शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .

Shahrukh Khan in Shahrukh photos of Shahrukh Khan pictures movie film cinema indian films hindi filmSalman Khan in Salman photos of Salman pictures movie film cinema indian films hindi film
[शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .]
''तुझसे बद्जन न हो कल तेरा ही लहू ,
     अपने बच्चों को ऐसा निवाला न दे .''
सुलेमान आदिल की ये पंक्तियाँ दिमाग पर छा गयी जब ''मुसलमान शाहरुख़ ,सलमान न रखें बच्चों के नाम ''कहकर कारी शफिकुर्रह्मान ने मेरठ की शाही ईदगाह पर ईद  की नमाज़ का माहौल बदल  दिया .
 
जहाँ एक तरफ वे ईद पर इन अभिनेताओं की फिल्मों का रिलीज़ होना और इन्हें देखना हमारे संस्कारों से जोड़ रहे हैं वहीँ खुद की ज़बान ,जिसे ऐसे मुक़द्दस मौके पर  केवल खुदा के पैगाम से जुडी बाते करनी चाहियें और दूसरों को भी इसी दिशा में प्रेरित करना चाहिए ,तक को वे कोई सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं  .इदुल-फितर की नमाज़ में क्या ऐसे सन्देश को खुदा से जोड़कर देखा जा सकता है ?क्या ये बन्दे खुदा के बन्दे नहीं हैं ?क्या हम इनके काम को गलत कह सकते हैं ?क्या इनका हमारे देश समाज के लिए कोई योगदान नहीं है ?
हरबंस सिंह ''निर्मल ''ने कहा है -
''पिलाकर गिरना नहीं कोई मुश्किल ,
            गिरे को उठाये वो कोई नहीं है .
ज़माने ने हमको दिए जख्म इतने ,
             जो मरहम लगाये वो कोई नहीं है .''
अक्षरशः खरी उतरती हैं हमारे फ़िल्मी कलाकारों व् इन जैसा पेशा या व्यवसाय अपनाने  वालों पर .फिल्मे न केवल हमारे मनोरंजन का जरिया हैं अपितु हमें देश सेवा ,समाज सेवा ,मानव सेवा के लिए प्रेरित करने का भी नायाब तौहफा  हैं हमारे फिल्मकारों द्वारा.किताबें पढना हर किसी के लिए संभव नहीं होता किन्तु अभिनय प्रतिभा के दम पर ये हमारी सांस्कृतिक परम्परा ,हमारे इतिहास ,हमारी वर्तमान उपलब्धियों ,समस्याओं को हमारे सामने लाते हैं और हमें भली-भांति अवगत करते हैं .इन सबसे और इन सबका ही प्रभाव है कि लोग धार्मिक परम्पराओं व् रीति रिवाजों से गहराई तक जुड़ते हैं .हर साल देश के कोने कोने में होने वाली और दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण को इन कलाकारों ने वो जीवन्तता दी है कि राम आज जन जन के आदर्श हैं प्रिय हैं और अरुण गोविल व् दीपिका चिखलिया आज राम सीता की तरह पूजे जाते हैं .नाचने गाने वाले कह इनका अपमान करने की पुरानी परंपरा रही है .रालोद मुखिया अजित सिंह ने भी कभी अमिताभ बच्चन जी को नाचने गाने वाले कह अपमानित करने का प्रयास किया था और आज वे अमिताभ जी ही एक किवंदती बन चुके हैं अजित सिंह जी खुद देख लें कि गुजरात में पर्यटन के प्रसार के लिए अमिताभ बच्चन एक देवदूत का दर्जा पाए हुए हैं और ये तो केवल एक उदाहरण है इन नायकों के देश हित में योगदान का ,अभी हाल में ही शाहरुख़ खान की चक दे इंडिया चर्चा में है  क्योंकि वह प्रेरणा बनी है भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम की जिसने अभी विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीता है ,यही नहीं ये हमारे फिल्मकार ही हैं जिनकी प्रेरणा से हजारों युवाओं ने सेना में भर्ती होकर देश सेवा के कीर्तिमान स्थापित किये हैं .ये हमारे नायक ही हैं जो इस सन्देश का प्रसार करते हैं -
''जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे ,
जिसे पहन झाँसी की रानी मिट गयी अपनी आन पे ,
आज उसी को पहन के निकला ,पहन के निकला 
हम मस्तों का टोला -मेरा रंग दे बसंती चोला .''
और यही नहीं कोई भी धर्म का पुरोधा ,गुरु इस तरह नाचने गाने वालों का भी अपमान नहीं कर सकता क्योंकि ये पेशा जो पहले तवायफें करती थी वे राज सभाओं में सम्मानित की जाती थी और अपनी प्रतिभा के दम पर वे जन जन का मनोरंजन करती थी और आज भी जो इस पेशे को अपनाये हैं वे किसी मजबूरी वश ही ऐसा कर रही हैं किन्तु औरों की मजबूरी को दूर ही कर रही हैं उनके लिए भी तो ये फिल्मे ही कहती हैं -
''इससे आगे की अब दास्ताँ मुझसे सुन सुनके तेरी नज़र डबडबा जाएगी ,
बात अब तक जो तेरे दिल में ही थी मेरा दावा है होठों पे आ जाएगी ,
तू मसीहा मुहब्बत के मारों का है ,
हम तेरा नाम सुनके चले आये हैं ,
तू दवा दे हमें या तू दे दे ज़हर ,
......दे दुआएं तुझे उम्र भर के लिए .''
इसलिए अपमानित करना है तो उस भावना को करो जो इनके काम को गलत नज़रों से देख अपनी गलत इच्छाओं की पूर्ति चाहती है .अपमानित करना है तो उन लोगों को करो जो इन्हें गलत काम में धकेलते हैं और एक औरत को रंडी बनाकर इस्तेमाल करते हैं .
    नाम नहीं रखने हैं तो ऐसे लोगों के नामों पर मत रखो जो किसी की मेहनत को लज्जित करते हैं ,नाम नहीं रखने हैं तो ऐसे नामों पर मत रखो जो किसी की मेहनत का तिरस्कार करते हैं ,नाम नहीं रखने हैं तो ऐसे लोगों के नामों पर मत रखो जो अपराध की दलदल में गहराई तक धंसे हैं पेशेवर अपराधी हैं। 
   .शाहरुख़ सलमान ऐसे नाम हैं  जिन्हें हम महापुरुष की संज्ञा भले न दे सकते हों किन्तु महानायक अवश्य कह सकते हैं .ये वे कलाकार हैं जिन्होंने दुःख में किसी अपने का साथ न होने पर हमारा साथ निभाया है ,जिन्होंने न जाने कितने रोतों को हँसाया है और कितनों का जीवन जीने के लायक बनाया है न केवल फिल्मो के माध्यम से अपितु जनता के बीच स्वयं उपस्थित होकर भी इन्होने लोगों की मदद की है .हम क्या इतने गिर गए हैं कि इनसे केवल लेते लेते ही रहें इन्हें धन्यवाद् के प्रशंसा के दो शब्द भी न दे सकें .
    और धार्मिक मंच इस बात की इज़ाज़त नहीं देता कि मामूली प्रचार पाने के लिए स्वयं लोगों को जिस समय धर्म की अमूल्य शिक्षा ,जिससे वे अंजान हैं ,न देकर इन व्यर्थ की बातों को कहा जाये ,ये तो वाही बात हुई कि जैसे ''सावन  के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है ''वैसे ही फिल्मों की चकाचौंध का अपना अंधापन ऐसे मंच पर फैला दिया जाये .
 जनप्रियता का कुछ नहीं बिगाड़ सकती और इसलिए ये कहते हैं -
''घर गिराने को जो फतह समझ बैठा है ,
उससे कहना मेरा मयार गिराके देख .
मुझको तारीख का एक खेल समझने वाला ,
मेरे क़दमों के निशाँ मिटाके देख .''

              शालिनी कौशिक 
                         [कौशल ]


टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (11-08-2013) को "ॐ नम: शिवाय" : चर्चामंच १३३४....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
virendra sharma ने कहा…

और फिर ये तो नाटक खेलते हैं हर फिल्म में नाटक खेलते हैं जिसकी कथा अलग होती है जैसे हमारे हर जन्म की कथा अलग होती है। बढ़िया प्रस्तुति। सटीक टिपण्णी की है।
बहुत सुंदर उम्दा पोस्ट ,,,

RECENT POST : जिन्दगी.
virendra sharma ने कहा…

दो टूक और बढ़िया शर्म इनको मगर नहीं आती। शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का। ॐ शान्ति।
Anita ने कहा…
रोचक व समसामायिक पोस्ट !
Vaanbhatt ने कहा…
सटीक...खरी-खरी...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

हरियाली तीज -झूला झूलने की परंपरा पुनर्जीवित हो.

योगी आदित्यनाथ जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली