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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीतेगा खेल बढेगा प्यार.

आज सारे देश में एक ही बातचीत का विषय रह गया है और सभी जानते हैं वह है "भारत पाकिस्तान का मोहाली सेमी फाईनल "और यह मैच आज फाईनल से भी ज्यादा महत्व रखता है  क्योंकि चंद ऐसे लोग जो इसे आपसी वैर भाव का मुद्दा बना देते हैं वे इस पर हावी हैं.ये हमारे लिए गर्व की बात है और हम यही कहेंगे की हम गौरवशाली हैं जो भारत पाकिस्तान आज इस खेल में इतना ऊँचा मुकाम रखती हैं.हम में से कोई भी जीते फाईनल में दोनों भाइयों में से एक अवश्य पहुंचेगा और अगर ईश्वर की मर्ज़ी हुई तो विश्व कप भी इसी घर में आएगा.आज भले ही इस घर में दीवार खड़ी है किन्तु दिल अभी भी हमारे एक हैं और हम आपसी एकता को बाधा कर ही दम लेंगे.दोनों देशो के खिलाडी खेलेंगे अपने वतन के लिए भला इसमें आपसी वैर भाव के लिए कहाँ स्थान रह जाता है ?कोई नहीं चाहता की कोई भी अपने मुल्क से गद्दारी करे और इसलिए जब इस खेल में दोनों देशो के खिलाडी भिड़ेंगे तो पूरी ईमानदारी से खेलेंगे और यही प्रशंसा होगी खिलाडियों की और जिस किसी के खिलाडी भी अपने देश के लिए खेलते हैं वे जीतें या हारें बधाई के हकदार होते हैं क्योंकि सच्चा योद्धा कभी नहीं हारता और न ही उसे

नारी शक्ति का स्वरुप:कमजोरी केवल भावुकता/सहनशीलता

कल २६ मार्च के अमर उजाला के प्रष्ट ५ पर एक समाचार ने स्त्री शक्ति का फिर से एक उदाहरण  प्रस्तुत किया.समाचार का शीर्षक था-"बाज झपटा बच्चे पर दादी बाज पर" समाचार सुखद था क्योंकि दादी ने अपने आठ माह के पोते को बाज़ के पंजो से छुड़ा लिया.समाचार भले ही ग्राम सिसोली मुज़फ्फरनगर का हो महिला भले ही किसी एक जगह की हो किन्तु ये सर्वमान्य तथ्य है कि महिला शक्ति का स्वरुप है और वह अपनों के लिए जान की बाज़ी  लगा भी देती है और दुश्मन की जान ले भी लेती है.नारी को अबला कहा जाता है .कोई कोई तो इसे बला भी कहता है  किन्तु यदि सकारात्मक रूप से विचार करें तो नारी इस स्रष्टि की वह रचना है जो शक्ति का साक्षात् अवतार है.धेर्य ,सहनशीलता की प्रतिमा है.जिसने माँ दुर्गा के रूप में अवतार ले देवताओं को त्रास देने वाले राक्षसों का संहार किया तो माता सीता के रूप में अवतार ले भगवान राम के इस लोक में आगमन के उद्देश्य को  साकार किया और पग-पग पर बाधाओं से निबटने में छाया रूप  उनकी सहायता की.भगवान विष्णु को अमृत देवताओं को ही देने के लिए और भगवान् भोलेनाथ  को भस्मासुर से बचाने के लिए नारी के ही रूप में आना पड़ा और

किस पर विश्वास करें?

आज विश्वास की वैसे भी सभी ओर कमी होती जा रही है.जिसे देखो वह यही कहता नज़र आता है कि किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए.लेकिन मैं यहाँ किसी व्यक्ति विशेष पर विश्वास को लेकर चिंतित नहीं हूँ बल्कि मैं चिंतित हूँ आज की नामी गिरामी कुछ पत्र-पत्रिकाओं और विश्व प्रसिद्द कंपनियों की बेईमान   प्रवर्ति को लेकर .पहले तो ये बहुत बढ़ा चढ़ा कर विभिन्न प्रतियोगिताओं  की घोषणा करते हैं और उनके विजेताओं के नाम प्रचारित करते हैं और कहते हैं कि महीने भर में पुरस्कार भेज दिए जायेंगे और जब पुरस्कार प्राप्त कर्ताओं तक उनके पहुँचने की बात आती है तो पहले महीने फिर साल बीत जाते हैं और प्रतीक्षा ही बनी रहती है.            सबसे पहले बात मैं करूंगी हिंदी समाचार पत्र "राष्ट्रिय सहारा"की जिसमे   मुझे और मेरी बहन को पहले जो इनाम मिले आये लेकिन एक बार ७०० रूपए के गिफ्ट हेम्पर का पुरस्कार मिला तो तीन वर्ष बीत ने ही वाले थे और हमारा इनाम हमें नहीं मिला तब वह ईनाम पापा ने कानूनी नोटिस भेजकर हमें दिलवाया और पता है वह ईनाम ऐसा आया कि उसको हमें जल्दी जल्दी निबटाना पड़ा .दो बड़े बेग और खूब सारे धूपबत्ती के पैकट  

होली को खेलो होली और नहीं कुछ ....

  आज मुझे ब्लॉग परिवार में बहुत सी होली की शुभकामनायें मिली किन्तु दुःख यह रहा कि  इंटरनेट के सही रूप से काम  न कर पाने के कारण  मैं अभी तक किसी को भी होली की शुभकामनायें प्रेषित नहीं कर पाई हूँ फिर मैंने सोचा की क्यों न मैं एक पोस्ट के माध्यम से ये पुनीत कार्य कर ही डालूँ.     आज जब मैं बाज़ार से घर लौट रही थी तो देखा कि स्कूलों से बच्चे रंगे हुए लौट रहे हैं और वे खुश भी थे जबकि मैं उनकी यूनीफ़ॉर्म के रंग जाने के कारण ये सोच रही थी कि जब ये घर पहुंचेंगे तो इनकी मम्मी ज़रूर इन पर गुस्सा होंगी .बड़े होने पर हमारे मन में ऐसे ही भाव आ जाते हैं जबकि किसी भी त्यौहार का पूरा आनंद   बच्चे ही लेते हैं क्योंकि वे बिलकुल निश्छल भाव से भरे होते हैं और हमारे मन चिंताओं से ग्रसित हो जाते हैं किन्तु ये बड़ों का ही काम है कि वे बच्चों में ऐसी भावनाएं भरें जिससे बच्चे अच्छे ढंग से होली मनाएं.हमें चाहिए कि हम उनसे कहें कि होली आत्मीयता का त्यौहार है इसमें हम सभी को मिलजुल कर आपस में ही त्यौहार मानना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की हमारे काम से किसी के दिल को चोट न पहुंचे.ये कह कर कि "बुरा न मानो  होली

क्या यही हैं आज के समाचार.?

चित्र
सत्यपाल "अश्क"जी के शब्दों में - "मांग कर वो घर से मेरे और क्या ले जायेगा, होगा जो उसके मुक़द्दर का लिखा ले जायेगा. रास्ते ने मंजिलों को और भी भटका दिया, सोचते थे मंजिलों तक रास्ता ले जायेगा."   आज सुबह अपनी डायरी में संगृहीत शेरों को देख रही थी कि ये शेर सामने आ गया.पढ़ते पढ़ते लगा कि ये तो आज कल के समाचार पत्रों के अपने उद्देश्य से भटकने की और इंगित कर रहा है.हालाँकि हो सकता है कि उन्होंने यह शेर कुछ और सोच कर लिखा हो किन्तु मुझे यह निम्न चित्रों पर सही लगा पहले आप भी उन्ही पर ध्यान दीजिये- ये चित्र जो आप देख रहे हैं ये फैशन   समारोह कॉलेज के हैं और इन चित्रों से आज के समाचार पत्र  भरे हैं.यदि हम समाचार पत्रों के प्राचीन लक्ष्य की और ध्यान दें तो हमें ये साफ तौर पर दिखाई देगा की  तब समाचार पत्रों में देश कि ,समाज की ऐसी घटनाओं,समस्याओं की और ध्यान दिया जाता था जो समाज पर गहरे तक असर डालती थी.ऐसी विभूतियों की और ध्यान दिया जाता था जिन से प्रेरणा प्राप्त कर हम जीवन में आगे बढ़ाना सीखें,ऐसे पीड़ितों का हाल प्रस्तुत किया जाता था जिन्हें आम जनता की सहायता की आवश्यकता  

मीडिया को संभलना होगा....

राही कुरैशी के शब्दों में-    सबको पहचान लिया,देख लिया जान लिया,    एक दिन खुद को भी आईने में देखा जाये."     अक्सर हम देखते हैं कि मीडिया में लगभग हर बड़ी हस्ती कटाक्ष की शिकार होती है .कटाक्ष भी ऐसे कि पढ़ते-पढ़ते पेट दुःख जाये किन्तु ऐसा लगता है   कि मीडिया खुद इन बड़ी हस्तियों की ख़बरों की आदी हो चुकी है   इनसे सम्बंधित कोई खबर न मिले तो मीडिया का काम ठप सा ही हो जाता है .ऐसी ही एक बड़ी हस्ती है  "गाँधी परिवार"और  ये गाँधी परिवार कुछ करता है  तो मीडिया परेशान कुछ न करे तो मीडिया परेशान  .आजकल वरुण गाँधी के विवाह की ख़बरों से समाचार पत्र भरे पड़े हैं.कभी यामिनी से शादी पक्की होने की खबर,कभी ताई सोनिया को आमंत्रित करने की खबर,कभी वाराणसी में मंडप सजने की खबर ,तो कभी प्रियंका के जाने की खबर,तो कभी राहुल के हड्डी टूटने के कारण जाने न जाने के कयास की खबर आखिर क्या आज के समाचार पात्र इतने खाली पेज रखते हैं कि इनके समाचारों से ही भरे जाते हैं फिर देश की अन्य समस्याओं के लिए मीडिया इन बड़ी हस्तियों को क्यों दोषी ठहरता है  जबकि "लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ "के रूप में ख्या