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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समाज की बलि चढ़ती बेटियां

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समाज की बलि चढ़ती बेटियां 'साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है .    सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ....जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ?    इस पर यदि हम साफ तौर पर ध्यान दें तो यहाँ ऐसी स्थिति का एक मात्र दोषी हमारा समाज है जो ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '' का ही अनुसरण करता है और चूंकि लड़की वाले की स्थिति कमजोर मानी जाती है तो उसे ही दोषी ठहराने से बा

माफ़ न करना अपनी माँ को ,आना गर्भ में कभी नहीं .

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बेटी मेरी तेरी दुश्मन ,तेरी माँ है कभी नहीं , तुझको खो दूँ ऐसी इच्छा ,मेरी न है कभी नहीं . ...................................................................... नौ महीने कोख में रखा ,सपने देखे रोज़ नए , तुझको लेकर मेरे मन में ,भेद नहीं है कभी नहीं . .................................................................. माँ बनने पर पूर्ण शख्सियत ,होती है हर नारी की , बेटे या बेटी को लेकर ,पैदा प्रश्न है कभी नहीं . ....................................................................... माँ के मन की कोमलता ही ,बेटी से उसको जोड़े , नन्ही-नन्ही अठखेली से ,मुहं मोड़ा है कभी नहीं . ......................................................................... सबकी नफरत झेल के बेटी ,लड़ने को तैयार हूँ, पर सब खो देने का साहस ,मुझमे न है कभी नहीं . .................................................................... कुल का दीप जलाने को ,बेटा ही सबकी चाहत , बड़े-बुज़ुर्गों  की आँखों का ,तू तारा है कभी नहीं . ................................................................

आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

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''श्री कृष्ण-जन्माष्टमी ''एक ऐसा पर्व जो सारे भारतवर्ष में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है .अभी कुछ वर्षों से ये दो  दिन मनाया जाने लगा है .पंडितों ने इसे ''स्मार्त '' और ''वैष्णव ''में बाँट दिया है.अर्थात स्मार्त से तात्पर्य गृहस्थ जानो द्वारा और वैष्णवों से तात्पर्य कंठी माला धारण करने वाले साधू संतों द्वारा . ''जो गृहस्थ जीवन  बिताते  हैं वे स्मार्त होते हैं अर्थात जो व्यक्ति जनेऊ धारण करते हैं गायत्री की उपासना करते हैं और वेद पुराण  ,धर्म शास्त्र ,समृत्ति को मानने वाले पञ्च वेदोंपासक हैं सभी स्मार्त हैं. वैष्णव वे लोग होते हैं जिन लोगों ने वैष्णव गुरु से तप्त मुद्रा द्वारा अपनी भुजा  पर शंख चक्र अंकित करवाएं हैं या किसी धर्माचार्य से  विधिपूर्वक दीक्षा लेकर कंठी और तुलसी की माला धारण की हुई है .वे ही वैष्णव कहला सकते हैं अर्थात वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग. सामान्य जन इसे मथुरा  और गोकुल में बाँट देते हैं अर्थात एक दिन मथुरा में कृष्ण के पैदा होने की ख़ुशी में

पैदा हुए ही गला क्यूं दबा नहीं दिया .

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  न कुछ कहने की इज़ाज़त , न कुछ बनने की इज़ाज़त , न साँस लेने की इज़ाज़त , न आगे बढ़ने की इज़ाज़त .       न आपसे दो बात मन की बढ़के कह सकूं ,       न माफिक अपने फैसला खुद कोई ले सकूं ,       जो आपको लगे सही बस वो ही मैं करूँ ,       न उसको किसी हाल में मैं नहीं कह सकूं . अपनी ही बात को रखा सबसे सदा ऊपर , हालत का मेरी दोष मढ़ा मेरे ही सिर पर , माना न कहा मेरा ,औरों से दबाया , फिर उनकी बात रखकर मारी मुझे ठोकर .         बनते हैं वक्त के हमकदम ज़माने के लिए ,         दूसरों की असलियत पे होंठ सी लिए ,         देना था जहाँ साथ मेरा भविष्य के लिए ,         पैरों में मेरे बेड़ियाँ डाल खड़े हो लिए . बेटी को माना बोझ तो फिर जन्म क्यूं दिया , बेटी का भविष्य यहाँ चौपट क्यूं कर दिया , न देना था उसको अगर सुनहरा भविष्य , पैदा हुए ही गला क्यूं दबा नहीं दिया .         बेटी तो पौध है खुले आँगन में ही चले ,         सांसे उसे बढ़ने को उस हवा में ही मिलें ,         रखोगे बंद कमरे में दुनिया से छिपाकर ,         घुट जाएगी वैसे ही जैसे पौध न खिले .     शालिनी कौशिक      [WOMAN

मात्र खंडपीठ की मांग पश्चिमी यूपी से न्याय नहीं

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मात्र खंडपीठ की मांग पश्चिमी यूपी से न्याय नहीं                                                                                                                           पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथ ही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्र में ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से तो अभी हाल ही में एक फिल्म का भी निर्माण किया गया है .यही नहीं अपराधों की राजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र धन सम्पदा ,भूमि सम्पदा से इतना भरपूर है कि बड़े बड़े औद्योगिक घराने यहाँ अपने उद्योग स्थापित करने को उत्सुक रहते हैं और इसी क्रम में बरेली मंडल के शान्ह्जहापुर में अनिल अम्बानी ग्रुप के रिलायंस पावर ग्रुप की रोज़ा  विद्युत परियोजना में २८ दिसंबर २००९ से उत्पादन शुरू हो गया है .सरकारी नौकरी में लगे अधिकारी भले ही

राष्ट्रपति डाक्टर शंकर दयाल शर्मा जी के जन्मदिन पर हम सभी भारतवासियों की ओर से शत शत नमन

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विकिपीडिया से साभार   आज जन्मदिन है देश के  नौवें राष्ट्रपति  डाक्टर शंकर दयाल शर्मा जी का और वे सदैव मेरे लिए श्रद्धा के पात्र रहेंगे क्योंकि उनके बारे में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ये कि मुझे अच्छी तरह से याद है कि देश के प्रथम नागरिक के पद से जब उनकी सेवानिवृति का अवसर आया तो उनके चेहरे पर तनिक भी विषाद  नहीं था बल्कि थी हमेशा की तरह मुस्कान। आज उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर मैं आपके और अपने लिए विकिपीडिया से कुछ जानकारी जुटा  लायी हूँ और चाहती हूँ कि आप भी मेरी तरह इन महान शख्सियत को ऐसे समय में याद करें और नमन करें जब स्वयं को देश पर थोपने वाले नेताओं की केंद्र में भीड़ बढती जा रही है। तो लीजिये आप भी जानिए हमारे देश को गौरवान्वित  और स्वयं किसी भी घमंड से दूर रहने वाले सीधे सरल इन्सान शंकर दयाल शर्मा जी के बारे में - शंकरदयाल शर्मा http://hi.wikipedia.org/s/17j मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से शंकरदयाल शर्मा भारत के नवें राष्ट्रपति कार्य काल २५ जुलाई   १९९२  –  २५ जुलाई   १९९7 उप राष्ट्रपति   कोच्चेरी रामण नारायणन पूर्ववर्ती रामस्वामी वेंकटरमण उत्तरावर्ती को

महासंतोषी क़स्बा कांधला [शामली ]

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View map Kandhla Kandhla is a city and a municipal board in Muzaffarnagar district in the Indian state of Uttar Pradesh. महासंतोषी क़स्बा कांधला [शामली ] हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल ,बागों की भूमि ,देश के सभी बड़े शहरों में नाम कमाने वाली प्रतिभाओं की जन्मस्थली कांधला ,ऐसा नही कि केवल इतनी सी बातों के लिए ही प्रशंसा के योग्य है और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके लिए यह क़स्बा तारीफ के योग्य है . हमारे यहाँ एक प्रसिद्ध उक्ति है -     ''संतोष परम सुखं .'' और यह भी कि -  ''जब आवे संतोष धन सब धन धूरी सामान .'' और यही संतोष धन इस कस्बे के प्रत्येक नागरिक में  कूट कूट कर भरा है और एक तरफ जहाँ आज सम्पूर्ण विश्व विकास पाने को लालायित है ,इस कस्बे का विकास जैसे शब्द से कोई सरोकार ही नहीं है .यहाँ के नागरिक तो मात्र अपने बच्चों के नाम ही विकास रखकर अपने को विकास पथगामी समझ संतोष कर लेते हैं .    बिजली आधुनिकता की होड़ में आगे बढ़ने के लिए ,विकसित होने के लिए आज प्रथम आवश्यकता का रूप ग्रहण कर चुकी है .यहाँ के नागरिकों के लिए कोई मायने नहीं र

कुर्बान तुझ पे खून की ,हर बूँद शान से।

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फरमा रहा है फख्र से ,ये मुल्क शान से , कुर्बान तुझ पे खून की ,हर बूँद शान से। .................................................. फराखी छाये देश में ,फरेब न पले , कटवा दिए शहीदों ने यूँ शीश शान से . ..................................................  देने को साँस लेने के ,काबिल वो फिजायें , कुर्बानी की राहों पे चले ,मस्त शान से . .................................................. आज़ादी रही माशूका जिन शूरवीरों की , साफ़े की जगह बाँध चले कफ़न शान से . ..................................................................... कुर्बानी दे वतन को जो आज़ाद कर गए , शाकिर है शहादत की हर  नस्ल  शान से . ................................................................. इस मुल्क का गुरूर है वीरों की शहादत , फहरा रही पताका यूँ आज शान से . ............................................................... मकरूज़ ये हिन्दोस्तां शहीदों तुम्हारा , नवायेगा सदा ही सिर सरदर शान से . ......................................................................... पैगाम आज दे रही कुर्बानियां इ

शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .

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[शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .] ''तुझसे बद्जन न हो कल तेरा ही लहू ,      अपने बच्चों को ऐसा निवाला न दे .'' सुलेमान आदिल की ये पंक्तियाँ दिमाग पर छा गयी जब ''मुसलमान शाहरुख़ ,सलमान न रखें बच्चों के नाम ''कहकर कारी शफिकुर्रह्मान ने मेरठ की शाही ईदगाह पर ईद  की नमाज़ का माहौल बदल  दिया .   जहाँ एक तरफ वे ईद पर इन अभिनेताओं की फिल्मों का रिलीज़ होना और इन्हें देखना हमारे संस्कारों से जोड़ रहे हैं वहीँ खुद की ज़बान ,जिसे ऐसे मुक़द्दस मौके पर  केवल खुदा के पैगाम से जुडी बाते करनी चाहियें और दूसरों को भी इसी दिशा में प्रेरित करना चाहिए ,तक को वे कोई सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं  .इदुल-फितर की नमाज़ में क्या ऐसे सन्देश को खुदा से जोड़कर देखा जा सकता है ?क्या ये बन्दे खुदा के बन्दे नहीं हैं ?क्या हम इनके काम को गलत कह सकते हैं ?क्या इनका हमारे देश समाज के लिए कोई योगदान नहीं है ? हरबंस सिंह ''निर्मल ''ने कहा है - ''पिलाकर गिरना नहीं कोई मुश्किल ,             गिरे को उठाये वो कोई नहीं है . ज़माने ने हमको दिए

क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ?

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 क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ? पहले  कुछ समाचार दैनिक जागरण से साभार  रोजे का असल मकसद स्वार्थ से मुक्ति है रमजान रहमतों का माह है। हजरत अबू हुरैरा ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हदीस उद्धृत की है। जिसका भावार्थ यह है कि उन्होंने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जब रमजान शुरू होता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को बांध दिया जाता है। (पुस्तक सही बुखारी पृष्ठ 255) जन्नत के द...  और पढ़ें » फितरा निकाले बिन अधूरा है रोजा रमजान खत्म होने में कुछ समय बाकी है, रोजेदारों के घरों में ईद की तैयारी शुरू हो चुकी है। रोजेदारों में ईद आने की खुशियां हैं और रमजान खत्म होने की मायूसी। बचे समय में रोजेदार दान-पुण्य और अल्लाह की इबादत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। मस्जिदों में नमाजियों की संख्या बढ़ रही है। हर कोई कुरान शरीफ का पा...  और पढ़ें » ईद-उल-फित्र: मानवता का त्योहार मानवता का संदेश देने वाला ईद-उल-फित्र का त्योहार सभी को समान समझने और गरीबों को खुशियां देने के लिए हमें प्रेरित करता है