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अक्तूबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सच ! तू तो बदल गया .

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पड़ोस में आंटी की सुबह सुबह चीखने की आवाज़ सुनाई दी .... ''अजी उठो ,क्या हो गया आपको ,अरे कोई तो सुनो ,देखियो क्या हो गया इन्हें ...'' हालाँकि हमारा घर उनसे कुछ दूर है किन्तु सुबह के समय कोलाहल के कम होने के कारण उनकी आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी ,मैंने ऊपर से आयी अपनी बहन से कहा कि ''आंटी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही हैं लगता है कि अंकल को कुछ हो गया है ,वैसे भी वे बीमार रहते हैं ''वह ये सुनकर एकदम भाग ली और उसके साथ मैं भी घर को थोडा सा बंदकर भागी ,वहाँ जाकर देखा तो उनके घर के बराबर में आने वाले एक घर से दो युवक उनकी सहायता के लिए आ गए थे किन्तु अंकल को जब डाक्टर को दिखाया तो वे हार्ट-अटैक के कारण ये दुनिया छोड़ चुके थे किन्तु आंटी के बच्चे दूर बाहर रहते हैं और उनके आने में समय लगता इसलिए उन्हें यही कहा गया कि अंकल बेहोश हैं .उनके पास उनके घर का कोई आ जाये तब तक के लिए मैं भी वहीँ रुक गयी .बात बात में मैंने उनसे पूछा कि आंटी ये सामने वाली आंटी क्या आजकल यहाँ नहीं हैं ?मेरा प्रश्न सुनकर उनकी आँख भर आयी और वे कहने लगी कि यहीं हैं और देखलो आयी नहीं .मैं भी आश्

तू गुलाम है .....

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अभी अभी एक नए जोड़े को देखा पति चैन से जा रहा था और पत्नी घूंघट में ,भले ही दिखाई दे या न दे किन्तु उसे अब ऐसे ही चलने का अभ्यास करना होगा आखिर करे भी क्यूँ न अब वह विवाहित जो है जो कि एक सामान्य धारणा के अनुसार यह है कि अब वह धरती पर बोझ नहीं है ऐसा हमारे एक परिचित हैं उनका कहना है कि ''जब तक लड़की का ब्याह न हो जाये वह धरती पर बोझ है .'' मैंने अपने ही एक पूर्व आलेख '' विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं   '' में विवाह को दासता जैसी कुरीति से अलग बताया था किन्तु यह वह स्थिति है जिसमे विवाह संस्कार को वास्तविक रूप में होना चाहिए किन्तु ऐसा होता कहाँ है ?वास्तविक रूप में यहाँ कोई इस संस्था को रहने ही कहाँ देता है कहीं लड़के के माँ-बाप इस संस्कार का उद्देश्य मात्र लड़की वालों को लूटना -खसोटना और यदि देहाती भाषा में कहूँ तो'' मूंडना '' मान लेते हैं तो कहीं स्वयं लड़की वाले कानून के दम पर लड़के वालों को कानूनी दबाव में लेकर इसके बल पर ''कि दहेज़ में फंसाकर जेल कटवाएंगे ''उन्हें अपने जाल में फंसाते हैं और धन ऐंठकर ही

जनता सोना छोड़ो

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  दिल्ली के गांधीनगर में पांच वर्षीय गुडिया के साथ हुए दुष्कर्म ने एक बार फिर वहां की जनता को झकझोरा और जनता जुट गयी फिर से प्रदर्शनों की होड़ में .पुलिस ने एफ.आई.आर.दर्ज नहीं की ,२०००/-रूपए दे चुप बैठने को कहा और लगी पुलिस पर हमला करने -परिणाम एक और लड़की दुर्घटना की शिकार -ए.सी.पी. ने लड़की के ऐसा चांटा मारा कि उसके कान से खून बहने लगा .         बुरी लगती है सरकार की प्रशासनिक विफलता ,घाव करती है पुलिस की निर्दयता किन्तु क्या हर घटना का जिम्मेदार सरकार को ,पुलिस को कानून को ठहराना उचित है ?क्या हम ऐसे अपराधों के घटित होने में अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं देखते ?        १५ फरवरी सन १९९७कांधला   जिला मुजफ्फरनगर में एक दुकान में डाक्टरी कर रहे एक डाक्टर का सामान दुकान मालिक द्वारा नहर में डाल दिया गया ,सुबह जब वह अपने क्लिनिक में पहुंचा तो वहां कोई सामान न देख वह मामला समझ मार-पीट पर उतारू हो गया .दोनों तरफ से लोग जुटे और जुट गयी एक भीड़ जो तमाशबीन कही जाती है .वे डाक्टर को कुल्हाड़ी से ,लाठी से पीटते मारते रहे और जनता ये सब होते देखती रही .क्यों नहीं रोका किसी ने वह अपराध घटित होने से ?जबकि

बेघर बेचारी नारी

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निकल जाओ मेरे घर से एक पुरुष का ये कहना अपनी पत्नी से आसान बहुत आसान किन्तु क्या घर बनाना उसे बसाना सीखा कभी पुरुष ने पैसा कमाना घर में लाना क्या मात्र पैसे से बनता है घर नहीं जानता घर ईंट सीमेंट रेत का नाम नहीं बल्कि ये वह पौधा जो नारी के त्याग, समर्पण ,बलिदान से होता है पोषित उसकी कोमल भावनाओं से होता पल्लवित पुरुष अकेला केवल बना सकता है मकान जिसमे कड़ियाँ ,सरिये ही रहते सिर पर सवार घर बनाती है नारी उसे सजाती -सँवारती है नारी उसके आँचल की छाया देती वह संरक्षण जिसे जीवन की तप्त धूप भी जला नहीं पाती है और नारी पहले पिता का फिर पति का घर बसाती जाती है किन्तु न पिता का घर और न पति का घर उसे अपना पाता पिता अपने कंधे से बोझ उतारकर पति के गले में डाल देता और पति अपनी गर्दन झुकते देख उसे बाहर फेंक देता और नारी रह जाती हमेशा बेघर कही जाती बेचारी जिसे न मिले जगह उस बगीचे में जिसकी बना आती वो क्यारी- क्यारी . शालिनी कौशिक [कौशल ]

मर्द की एक हकीकत

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     मर्द की एक हकीकत  ''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया .जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है ?किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं .स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहें जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है .        सेना में प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं किन्तु अब आये दिन अपने आस पास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है .पत्नी के माध्यम से पुलिस अफसरों से मेल-जोल ये कहकर- ''कि थानेदार साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है .'' नेताओं से दोस्ती ये कहकर कि - ''मेरी बेटी से मिलिए .'' तो घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पुरु

जीएसटी ने मारा धक्का ,मुंह खोले महंगाई खड़ी .....

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वसुंधरा के हर कोने को जगमग आज बनायेंगे , जाति-धर्म का भेद-भूलकर मिलकर दीप जलाएंगे . ....................................................................... पूजन मात्र आराधन से मात विराजें कभी नहीं , होत कृपा जब गृहलक्ष्मी को हम सम्मान दिलायेंगें . ............................................................................. आतिशबाजी छोड़-छोड़कर बुरी शक्तियां नहीं मरें , करें प्रण अब बुरे भाव को दिल से दूर भगायेंगे . .............................................................................. चौदह बरस के बिछड़े भाई आज के दिन ही गले मिले , गले लगाकर आज अयोध्या भारत देश बनायेंगे . ................................................................................... सफल दीवाली तभी हमारी शिक्षित हो हर एक बच्चा , छाप अंगूठे का दिलद्दर घर घर से दूर हटायेंगे . ............................................................................... जीएसटी  ने मारा धक्का मुहं खोले महंगाई खड़ी , स्वार्थ को तजकर मितव्ययिता से इसको धूल चटाएंगे . ........................................................

तैमूर -आराध्या! प्लीज़ हमें रोटी दे दो .

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     गोविंदा की भांजी ने शेयर की बेबी बम्प की तस्वीरें ,सोहा अली खान ने अपनी बेटी की पहली झलक दी दुनिया को आदि पक गए हैं वेबसाइट पर ये समाचार देखते -देखते ,पर क्या करें जो बिकता है मीडिया वही तो बेचेगा और बॉलीवुड का तो सितारों के शरीर से उतरा कपडा तक बिकता है इसीलिए एक गाना पूरी तरह से अपने रंग में बॉलीवुड में ही बिकता है ,वो गाना आपने भी सुना ही होगा ,नहीं सुना हो तो लो अब सुन लो - ''मेरी मर्जी ,मैं चाहे ये करूँ ,मैं चाहे वो करूँ ,मेरी मर्जी .''    और ये मर्जी चलती वहीँ है जहाँ बिकती है और हकीकत यही कहती है कि बॉलीवुड बिकता है .          बॉलीवुड में स्टारडम की स्थिति से सभी वाकिफ हैं .स्टारडम की स्थिति वही है जो उगते सूर्य की है ,जैसे उगते सूर्य को सभी सलाम करते हैं ठीक वैसे ही जिस हीरो-हीरोइन का सितारा बुलंद है मतलब स्टारडम बुलंद है उसे सलाम करने वालों की स्थिति बुलंद है और जैसे ही स्टारडम का ये सितारा डूबा जैसे सब ख़त्म ,ऐसे में बहुत से स्टार हैं जिन्हें हमने अंधेरों की ज़िंदगी गुज़ारते पढ़ा है ,ललिता पंवार कब मर गयी किसी को पता नहीं चला ,उनके फ्लैट में उनकी लाश ही

कैराना -मोदी-योगी को घुसने का मौका

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             पलायन मुद्दे के शोर ने कैराना को एकाएक चर्चा में ला दिया ,सब ओर पलायन मुद्दे के कारण कैराना की बात करना एक रुचिकर विषय बन गया था ,कहीं चले जाओ जहाँ आपने कैराना से जुड़े होने की बात कही नहीं वहीं आपसे बातचीत करने को और सही हालात जानने को लोग एकजुट होने लगते ,उन्हीं दिनों मुझे भी आयोग के समक्ष एक साक्षात्कार  में जाने का अवसर मिला तो बोर्ड के सदस्यों ने यह जानते ही कि मैं कैराना में वकालत करती हूँ ,मुझसे पहला प्रश्न यही किया ''कि कैराना पलायन मुद्दे की वास्तविकता क्या है ?'' अब सच क्या है ये मैं यहाँ अपने विचारों से आपके समक्ष कुछ तो रख ही दूंगी और जानती हूँ कुछ न कुछ तो आप भी अपने आप निकाल ही लेंगे क्योंकि सच है कि आज की जनता सब जानती है ,बेवकूफ नहीं है ,किसी से पागल बनने वाली भी नहीं है .                राजनीती और गठरी उद्योग कैराना की नसों में पल रहा है .यहाँ एक तरफ नेता हैं तो दूसरी तरफ गठरी के माध्यम से तस्करी करने वाले .एक तरफ लोगों के पेट नेतागर्दी से भरता है तो दूसरी तरफ अवैध सामानों को गठरी में बांधकर बॉर्डर पार ले जाकर पैसा कमाने से ,जबकि एक स्थान

शामली में गैस रिसाव से ३०० बच्चे बीमार और चेतन भगत

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    दिल्ली -एनसीआर में ३१ अक्टूबर तक सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई ही थी कि लेखक चेतन भगत उसकी भर्तसना भी करने लग गए यह कहते हुए कि ,''यह हमारी परंपरा का हिस्सा है बिना पटाखों के बच्चों की कैसी दिवाली ?  उनकी इस ट्वीट की देखा देखी  ठाकरे भी बोले तो क्या व्हाट्सप्प पर  छोड़ेंगे पटाखे  इस तरह  सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर बवाल मचा ही था कि दिन की एक घटना ने सभी के मुंह पर ताले लगा दिए खबर यह थी - ''नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक चीनी मिल से गैस रिसाव की वजह से 300 से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए हैं. दो स्कूलों के बच्चे इस गैस रिसाव का शिकार हुए हैं. ANI के अनुसार गैस रिसाव में 30 बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है. बीमार बच्चों को पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. चीनी मिल से कौन सी गैस का रिसाव  हुआ है, इसके बारे में अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.''  अब पटाखों की तरफदारी करने वाले ज़रा एक बार गौर फरमा लें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के सामयिक व् दूरंदेशी  फायदे को तो शायद अपने मुंह पर स्वयं ही ताले लगा लेंगे .      अ

...जननी गयी हैं मुझसे रूठ .

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माँ तुझे सलाम वो चेहरा जो         शक्ति था मेरी , वो आवाज़ जो       थी भरती ऊर्जा मुझमें , वो ऊँगली जो      बढ़ी थी थाम आगे मैं , वो कदम जो     साथ रहते थे हरदम, वो आँखें जो    दिखाती रोशनी मुझको , वो चेहरा    ख़ुशी में मेरी हँसता था , वो चेहरा    दुखों में मेरे रोता था , वो आवाज़    सही बातें  ही बतलाती , वो आवाज़    गलत करने पर धमकाती , वो ऊँगली    बढाती कर्तव्य-पथ पर , वो ऊँगली   भटकने से थी बचाती , वो कदम    निष्कंटक राह बनाते , वो कदम    साथ मेरे बढ़ते जाते , वो आँखें    सदा थी नेह बरसाती , वो आँखें    सदा हित ही मेरा चाहती , मेरे जीवन के हर पहलू    संवारें जिसने बढ़ चढ़कर , चुनौती झेलने का गुर      सिखाया उससे खुद लड़कर , संभलना जीवन में हरदम      उन्होंने मुझको सिखलाया , सभी के काम तुम आना     मदद कर खुद था दिखलाया , वो मेरे सुख थे जो सारे    सभी से नाता गया है छूट , वो मेरी बगिया की माली    जननी गयी हैं मुझसे रूठ , गुणों की खान माँ को मैं     भला कैसे दूं श्रद्धांजली , ह्रदय की वेदना में बंध     कलम आगे न अब चली .            शालिनी कौशिक                 [कौशल ]