नारी शक्ति का स्वरुप:कमजोरी केवल भावुकता/सहनशीलता
कल २६ मार्च के अमर उजाला के प्रष्ट ५ पर एक समाचार ने स्त्री शक्ति का फिर से एक उदाहरण प्रस्तुत किया.समाचार का शीर्षक था-"बाज झपटा बच्चे पर दादी बाज पर" समाचार सुखद था क्योंकि दादी ने अपने आठ माह के पोते को बाज़ के पंजो से छुड़ा लिया.समाचार भले ही ग्राम सिसोली मुज़फ्फरनगर का हो महिला भले ही किसी एक जगह की हो किन्तु ये सर्वमान्य तथ्य है कि महिला शक्ति का स्वरुप है और वह अपनों के लिए जान की बाज़ी लगा भी देती है और दुश्मन की जान ले भी लेती है.नारी को अबला कहा जाता है .कोई कोई तो इसे बला भी कहता है किन्तु यदि सकारात्मक रूप से विचार करें तो नारी इस स्रष्टि की वह रचना है जो शक्ति का साक्षात् अवतार है.धेर्य ,सहनशीलता की प्रतिमा है.जिसने माँ दुर्गा के रूप में अवतार ले देवताओं को त्रास देने वाले राक्षसों का संहार किया तो माता सीता के रूप में अवतार ले भगवान राम के इस लोक में आगमन के उद्देश्य को साकार किया और पग-पग पर बाधाओं से निबटने में छाया रूप उनकी सहायता की.भगवान विष्णु को अमृत देवताओं को ही देने के लिए और भगवान् भोलेनाथ को भस्मासुर से बचाने के लिए नारी के ही रूप में आना पड़ा और मोहिनी स्वरुप धारण कर उन्हें विपदा से छुड़ाना पड़ा.
हमारे संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है -
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता."
प्राचीन काल का इतिहास नारी की गौरवमयी कीर्ति से भरा पड़ा है.महिलाओं ने समय समय पर अपने साहस पूर्ण कार्यों से दुश्मनों के दांत खट्टे किये हैं.प्राचीन काल में स्त्रियों का पद परिवार में अत्यंत महत्वपूर्ण था.गृहस्थी का कोई भी कार्य उनकी सम्मति के बिना नहीं किया जा सकता था.न केवल धर्म व् समाज बल्कि रण क्षेत्र में भी नारी अपने पति का सहयोग करती थी.देवासुर संग्राम में कैकयी ने अपने अद्वित्य रण कौशल से महाराज दशरथ को चकित किया था.
गंधार के राजा रवेल की पुत्री विश्पला ने सेनापति का दायित्व स्वयं पर लेकर युद्ध किया .वह वीरता से लड़ी पर तंग कट गयी ,जब ऐसे अवस्था में घर पहुंची तो पिता को दुखी देख बोली -"यह रोने का समय नहीं,आप मेरा इलाज कराइये मेरा पैर ठीक कराइये जिससे मैं फिर से ठीक कड़ी हो सकूं तो फिर मैं वापस शत्रुओसे सामना करूंगी ."अश्विनी कुमारों ने उसका पैर ठीक किया और लोहे का पैर जोड़ कर उसको वापस खड़ा किया -
" आयसी जंघा विश्पलाये अदध्यनतम ".[रिग्वेद्य १/ ११६]
इसके बाद विश्पला ने पुनः युद्ध किया और शत्रु को पराजित किया.
महाराजा रितध्वज की पत्नी मदालसा ने अपने पुत्रों को समाज में जागरण के लिए सन्यासी बनाने का निश्चय किया .महाराजा रितध्वज के आग्रह पर अपने आठवे पुत्र अलर्क को योग्य शासक बनाया.व् उचित समय पर पति सहित वन को प्रस्थान कर गयी.जाते समय एक यंत्र अलर्क को दिया व् संकट के समय खोलने का निर्देश दिया.कुछ दिनों बाद जब अलर्क के बड़े भाई ने उसे राजपाट सौंपने का निर्देश दिया तब अलर्क ने वह यंत्र खोला जिसमे सन्देश लिखा था-"संसार के सभी ईश्वर अस्थिर हैं तू शरीर मात्र नहीं है ,इससे ऊपर उठ."और उसने बड़े भाई को राज्य सौंप देने का निश्चय किया.सुबाहु इससे अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें ही राज्य करते रहने का आदेश दिया.राजा अलर्क को राज ऋषि की पदवी मिली .यह मदालसा की ही तेजस्विता थी जिसने ८ ऋषि तुल्य पुत्र समाज को दिए.
तमलुक [बंगाल] की रहने वाली मातंगिनी हाजरा ने ९ अगस्त १९४२ इसवी में भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया और आन्दोलन में प्रदर्शन के दौरान वे ७३ वर्ष की उम्र में अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुई और मौत के मुह में समाई .
असम के दारांग जिले में गौह्पुर गाँव की १४ वर्षीया बालिका कनक लता बरुआ ने १९४२ इसवी के भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया .अपने गाँव में निकले जुलूस का नेतृत्व इस बालिका ने किया तथा थाने पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए आगे बढ़ी पर वहां के गद्दार थानेदार ने उस पर गोली चला दी जिससे वहीँ उसका प्राणांत हो गया.
इस तरह की नारी वीरता भरी कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है.और किसी भी वीरता,धैर्य ज्ञान की तुलना नहीं की जा सकती.किन्तु इस सबके बावजूद नारी को अबला बेचारी कहा जाता है.अब यदि हम कुछ और उदाहरण देखें तो हम यही पाएंगे कि नारी यदि कहीं झुकी है तो अपनों के लिए झुकी है न कि अपने लिए .उसने यदि दुःख सहकर भी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी है तो वह अपने प्रियजन के दुःख दूर करने के लिए.
कस्तूरबा गाँधी,जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में घूमकर महिलाओं में सत्याग्रह का शंख फूंका .चंपारण ,भारत छोडो आन्दोलन में जिनका योगदान अविस्मर्णीय रहा ,ने भी पतिव्रत धर्म के पालन के लिए कपडे धोये,बर्तन मांजे और ऐसे ऐसे कार्य किये जिन्हें कोई सामान्य भारतीय नारी सोचना भी पसंद नहीं करेगी.
महाराजा जनक की पुत्री ,रघुवंश की कुलवधू,राम प्रिय जानकी सीता ने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए वनवास में रहना स्वीकार किया.
हमारे अपने ही क्षेत्र की एक कन्या मात्र इस कारण से जैन साध्वी के रूप में दीक्षित हो गयी कि उसकी बड़ी बहन के साथ उसके ससुराल वालों ने अच्छा व्यव्हार नहीं किया और एक कन्या इसलिए जैन साध्वी बन गयी कि उसकी प्रिय सहेली साध्वी बन गयी थी.
स्त्रियों का प्रेम, बलिदान ,सर्वस्व समर्पण ही उनके लिए विष बना है.गोस्वामी तुलसीदास जी नारी को कहते हैं-
"ढोल गंवार शुद्रपशु नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी. "
वे एक समय पत्नी प्रेम में इतने पागल थे कि सांप को रस्सी समझ उस पर चढ़कर पत्नी के मायके के कमरे में पहुँच गए थे.ऐसे में उनको उनकी पत्नी का ही उपदेश था जिसने उन्हें विश्व वन्दनीय बना दिया था-
"अस्थि चर्ममय देह मम तामे ऐसी प्रीती,
ऐसी जो श्रीराम में होत न तो भाव भीती."
इस तरह नारी को अपशब्दों के प्रयोग द्वारा जो उसकी महिमा को नकारना चाहते हैं वे झूठे गुरुर में जी रहे हैं और अपनी आँखों के समक्ष उपस्थित सच को झुठलाना चाहते हैं .आज नारी निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही है .भावुकता सहनशीलता जैसे गुणों को स्वयं से अलग न करते हुए वह पुरुषों के झूठे दर्प के आईने को चकनाचूर कर रही है .अंत में नईम अख्तर के शब्दों में आज की नारी पुरुषों से यही कहेगी-
"तू किसी और से न हारेगा,
तुझको तेरा गुरुर मारेगा .
तुझको दस्तार जिसने बख्शी है,
तेरा सर भी वही उतारेगा ."
टिप्पणियाँ
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Naari shakti kaliyuge...aur jo nariyon ko shaktiheen mante we khud nirupaay hote hai.
Bahut accha lekhan hai...Jai ho.
नारीशक्ति की विविध प्रसंगों के माध्यम से सुंदर व्याख्या की है आपने।
प्रशंसनीय आलेख।
नारी ने अधिकारों की लम्बी शुन्यता देखी है.. थोडा समय लगेगा मुख्या धरा में आने के लिए अधिकारों को सही रूप से इस्तेमाल करने के लिए..
http://vivj2000.blogspot.com Vivek Jain
आपने तुलसीदास जी के सम्बन्ध में
'ढोल गँवार शुद्र पशु नारी ..' का सन्दर्भ अपने आलेख में किया.ये शब्द रामचरित्रमानस के सुन्दर काण्ड में समुन्द्र ने रामजी से कहे हैं.मानस में बहुत से पात्र हैं .कुछ अच्छे अनुकरणीय जैसे राम,हनुमान,भरत आदि.कुछ बुरे जैसे रावण,सूर्पनखा,खर-दूषण आदि.प्रत्येक पात्र द्वारा कही गयी बात अनुकरणीय नहीं हो सकती है.समुन्द्र पर जब रामजी ने क्रोध किया तब प्रकट होकर अपने को जड़ मानते ही उपरोक्त बात
उसने कही है .
जैसे रावण या सूर्पनखा के मुख से निकली बात को तुलसीदासजी का मत नहीं कहा जा सकता ऐसे ही समुन्द्र के द्वारा कही हर बात को तुलसीदासजी का मत नहीं कहा जा सकता,न ही उसका अनुकरणीय होना जरूरी है.
लंबी टिपण्णी के लिए छमा चाहता हूँ.
आप मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' पर
आकर गुण-दोष के आधार पर टिपण्णी करें,आपका आभारी हूँगा.
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५