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जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बेटियों का हक - भाभी का अधिकार

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   यूँ तो ये एक आम घटना है, हमारे समाज की यह घर घर की सच्चाई है. या तो ननदें भाभी को खा जाती हैं या भाभी नन्द का जीना, घर में रहना मुश्किल कर देती है और ये सब तब जब सभी बेटियां होती हैं. ये एक आम चलन की बात है कि बेटियों को बोझ समझा जाता है हमारे इस रूढ़िवादी समाज में और दूसरे घर की बेटी जब अपनी ससुराल में आती है तो कहीं तो उसे दबाया जाता है, उसका शोषण किया जाता है और कहीं इसके ठीक विपरीत वह ससुरालवालों की ही सांसे छीनकर अपनी दुनिया रोशन करती है.        मंगलवार 26 जुलाई 2022 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के कोटाघाट गांव में तीन सगी बहनों सोनू, सावित्री और ललिता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. तीनों के शव घर से करीब 70 फीट दूर नीम के पेड़ पर लटके हुए मिले थे। जावर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की। जांच के दौरान पुलिस फोन के आधार पर मामले की जांच कर रही थी। आत्महत्या से पहले तीनों बहनों ने अपनी बड़ी बहन चंपक से बात की। उसके बाद सोनू ने एक वाइस मैसेज भी जीजा दीपक के मोबाइल पर भेजा था। सोनू के मोबाइल की कॉल डिटेल्स और व्हाट्सएप मैसेज खंगाले गए और उससे यह पता चला कि भाभी से तीनों बहनों का

औरतों की बीमारी - हाय रे

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  कवि शायर कह कह कर मर गए-   ''इस सादगी पे कौन न मर जाये ए-खुदा,' '''न कजरे की धार,न मोतियों के हार,न कोई किया सिंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो,तुम कितनी सुन्दर हो.'       'पर क्या करें आज की महिलाओं  के दिमाग का जो बाहरी सुन्दरता  को ही सबसे ज्यादा महत्व देता रहा है और अपने शरीर का नुकसान तो करता ही है साथ ही घर का बजट  भी बिगाड़ता है.लन्दन में किये गए एक सर्वे के मुताबिक ''एक महिला अपने पूरे जीवन में औसतन एक लाख पौंड यानी तकरीबन ७२ लाख रूपए का मेकअप बिल का भुगतान कर देती है  .इसके मुताबिक १६ से ६५ वर्ष तक की उम्र की महिला ४० पौंड यानी लगभग तीन हज़ार रूपए प्रति सप्ताह अपने मेकअप पर खर्च करती हैं .दो हज़ार से अधिक महिलाओं के सर्वे में आधी महिलाओं का कहना था कि'' बिना मेकअप के उनके बॉय  फ्रैंड उन्हें पसंद ही नहीं करते हैं .''''दो तिहाई का कहना है कि उनके मेकअप किट की कीमत ४० हज़ार रूपए है .''''ब्रिटेन की महिलाओं के सर्वे में ५६ प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि १५०० से २००० रूपए का मस्कारा खरीदने में ज्यादा नहीं सोचती

नारी खड़ी बाजार में - बेचे अपनी देह

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  अभी अभी  जब मैं चाय बनाने चली तो पहले उसके लिए मुझे चाय के डिब्बे में भरने को चाय का पैकिट खोलना पड़ा वह तो मैंने खोल लिया और जैसे ही मैं डिब्बे में चाय भरने लगी कि क्या देखती हूँ पैकिट के पीछे चाय पीने को प्रेरित करती एक मॉडल का फोटो जिसे  देखकर मन ने कहा क्या ज़रुरत थी इसके लिए ऐसे विज्ञापन की यही नहीं आज से कुछ दिन पहले समाचार पत्र की मैगजीन में भी एक ऐसा ही विज्ञापन था जिसके लिए उस अंगप्रदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं थी जो उसके लिए किया गया था .                     ये तो मात्र ज़रा सी झलक है आज की महिला सशक्तिकरण और उसके आधुनिकता में ढलने की जिसे आज के कथित आधुनिक लोगों का समर्थन भी मिल रहा है और ये कहकर की सुविधा की दृष्टि से ये सब हो रहा है मात्र चप्पल बेचने को ,चाय बेचने को ही नहीं बाज़ार की बहुत सी अन्य चीज़ों को बेचने के लिए नारी देह का इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे कि अगर नारी ने कपडे कम नहीं पहने  तो चाय तो बिकेगी ही नहीं या भारत में चाय बिकनी ही बंद हो जाएगी वैसे ही चप्पल जो कि पैरों में पहनी जाती है यदि वह कैटरिना कैफ ने न पहनी और पहनते वक़्त उनके सुन्दर अंगों का प्रदर्शन नह

मोदी - योगी और वेस्ट यू पी हाई कोर्ट खंडपीठ

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         1979 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच के लिए आंदोलन कर रहे हैं किन्तु रह रह कर आंदोलन डूबता ही जा रहा है और राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा जन्म ले लेती है कि वकील अभी भी इसके लिए तैयार नहीं हैं. कमी किसी और की है भी नहीं, कमी है ही यहां के वकीलों की क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से समर्पित होकर इसके लिए कार्य किया ही नहीं है.. आंदोलन की सबसे बड़ी कमी है सबसे अधिक जरूरत मंद का आंदोलन की जरूरत से नावाकिफ होना और उसका इसमें कोई सहयोग न होना और वह जरूरत मंद है आम जनता जिसकी भलाई इस आंदोलन की मुख्य वज़ह है किन्तु उसे आज तक केवल इतना ही पता है कि ये वकीलों की मांग है और इसे पूरी कराने के लिए ही वे आए दिन हड़ताल करते रहते हैं.             अब ये जिम्मेदारी किसकी है कि जनता आंदोलन की वास्तविक स्थिति को जाने और वकीलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो, स्पष्ट रूप से वकीलों की, ये वकीलों का ही कर्तव्य है कि वे जनता को बताएं कि वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच स्थापित होने से वकीलों के तो केवल काम में इजाफा होगा मगर जनता के तो न्यायिक हित में जो इतनी बड़ी प्रयाग राज की दूरी खड़

वाह रे प्रेम विवाह

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          गाजियाबाद जिले के वसुंधरा के सेक्टर-15 में शुक्रवार दोपहर प्रापर्टी डीलर विकास मीणा ने अपनी बैंक मैनेजर पत्नी काम्या (40) की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। आरोपी पति ने पत्नी पर 20 से ज्यादा चाकू से वार किए। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी छत पर चढ़ा और नीचे कूद गया। इस दौरान रेलिंग का सरिया उसकी जांघ में घुस गया। उसकी चीख सुनकर पड़ोस के लोग जमा हुए। सूचना पुलिस मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया। काम्या के पिता सर्वण दास ने दामाद के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया है। इंडियन ऑयल से सेवानिवृत जगदीश मीणा के अनुसार, वह पत्नी, बेटे विकास मीणा, बहू काम्या मीणा (40), पोते गर्वित और रूद्र के साथ रहते थे। विकास और काम्या का 11 साल पहले प्रेम विवाह हुआ था। शुक्रवार दोपहर करीब एक बजे विकास ने काम्या पर कई बार चाकू से वार किए।( अमर उजाला से साभार)       काम्या एक बैंक मैनेजर, विकास एक प्रॉपर्टी डीलर कहने को प्रेम विवाह करते हैं, दोनों के दो बेटे - गर्वित और रुद्र, एक विवाह का यह सुफल ही तो आज के समाज की पहली मांग है

शास्त्र सम्मत विधान पर रहें हिन्दू युवा

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      10 जुलाई 2022 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लुलु ग्रुप द्वारा एक मॉल खोला जाता है जिसका उद्घाटन करने मॉल में पहुंचते हैं उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्य मंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी, जिन्हें लुलु ग्रुप के चेयरमैन और मॉल के मालिक यूसुफ अली मॉल में खुद ड्राइव कर घुमाते हैं, मॉल के उद्घाटन के 4 दिन बाद ही मॉल में नमाज़ पढ़ने का वीडियो सामने आया और प्रदेश के माहौल में गहमागहमी आरंभ हो गई और हिन्दू संगठनों ने भी आवाज़ उठाई और कहा कि अब यहां हनुमान चालीसा भी होगा.        इसके ठीक बाद उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड राज्य की धार्मिक नगरी हरिद्वार के चिन्मय डिग्री कालेज के पास लगने वाले साप्ताहिक पैठ बाजार में सार्वजनिक स्थल पर नमाज अदा कर रहे आठ लोगों का रानीपुर पुलिस ने शांतिभंग करने के आरोप में चालान कर दिया। हर सप्ताह यहां साप्ताहिक पैठ बाजार लगता है। गुरुवार दोपहर के वक्त किसी ने पुलिस को सूचना दी कि साप्ताहिक पैठ बाजार में आए लघु व्यापारी सार्वजनिक स्थल पर नमाज अदा कर रहे हैं। सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने नमाज अदा कर रहे आठ लोगों को पकड़ लिया।       और इधर यूपी में सार्वज

बन्दरों के आतंक से दहला शामली

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 बन्दरों का आतंक, उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक लम्बे समय से फैला हुआ है, शामली, कैराना, कांधला, थाना भवन में बन्दरों के हमले में आम आदमी को घातक दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है, 8 सितंबर 2021 को कैराना के भाजपा नेता अनिल चौहान की पत्नी सुषमा चौहान बन्दरों के हमले में छत से गिरी थी और मृत्यु का शिकार हुई थी, शामली के काका नगर में एक युवक को 9 मार्च 2020 को बन्दरों ने नोच नोच कर घायल कर दिया था जिससे बचने के लिए युवक ऊंचाई से गिरकर मृत्यु का शिकार हो गया था, थाना भवन में एक बच्ची को बन्दरों ने बुरी तरह घायल कर दिया था. प्रतिदिन क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में बन्दरों के हमले में घायल लोगों द्वारा बहुत बड़ी संख्या में जाकर एंटी रेबीज के इंजेक्शन लगवाए जा रहे हैं.       बीच बीच में प्रशासन द्वारा बन्दरों को पकड़ने के लिए टीम लगाई जाती हैं किन्तु नतीज़ा ढाक के तीन पात ही नज़र आ रहा है. निरंतर जनता की मांग के बावजूद बंदरों की संख्या और उनके हमले बढ़ते जा रहे हैं और आज ही शामली जिले के सिक्का गाँव में एक महिला जसवंती कपड़े सुखाने के लिए छत पर गई और बन्दरों के हमले के कारण छत से गिर ग

सर्वश्रेष्ठ विश्वसनीय सेवा - भारतीय डाक विभाग

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      भारतीय डाक सेवा की स्थापना एक अप्रैल 1854 को हुई थी लेकिन सही मायनों में इसकी स्थापना एक अक्तूबर 1854 को मानी जाती है। तब तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड डलहौजी ने इस सेवा का केंद्रीकरण किया था। उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत आने वाले 701 डाकघरों को मिलाकर भारतीय डाक विभाग की स्थापना हुई थी। हालांकि इससे पहले लॉर्ड क्लाइव ने अपने स्तर पर 1766 में भारत में डाक व्यवस्था शुरू की थी। इसके बाद बंगाल के गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कोलकाता में एक प्रधान डाकघर बनाया था। अंग्रेजों ने इस सेवा की शुरुआत अपने सामरिक और व्यापारिक हितों के लिए की थी। मगर यह देश की आजादी के बाद भारतीयों के लिए सुख-दुख की साथी बन गई। भारत में पोस्ट ऑफिस को प्रथम बार 1 अक्टूबर 1854 को राष्ट्रीय महत्व के पृथक रूप से डायरेक्टर जनरल के संयुक्त नियंत्रण के अर्न्तगत मान्यता मिली। 1 अक्टूबर 2004 तक के सफ़र को 150 वर्ष के रूप में मनाया गया। डाक विभाग की स्थापना इसी समय से मानी जाती है। इंडिया पोस्ट भारत में सरकार द्वारा संचालित डाक प्रणाली है, जो संचार मंत्रालय के तहत डाक विभाग का हिस्सा है । आमतौर पर डाकघर

चलो भोले लेकर कांवड़ -बम बम भोले

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सावन का महीना आरंभ होने जा रहा है और इसी के साथ आरंभ होने जा रही है भोले के प्रिय भक्तजनों की चिरप्रतीक्षित कांवड़ यात्रा. इस बार कांवड़ यात्रा की महत्ता कुछ अधिक है क्योंकि दो साल से कोरोना के प्रतिबंधों के साये में भक्तजनों की आस्था को भी बाँध दिया गया था, उनके स्वास्थ्य की परवाह किए जाने के मद्देनजर देश - प्रदेश के प्रशासन द्वारा, पर इस बार कोरोना की लहर भी कमजोर है भारतीय सरकार द्वारा वैक्सीनेशन के कारण और कुछ भोले के भक्तों के हौसलों के कारण.         माना जाता है कि इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से हुई थी. मंथन से निकले विष को पीने की वजह से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था. विष का बुरा असर शिव पर ऐसा हुआ कि उनके भक्त रावण ने उस प्रभाव को कम करने के लिए तप किया. दशानन रावण कांवड़ में जल भरकर लाया और शिव का जलाभिषेक किया. यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.        केवल यही कहानी नहीं है, आस्था और विश्वास की कई कहानियां होती हैं जिनकी जड़ें इतनी मजबूत होती हैं जो समय के साथ साथ पीढ़ी दर पीढ़ी हृदय में अपनी जगह जमाती ही रहती हैं नहीं तो क्या सम्भव है हरिद्वार से पैदल उत्तर प्रदेश
  बचपन से उत्साह रहता है पर्यावरण दिवस का, वैसे तो साल भर ही पेड़ - पौधे लगाना और उनका संरक्षण करना मेरी दिनचर्या में शामिल रहा किन्तु 5 जून की बात कुछ अलग ही थी, इसलिए डायरी के पन्ने पर 5 जून को पहले ही सुंदर से शब्दों में "पर्यावरण दिवस" लिखकर सजा दिया था. सुबह घर के सभी अनिवार्य कार्य निबटा कर अपनी बगिया में पहुंच गई और क्योंकि इस बार पर्यावरण दिवस रविवार के दिन था, इसलिए तुलसी के पौधे को हाथ भी नहीं लगा सकते थे. योजना ये बनाई कि आज मैं भोलेनाथ को पसंद आने वाले फ़ूलों के पेड़ ही बगिया में लगाऊंगी और बस फिर हरसिंगार और जुही के पेड़ नर्सरी से मंगाये और काफी गहरा गड्ढा खोदकर दोनों पेड़ लगा दिए. साथ ही, कुछ पौधों के आसपास हुई घास की छँटाई भी की, उसके बाद पौधों को पानी देकर मन को सुकून की ऐसी चरम सीमा पर पाया, जहां संसार का हर सुख ऐश्वर्य छोटा पड़ जाता है. पेड़ के बढ़ने पर भोलेनाथ पर चढ़ाने के लिए सफेद फूल प्राप्त कर पाएंगे, इस बात की खुशी तो मन में थी ही, सबसे बड़ी प्रसन्नता इस बात की थी कि आज धरती माँ का कुछ कर्ज उतारने में और पर्यावरण को पुष्ट बनाने में मैंने भी अपना कुछ योग

क्या भटक गए हैं योगी - साध्वी

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  साधु (पुरुष), साध्वी (महिला)), जिसे साधु भी कहा जाता है , एक धार्मिक तपस्वी , भिक्षु या हिंदू धर्म , बौद्ध धर्म और जैन धर्म में कोई भी पवित्र व्यक्ति है जिसने सांसारिक जीवन को त्याग दिया है। उन्हें कभी-कभी वैकल्पिक रूप से योगी , संन्यासी या वैरागी के रूप में जाना जाता है ।          संस्कृत शब्द साधु (अच्छे आदमी) और साध्वी (अच्छी महिला) उन त्यागियों को संदर्भित करते हैं जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समाज के किनारों से अलग जीवन जीने का विकल्प चुना है।           साधु का अर्थ है जो ' साधना ' का अभ्यास करता है या आध्यात्मिक अनुशासन के मार्ग का उत्सुकता से अनुसरण करता है। हालांकि अधिकांश साधु योगी हैं , सभी योगी साधु नहीं हैं। एक साधु का जीवन पूरी तरह से मोक्ष (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति), चौथा और अंतिम आश्रम ( जीवन का चरण), ध्यान और ब्रह्म के चिंतन के माध्यम से प्राप्त करने के लिए समर्पित है । साधु अक्सर साधारण कपड़े पहनते हैं, जैसे हिंदू धर्म में भगवा रंग के कपड़े और जैन धर्म में सफेद या कुछ भी नहीं, जो उनके संन्यास (सांसारिक संपत्ति क