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महबूबा यहाँ सबकी बस कुर्सी सियासत की ,

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फुरसत में तुम्हारा ही दीदार करते हैं , खुद से भी ज्यादा तुमको हम प्यार करते हैं।   अपनों से ज़ुदा होने की फ़िक्र है नहीं , तुम पर ही जान अपनी निसार करते हैं।  झुकती हमारी गर्दन तेरे ही दर पे आकर , हम तेरे आगे सिज़दा बार -बार करते हैं।  ये ज़िंदगी है कितनी हमको खबर नहीं है , पलकें बिछाके फिर भी इंतज़ार करते हैं।  बालों में है सफेदी ,न मुंह में दाँत कोई , खुद को तेरी कशिश में तैयार करते हैं।  महबूबा यहाँ सबकी बस कुर्सी सियासत की , पाने को धक्का -मुक्की और वार करते हैं।  ''शालिनी ''देखती है देखे अवाम सारी , बहरूपिये बन -ठन कर इज़हार करते हैं।  शालिनी कौशिक      [कौशल ]