यूँ लगाया है . गेंहू के संग में है पिसती ,सदा घुन ही ये बेचारी , किसी की कारस्तानी का ,किसी को फल चखाया है . लूटकर बन्दों को उसके ,खजाने अपने हैं भरते , सभी को जाना है खाली ,काहे इतना जुटाया है . खबीस काम कर-करके ,खरा करने मुकद्दर को , पहुंचना रब की चौखट पर ,बवंडर ये मचाया है . कुफ्र का बढ़ना आदम में ,समझना खिलक़त से बढ़कर , चूर करने को मदहोशी ,सबक ऐसे सिखाया है . गज़ब पड़ना अजगैबी का ,हदें टूटी बर्दाश्त की , गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है . समझ लें आज कबीले ,सहमकर कहती ''शालिनी '', गालिबन ये हमारी ही ,करम रेखों का साया है . शब्दार्थ-अजगैबी-दैवी ,अजहद-बहुत ,आज़माना -परीक्षा लेना ,अज

कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .

चित्र
   न बदल पायेगा तकदीर तेरी कोई और ,       तेरे हाथों में ही बसती है तेरी किस्मत की डोर ,    अगर चाहेगा तो पहुंचेगा तू बुलंदी पर        तेरे जीवन में भी आएगा तरक्की का एक दौर . तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने ,     दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी .  जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत ,       कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी . तकदीर बनाने के लिए सुनले मेहरबां,      दिल में जीतने का हमें जज्बा चाहिए . छूनी है अगर आगे बढ़के तुझको बुलंदी         क़दमों में तेरे जोश और उल्लास चाहिए . मायूस होके रुकने से कुछ होगा न हासिल ,     उम्मीद के चिराग दिल में जलने चाहियें . चूमेगी कामयाबी आके माथे को तेरे       बस इंतजार करने का कुछ सब्र चाहिए . क्या देखता है बार-बार हाथों को तू अपने ,    रेखाओं में नहीं बसती है तकदीर किसी की . गर करनी है हासिल तुझे जीवन में बुलंदी     मज़बूत इरादों को बना पथ का तू साथी .              शालिनी कौशिक                      [कौशल]

ये है मर्द की हकीकत

चित्र
    ये है मर्द की हकीकत  ''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया .जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है ?किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं .स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहें जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है .        सेना में प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं किन्तु अब आये दिन अपने आस पास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है .पत्नी के माध्यम से पुलिस अफसरों से मेल-जोल ये कहकर- ''कि थानेदार साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है .'' नेताओं से दोस्ती ये कहकर कि - ''मेरी बेटी से मिलिए .'' तो घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पु

यू.पी.की डबल ग्रुप बिजली

चित्र
  लगे हुए थे एक माह से ,हिन्दू मुस्लिम भाई , थम गया था जीवन सारा ,चौपट हुई कमाई . मना रहे थे अफसरों को ,देकर दूध मलाई , नेताओं ने भी आकर ,पीठ थी थपथपाई . बिलबिलाते गर्मी से ,छत पर खाट जमाई, पंखा झलते-झलते रहते ,नींद न फिर भी आई . धरने करते नारे गाते ,बिछा के जब चटाई, सीधी बातों से न माने ,तब की खूब पिटाई . लातों के इन भूतों के ,तब बात समझ में आई , बिजली आने की परमिशन ,ऊपर से दिलवाई . बजे नगाड़े ढोल तमाशे ,सबने खाई मिठाई , गले मिले और हाथ मिलकर ,दी गयी खूब बधाई . डबल ग्रुप से ऐसी बिजली,देख के शामत आई , न चमकी दिन में आकर,न रात को पड़ी दिखाई .                  शालिनी कौशिक                            [कौशल]

जनता की पहली पसंद -कौंग्रेस

चित्र
 आज सुबह का दैनिक जागरण देखा .अन्य समाचार जहाँ देश में जगह जगह हुई भयावह घटनाओं के बारे में बता रहे थे वहीँ एक खबर दिल को सुकून दे रही थी कि पूरी तरह पतंनोंमुख भारतीय राजनीती  में अभी भी आशा की किरण हैं इस देश के लिए ''कौंग्रेस के बूते ''       कलीम देहलवी ने कहा है -      ''हमारा फ़र्ज़ है रोशन करें चरागे वफ़ा ,        हमारे अपने मवाफिक हवा मिले न मिले .''    और इसी भावना को साबित करती है आज के समाचार पत्र में प्रकशित माननीय प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह जी की यह टिप्पणी - राहुल गांधी मेरी जगह लेते हैं, तो मुझे बेहद खुशी होगी' एक ओर जहाँ भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए जूझती नज़र आ रही है और उसके वरिष्ठ से वरिष्ठ नेता अपने आचरण से हिंदूवादी पार्टी व् इसके समर्थकों का सर झुकाते नज़र आ रहे हैं वहीँ कौंग्रेस ,जो इस वक़्त एक लम्बे समय से सत्ता में जमी होने के कारण आलोचनाओं का शिकार है  ,अपने गरिमामय आचरण से देश का व् अपने समर्थकों का गौरव बढ़ा रही है .      भाजपा के लाल कृष्ण अडवाणी ने अभी

बघंबर पहनकर आये ,असल में ये हैं सौदागर .

चित्र
    बजरिये बख्शीश-ए-लोहा ,सोयी जनता जगायेंगे . फिर एक नयी इबारत गढ़ ,साथ सबको ले आयेंगे . भले ही दृढ इरादों ने ,उन्हें लौह-पुरुष बनाया था , ढालकर उनको मूरत में ,लोहा तो ये दिलवाएंगे . मिटटी के लौंदे में लिपटे ,वे तो साधारण मानव थे . महज़ लोहमय शख्सियत को ,लोहसार ये बनायेंगे . मुखालिफ ने लगायी थी ,शहर में खुद की ही मूरत . उसने खुद दम पर था खाया ,ये दूजे का खा जायेंगे . उड़ायें ये मखौल उनके ,जो बनके लग गए हैं मूरत . भला खुद बनवाये बुत की ,हंसी को रोक पाएंगे . न खाने को हैं दो रोटी ,न तन ढकने को हैं कपडे . ऐसे में इन इरादों से ,क्या जीवन ये दे पाएंगे . फैलसूफी  में अपनी ये ,रहनुमा बनने आये हैं . राहजनी खुलेआम करके ,उड़नछू ये हो जायेंगे . रियाया अपनी समझकर ,रियायत ऐसे करते हैं . साँस की एवज में लोहा ,ये सबसे लेकर जायेंगे . बघंबर पहनकर आये ,असल में ये हैं सौदागर . ''शालिनी''ही नहीं इनको ,सभी पहचान जायेंगे . शब्दार्थ:-बजरिये-के द्वारा ,बख्शीस-दान,लोहसार -फौलाद,इस्पात ,फैलसूफी-धूर्तता ,रियाया -प्रजा ,रियायत-मेहरबानी ,बघंबर-बाघ की खाल    

मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी .

चित्र
सन्दर्भ :- 17 साल पुराने जदयू-भाजपा गठजोड़ में अलगाव तय              मोदी और नीतीश      कितने दूर कितने पास    तोहमतें लगनी हों तो लगती रहें ,तुनक मिज़ाजी दिखाएंगें हम भी . है जुदाई अगर उनकी किस्मत में ,बखुशी दूर जायेंगे हम भी . हम न करते हैं बात मज़हब की ,अपने ख्वाबों में महज़ कुर्सी है . अपना हीरा क़ुबूल उनको नहीं ,उनके सौदे से दूर हैं हम भी . बात बिगड़ी थी अभी थोड़ी सी ,धीरे धीरे संभल ही जाएगी . बात मानी अगर यूँ गैरों की ,क्या पता दूर जा गिरें हम भी . बगावत नहीं हैं कर सकते ,हमारी भी है मजबूरी . नहीं मुहं खोलेंगे अपना ,कसम अब खाते हैं हम भी . सियासत करनी है हमको ,नहीं थियेटर चलाना है . बिताने को जहाँ दो पल ,देख कुछ लेते थे हम भी . आज जिसकी रेटिंग ज्यादा ,सभी उसके पीछे भागें . लगाकर पूरे दम ख़म को ,भागते फिर रहे हम भी . ''शालिनी''की नहीं केवल ,ये पूरे भारत की मंशा . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . शब्दार्थ :तुनक मिज़ाजी-चिडचिडापन ,बखुशी-प्रसन्नतापूर्वक . शालिनी कौशिक   

सब पाखंड घोर पाखंड मात्र पाखंड

चित्र
सब पाखंड  घोर पाखंड   मात्र पाखंड  भाईसाहब नमस्कार  कह रही थी मैडम , हाथ जोड़कर  और भाईसाहब  सिर घमंड से उठाकर  स्वीकार कर रहे थे .   पंडित जी ! प्रणाम  कह रहा था भक्त , और पंडित जी  गर्दन हिलाकर  हाथ उठाकर  भगवान बन रहे थे . मम्मी जी पाय लागूं , कह बहु झुकी  सास के पैर छूने , पर घुटनों को ही  हाथ लगाकर  अपने कमरे में  चली गयी . दोनों हाथ मिलाकर  सिर झुकाकर  खद्दरधारी नेता  मुख पर मुस्कान  बिखेर एक दूसरे का  अभिवादन कर रहे थे . और झलक रहा था  सभी तरफ से  वो पाखंड  जो छिपाए नहीं छिपता . भाईसाहब जिन्हें        नमस्कार किया  जा रहा था बढ़-चढ़कर    घर आने पर  चाय बनाने से इंकार कर .  पंडित जी को प्रणाम  पर दान के समय   सस्ते से सस्ते खरीदकर  और पंडित जी का  पैसे वाले को बड़ा  आशीर्वाद देकर . बहू का सास  के खाने से  मिष्ठान को हटाकर  नेताओं का  पीठ पीछे  छुरा घोंपकर  सभी से  एक ही सत्य  था उजागर  सब पाखंड  घोर पाखंड   मात्र पाखंड .

रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है .

चित्र
 ये राहें तुम्हें कभी तन्हा न मिलेंगीं , तुमने इन्हें फरेबों से गुलज़ार किया है . ताजिंदगी करते रहे हम खिदमतें जिनकी , फरफंद से अपने हमें बेजार किया है . कायम थी सल्तनत कभी इस घर में हमारी , मुख़्तार बना तुमको खुद लाचार किया है . करते कभी खुशामदें तुम बैठ हमारी , हमने ही तुम्हें सिर पे यूँ सवार किया है . एहसान फरामोश नहीं हम तेरे जैसे , बनेंगे हमसफ़र तेरे इकरार किया है . गुर्ग आशनाई से भरे भले रहें हो संग , रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . फबती उड़ाए ''शालिनी''करतूतों पर इनकी , हमदर्दों को मुखौटों ने बेकार किया है . शब्दार्थ ;गुलज़ार-चहल-पहल वाला ,ताजिंदगी-आजीवन ,गुर्ग आशनाई   -कपटपूर्ण मित्रता ,फबती उड़ाए -चुटकी लेना . शालिनी कौशिक        [कौशल]

जो बोया वही काट रहे आडवानी

चित्र
  ''आज माना कि इक्तदार में हो ,हुक्मरानी के तुम खुमार में हो , ये भी मुमकिन है वक़्त ले करवट ,पाँव ऊपर हों सर तगार में हो .''     कुछ साल पहले जब अटल बिहारी वाजपेयी जी को बीमार बताकर नेपथ्य में जाने को अडवाणी जी ने अपने गुट के साथ मिलकर विवश किया था तब अटल जी के मन में यही विचार उभरे होंगे जो अब मोदी जी के लिए अडवाणी जी के मन में सभी को उभरते नज़र आ रहे हैं .किन्तु जैसा कि भारतीय संस्कृति का नियम है जो जो बोता है वही काटता है  ,के परिणाम स्वरुप आज अडवाणी जी भी उसी स्थिति में पहुँच चुके हैं और पार्टी में मोदी जी के बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं यही कारण है कि उन्होंने अपनी तरफ से अपनी पार्टी का बहिष्कार कर दिया जिसे वे स्वयं राष्ट्र हित के लिए बनी पार्टी कहते हैं .     भारतीय जनता पार्टी ,यही नाम है उस दल का और जैसे कि आज भारतीय जनता के ही मानक पलट चुके हैं वैसे ही पलट चुके हैं इस पार्टी के सिद्धांत .आज की भारतीय जनता अपने बड़े  बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेजने लगी है क्योंकि उसके लिए ये नाकारा हो चुके होते हैं ,किसी काम के नहीं रहते ऐ

नारी व् सशक्तिकरण :छतीस का आंकड़ा

चित्र
  नारी सशक्त हो रही है .इंटर में लड़कियां आगे ,हाईस्कूल में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा ,आसमान छूती लड़कियां ,झंडे गाडती लड़कियां जैसी अनेक युक्तियाँ ,उपाधियाँ रोज़ हमें सुनने को मिलती हैं .किन्तु क्या इन पर वास्तव में खुश हुआ जा सकता है ?क्या इसे सशक्तिकरण कहा जा सकता है ? नहीं .................................कभी नहीं क्योंकि साथ में ये भी देखने व् सुनने को मिलता है . *आपति जनक स्थिति में पकडे गए तीरंदाज, *बेवफाई से निराश होकर जिया ने की आत्महत्या , *गीतिका ने , *फिजा ने और न जाने किस किस ने ऐसे कदम उठाये जो हमारी सामाजिक व्यवस्था पर कलंक है . गोपाल कांडा के कारण गीतिका ,चाँद के कारण फिजा के मामले सभी जानते हैं और ये वे मामले हैं जहाँ नारी किसी और के शोषण का शिकार नहीं हुई अपितु अपनी ही महत्वकांक्षाओं  का शिकार हुई .अपनी समर्पण की भावना के कारण ढेर हुई ये नारियां नारी के सशक्तिकरण की ध्वज की वाहक बनने जा रही थी किन्तु जिस भावना के वशीभूत हो ये इस मुकाम पर पहुंचना चाहती थी वही इनके पतन का या यूँ कहूं कि आत्महत्या का कारण बन गया .. ये समर्पण नारी को सशक्त नहीं ह