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तायफा बन गयी है देखो नेतागर्दी अब यहाँ .

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तानेज़नी पुरजोर है सियासत  की  गलियों में यहाँ , ताना -रीरी कर रहे हैं  सियासतदां  बैठे यहाँ . इख़्तियार मिला इन्हें राज़ करें मुल्क पर , ये सदन में बैठकर कर रहे सियाहत ही यहाँ . तल्खियाँ इनके दिलों की तलफ्फुज में शामिल हो रही , तायफा बन गयी है देखो नेतागर्दी अब यहाँ . बना रसूम ये शबाहत रब की करने चल दिए , इज़्तिराब फैला रहे ये बदजुबानी से यहाँ . शाईस्तगी  को भूल ये सत्ता मद में चूर हैं , रफ्ता-रफ्ता  नीलाम   हशमत मुल्क की करते यहाँ . जिम्मेवारी ताक पर रख फिरकेबंदी में खेलते , इनकी फितरती ख़लिश से ज़ाया फ़राखी यहाँ . देखकर ये रहनुमाई ताज्जुब करे ''शालिनी'' शास्त्री-गाँधी जी जैसे नेता थे कभी यहाँ . शब्दार्थ :-तानेजनी -व्यंग्य ,ताना रीरी -साधारण गाना ,नौसीखिए का गाना तलफ्फुज -उच्चारण ,सियाहत -पर्यटन ,तायफा -नाचने गाने आदि का व्यवसाय करने वाले लोगों का संघटित दल , रसूम -कानून ,शबाहत -अनुरूपता  ,इज़्तिराब-बैचनी  ,व्याकुलता   , शाईस्तगी-शिष्ट  तथा सभ्य होना ,हशमत -गौरव  ,ज़ाया -नष्ट  ,फ़राखी -खुशहाली

अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .

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अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं . खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं , मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं . तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को , फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं . फराखी इनको न भाए  ताज़िर    हैं ये दहशत के , मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं . न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे , तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं . इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को , रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं . अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये , अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .   शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,               मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,            शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,            अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .                              शालिनी कौशिक                                      [कौशल ]

सच्चाई आज की ;मेरी नज़रों में

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सच्चाई आज की ;मेरी नज़रों में  आज दशहरा है और आस पास के घरों में बाहर गए बेटे बहुओं की खिलखिलाहट सुनाई दे रही है आज ये आवाजें केवल किसी त्यौहार के अवसर पर ही सुनाई देती हैं और दिन सभी अपने अपने में व्यस्त रहते हैं  कहा जाता है कि ये आज के समय की मांग है .हम भी देख रहे हैं कि आदमी उन्नति के लिए देश विदेश मारा मारा फिर रहा है और परिवार के नाम पर अब मात्र औपचारिकता ही रह गयी है .किन्तु इसके पीछे एक सच भी है कि आज अपने बड़े आज के युवाओं को ''अपने जीवन में एक बाधा ''के तौर पर ही दिखाई देते  हैं .वे स्वतंत्रता से जीना चाहते हैं और उनकी उपस्थिति उन्हें इसमें सबसे बड़ा रोड़ा दिखती है . और इसका ही परिणाम है कि आज जो बच्चे अपने बड़ों से अलग रह रहे हैं उनके बच्चे भी कहीं और उनसे अलग ही रह रहे हैं कहा भी तो गया है कि ''जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए ''और ऐसे में वे भी वही झेल रहे हैं जो उन्होंने अपने बड़ों के साथ किया है और ऐसा नहीं है कि  संस्कार नाम की चीज जब उन्होंने अपने बच्चों में डाली ही नहीं है तो वे इसकी आशा कर भी नहीं सकते और इसलिए बुढ़ापा जिसमे

दुर्गा अष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनायें

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दुर्गा अष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनायें  शीश नवायेंगें मैया को  ; दर   पर चलकर जायेंगे  , मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें  . [मेरा भजन मेरे स्वर में ] हर  बेटी में रूप है माँ का इसीलिए पूजे मिलकर ; सफल सभ्यता तभी हमारी बेटी रहेगी जब खिलकर ; हम बेटी को जीवन देकर माँ का क़र्ज़ चुकायेंगे . मैया तेरे आशीषों से खुशियाँ खुलकर पायेंगें .                                                      जय माता दी !                                               शालिनी कौशिक                                            [कौशल ]

जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,

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                               झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में , ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं . बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ , ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं . शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे , मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं . मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें , सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं . कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर, सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं . जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें , अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .                 शालिनी कौशिक                         [कौशल] 

माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .

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माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .       मिलती है हमको माँ  उसके रहमों-करम से   ; मिलती है माँ की गोद उसके रहमों-करम से . अहकाम में माँ के छिपी औलाद की नेकी ; ममता की मिलती छाँव उसके रहमों-करम से . तालीम दे जीने के वो काबिल है बनाती ; माँ करती राहनुमाई उसके रहमों-करम से . औलाद की ख्वाहिश को वो देती  है  तवज्जह ;  माँ दिलकुशा मोहसिन उसके रहमों-करम से . कुर्बानियां देती सदा औलाद की खातिर ; माँ करती परवरिश है उसके रहमों-करम से . तसव्वुर 'शालिनी' के अब भर रहे परवाज़ ; माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .                                            शालिनी कौशिक                                                       [कौशल ] अहकाम -हुकुम ,राहनुमाई -पथप्रदर्शन ,दिलकुशा -बड़े दिलवाला ,मोहसिन -एहसान करने वाला ,तसव्वुर -कल्पना ,परवाज़ -उड़ान 

लगेंगी सदियाँ पाने में .

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लगेंगी सदियाँ पाने में ...... न खोना प्यार अपनों का लगेंगी सदियाँ पाने में , न खोना तू यकीं इनका लगेंगी सदियाँ पाने में . नहीं समझेगा तू कीमत अभी बेहाल है मन में , अहमियत जब तू समझेगा लगेंगी सदियाँ पाने में . नहीं बनता ये ऐसे ही कि चाहे जब बना ले तू , तू तोड़ेगा ये डूबेगा लगेंगी सदियाँ पाने में . यकीं और प्यार का रिश्ता बनाया ऊपरवाले ने , हुनर पाना जो चाहे ये लगेंगी सदियाँ पाने में . मिले जब प्यार अपनों का तो भर आती हैं ये आँखें , संभालेगा न गर इनको लगेंगी सदियाँ पाने में . जो आये आँख में आंसू '' शालिनी  ''पी जाना तू मन में , गिरा गर धरती पर आकर लगेंगी सदियाँ पाने में .                    शालिनी कौशिक 

[कहानी] शालिनी कौशिक :अब पछताए क्या होत

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[ कहानी] शालिनी  कौशिक : अब पछताए   क्या होत 3 अक्तूबर 2012 कैप्शन जोड़ें कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -108- शालिनी कौशिक की कहानी : अब पछताए क्या होत... आगे पढ़ें:  रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -108- शालिनी कौशिक की कहानी : अब पछताए क्या होत...   http://www.rachanakar.org/2012/10/108.html#ixzz28XpsJbQt विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे  और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही मौत का कारण मानकर खुद को भुलावा देने की कोशिश में थे .विनय की माँ के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे . बच्चे और पत्नी इधर उधर के कामों में व्यस्त थे ....नहीं थी तो बस अवंतिका......विनय की बेटी....कहाँ है अवंतिका ...छोटी सी  सबकी आँखों का तारा  आज कहाँ है ,दादा जी के आगे पीछे डोल डोल कर कभी टॉफी  ,कभी आइसक्रीम के लिए उन्हें मनाने वाली अवंतिका .....सोचते सोचते विन

अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं

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अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं ''सुविधाएँ सारी घर में लाने के वास्ते , लोगों ने बेच डाला अपना ईमान अब , आखिर परों को काटकर सैय्याद ने कहा ,हे आसमां खुली भरो ऊँची उड़ान अब .'' नहीं जानती  कि   ये शेर किस मारूफ़ शायर का है किन्तु आज सुबह समाचार पत्रों में जब अरविन्द केजरीवाल की पार्टी की विशेषताओं को पढ़ा तो अरविन्द एक सैय्याद ही नज़र आये .जिन नियमों को बना वे अपनी पार्टी को जनता के द्वारा विशेष दर्जा दिलाना चाहते हैं वे ही उन्हें इस श्रेणी में रख रही हैं .उनके नियम एक बारगी ध्यान दीजिये -     १-एक परिवार से एक सदस्य के ही चुनाव लड़ने का नियम . २-पार्टी का कोई भी सांसद ,विधायक लाल बत्ती का नहीं करेगा इस्तेमाल . ३-सुरक्षा और सरकारी बंगला नहीं लेंगे सांसद ,विधायक . ४-हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज करेंगे पार्टी पदाधिकारियों पर आरोपों की जाँच . ५-एक रूपये से उपर के सभी चंदे का हिसाब वेबसाईट पर डाला जायेगा .     क्या केवल गाँधी परिवार से अपनी पार्टी को अलग रखने के लिए एक परिवार एक सदस्य का नियम रखा गया है ?जब वकील का बच्चा वकील और डॉक्टर का

कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .

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एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की, दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने की  . जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में , आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की . लाल बहादुर सेनानी थे गाँधी जी से थे प्रेरित , देश प्रेम में छोड़ के शिक्षा थामी डोर आज़ादी की . सत्य अहिंसा की लाठी ले फिरंगियों को भगा दिया , बापू ने अपनी लाठी से नीव जमाई भारत की . आज़ादी के लिए लड़े वे देश का नव निर्माण किया , सर्व सम्मति से ही संभाली कुर्सी प्रधानमंत्री की . मिटे गुलामी देश की अपने बढ़ें सभी मिलकर आगे , स्व-प्रयत्नों से दी है बढ़कर साँस हमें आज़ादी की . दृढ निश्चय से इन दोनों ने देश का सफल नेतृत्व किया ऐसी विभूतियाँ दी हैं हमको कृतज्ञ दुनिया इस दिन की . शालिनी कौशिक [कौशल]