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सभी सनातन धर्मावलंबी 10 मई को मनाएं अक्षय तृतीया - परशुराम जयंती

 अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की यह तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। बचपन से ही अक्षय तृतीया के बारे में घर के बड़े बुजुर्गों से सुनते आए हैं, आज तक इस पवित्र दिवस की सबसे विशेष पहचान हिन्दू विवाह के अबूझ मुहूर्त के रूप में होती रही है. कहते हैं कि जिसकी शादी का कोई मुहूर्त नहीं मिल पा रहा हो, उसके विवाह के लिए अक्षय तृतीया का दिन पंडितों द्वारा सुझा दिया जाता है किन्तु इस बार अक्षय तृतीया के दिन विवाह नहीं हो रहे हैं क्योंकि विवाह के प्रमुख कारक ग्रह गुरु एवं शुक्र दोनों ही अस्त हो गए हैं और जब ये दोनों ग्रह जाग्रत अवस्था में न हों तो शादी विवाह नहीं होते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है कि अक्षय तृतीया की महत्ता केवल विवाह शादी को लेकर ही हो, अक्षय तृतीया का हमारे धर्म शास्त्रों में, शुभ कार्यों में, दान पुण्यों के कार्य में बहुत महत्त्व