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अक्तूबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ichha

वो क्या है,कहाँ है,       है भी या नहीं            सोचने को विवश है मन. din मेरा बचता नहीं है,           rat यूँ ही कट जाती है,                 क्या यही रहेगा मेरा jeevan. मेरी इच्छा है इस जग में,             kuchh ऐसा काम मैं कर dikhlaoon, जिससे जब chhodoon जग को मैं             सारी दुनिया को याद मैं aaoon.

women right-7

पिछले दिनों मैं आपको द.प्र.सहिंता के उस संशोधन के विषय में बता रही थी जो महिलाओं की सहायता हेतु किये गए हैं.आज उसी कड़ी में आगे एक और संशोधन के विषय में और बता रही हूँ-इस अधिनियम के ५ सन २००८ के संशोधन द्वारा बलात्कार के मामलों की सुनवाई २ माह में निबटाने का न्यायालयों को निर्देश दिया गया है. अब यदि उत्तराधिकार की बात करें तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ में अगस्त २००५ के संशोधन द्वारा सभी राज्यों में पैत्रक संपत्ति में पुत्रियों को बराबर हिस्सा दिलाये जाने की व्यवस्था की गयी है. साथ ही उत्तर प्रदेश ज़मींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम १९५० के २७/२००४ के एक्ट द्वारा अविवाहित पुत्री को भी भूमि में बराबर अधिकार दिया गया है अर्थात यदि किसी भूमिधर के पत्नी पुत्री और एक पुत्र है तो भूमिधर की मृत्यु पर तीनो बराबर हिस्सा पाएंगे. आगे और पढ़ें और यदि कुछ पूछना चाहें तो वो भी पूछ सकती हैं.....

aaj ke neta

आज अगर हम देखें तो यह बात सबसे ज्यादा सिरदर्द पैदा करती है की देश की बागडोर जिन हाथों में हैं वे हाथ देश को पतन के gahre गढढे में धकेल रहे हैं.जब पथ दर्शक ही पथ-भ्रष्ट हो जाये तो विनाश निश्चित है .छोटे से chhote star से लेकर बड़े स्तर तक भ्रष्टाचार ही दिखाई दे रहा है. लोग यह कहते नज़र आते हैं की आज तो वो ईमानदार है जो पैसा लेकर काम कर दे.यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय भी बढ़ते भ्रष्टाचार से परेशान होकर सरकार को काम के पैसे निश्चित करने कि सलाह तक देते हैं.आज के इन नेताओं के बारे में तो कवि कुमार पंकज कि ये पंक्तियाँ यद् आ रही हैं.. सैकड़ों नदियों को पीकर कश्तियाँ तक खा गए, गाँव गलियां सब पचाकर बस्तियां तक खा गए, वो वतन कि भूख को कैसे मिटायेंगे भला, जो शहीदों कि चिताओं की अस्थियाँ तक खा गए.

zindgi

जिंदगी क्या है, शायद ये कोई रस्सी है, जो हमें संसार से बांधती है. नहीं यह कच्चे धागे के समान है, जो एक ही झटके से टूटकर हमें विश्व से अलग कर देती है. जिंदगी मनुष्य को मोह में फंसाकर, मोक्ष से दूर करती है. जिंदगी प्रेम भी है विवाद भी, हम इससे khushhal भी हैं बेहाल भी, फिर भी जिंदगी जिंदगी है, जिंदगी का स्थान मृत्यु ले नहीं सकती कभी, जिंदगी से ही हैं मिलती दुनिया में खुशियाँ नयी-नयी.                 स्त्री अधिकारों पर चर्चा छोड़ी नहीं है बस थोडा मूड बदलने के लिए कविता लिख rahi hoon.kripya jude rahen.

नारी , NAARI: दीपावली पर एक मुहीम चलाये - भेट स्वदेशी दे

ना री , NAARI: दीपावली पर एक मुहीम चलाये - भेट स्वदेशी दे swedeshi ke liye uttam aagrah.badhai deepawali ki in shabdon me-hum sath sath hain... poori dhara bhi sath de to aur bat hai, bas tu jara bhi sath de to aur bat hai, chalne ko to ek paun se bhi chal rahe hain log, ye doosra bhi sath de to aur bat hai. happy deepawali to all group member of naari

beti ka jeevan

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बेटी का जीवन भी देखो कैसा अद्भुत होता है, देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है. पैदा होती है जब बेटी ख़ुशी न मन में आती है, बाप के मुख पर छाई निराशा माँ भी मायूस हो जाती है. विदा किये जाने तक उसके कल्पित बोझ को ढोता है, देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है. वंश के नाम पर बेटो को बेटी से बढ़कर माने, बेटी के महत्व को ये तो बस इतना जाने, जीवन में दान तो बस एक बेटी द्वारा होता है, देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है.

women right-6

अब जो केस सर्वाधिक विचाराधीन होते हैं वे हैं भरण-पोषण के.और यदि हम विचार करें तो महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या भी भरण-पोषण की होती है.आधिकांश महिलाएं जो की अशिक्षित होती हैं विवाह के पश्चात् यदि पति द्वारा त्याग दी जाएँ तो वे अपने इस अधिकार से अंजान होने  के कारण असहाय अवस्था में पहुँच जाती हैं.जबकि कानून द्वारा दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ में निम्न प्रकार भरण पोषण की व्यवस्था की है- १२५-पत्नी संतान और माता पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश- १-यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति - क-अपनी पत्नी का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,या ख-अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे अविवाहित हो या न हो,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,या ग-अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्नी नहीं है),जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के  कारण अपना  भरण-पोषण करने में असमर्थ है,या घ- अपने पिता या माता का,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं,भरण पोषण करने की उपेक्षा  करता है या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मगिस्त्र

women right-5

निरंतर क्रम में मैं आपको आज भी भा.द.सहिंता की कुछ धाराएं और बता रही हूँ जिनका जानना आपके लिए परमावश्यक है.कृपया ध्यान दें... १४-धारा ५०९ ऐसे अपराध के लिए दंड का प्रावधान करती है जिसका शिकार महिलाओं को आये दिन होना पड़ता है जैसे कि छेड़खानी.धारा ५०९ महिला की शालीनता  को अपमानित करने के आशय से की जाने वाली अश्लील हरकतों ,अपशब्दों आदि के लिए १ वर्ष के कारावास के दंड का प्रावधान करती है. ....और जैसे कि आजकल लड़कियों/महिलाओं  पर तेजाब फेंकने की घटनाएँ बढ़ी हैं धारा ३२६ में इसके लिए भी दंड का प्रावधान है.खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वछेया घोर उपहति कारित करने पर १० वर्ष या आजीवन कारावास का प्रावधान है.         आगे मैं आपको अन्य कानूनों में भी जो महिलाओं से सम्बंधित प्रावधान हैं ,बताऊंगी .आप भी यदि कुछ पूछना चाहें तो पूछ सकती हैं.मैं यथासंभव बताने का प्रयास करूंगी. आगे कल....

women right-4

भा.द.सहिंता की अभी कुछ धाराएं और भी हैं जो महिलाओं की सुरक्षा व उन्हें न्याय दिलाने हेतु बने गयी हैं.वे निम्नलिखित हैं- ८-dhara३७६ में बलात्कार के अपराध के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है.    अध्याय २० भा.द.सहिंता जो की विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय पर है में- ९-धारा ४९३ के अनुसार विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरूष द्वारा सहवास करने पर १० वर्ष के कारावास का प्रावधान है. १०-धारा ४९४ में पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी करने पर ७ वर्ष के कारावास का प्रावधान है. ११-धारा ४९६ में धोखाधड़ी से शादी की रस्म पूरी करने पर ७ वर्ष के कारावास का प्रावधान है . १२-धारा ४९८ क किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करने पर ३ वर्ष के कारावास व जुर्माने का प्रावधान करती है.   मैं ye जानकारी आप सभी के हित में दे रही हूँ और चाहती हूँ की आप इस पर ध्यान दें और किसी अपराध की यदि दुर्भाग्य वश शिकार हो जाती हैं तो न्याय प्राप्त कर सकें .यदि आप कुछ पूछना चाहती हैं तो वह भी पूछ सकती हैं मै यथासंभव आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करूंगी.आगे कल..

vijaydashmi aur women right-3

विजयदशमी का पर्व एक ऐसा पर्व जिसे पूरा राष्ट्र हर्षो-उल्लास से माना रहा है किन्तु क्या कोई एक भी चाहता है कि इसके पीछे छिपे लक्ष्य पर भी लोगों का ध्यान केन्द्रित हो और लोग इसके आदर्श को जीवन में उतारें .भगवान राम ने पाप,असत्य अत्याचार के समूल नाश और अखिल विश्व में स्त्री सम्मान कि स्थापना के लिए यह युद्ध लड़ा और अपने आदर्शों की स्थापना के लिए अपने समस्त जीवन को जन हितार्थ समर्पित किया किन्तु आज के युग में राम कि पूजा तो हम करते हैं लेकिन जहाँ तक उनके आदर्शों पर चलने कि बात है तो मात्र शून्य दिखाई देता है स्त्रियों कि सुरक्षा खतरे में है और उनका खुद समर्थ होना आज बेहद आवश्यक हो गया है.इसी कारण में रोज़ कानून कि कुछ धाराओं के विषय में बताकर उनका मार्गदर्शन करना चाहती हूँ .इसी कड़ी में आज भा.द. सहिंता कि कुछ और धाराएं प्रस्तुत हैं.... ५-धारा ३६६-क के अनुसार जो कोई १८ वर्ष से कम आयु कि लड़की को सम्भोग हेतु विवश या उत्प्रेरित करेगा वह १० वर्ष तक के कारावास व जुर्माने से दंडनीय होगा. ६-धारा ३६६ख के अनुसार विदेश से या जम्मू-कश्मीर से सम्भोग हेतु विवश करने हेतु २१ वर्ष से कम आयु की लड़की का आयात

women right in india -2

अब आते हैं भा.द.सहिंता द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों को रोकने के लिए की गयी व्यवस्थाओं पर- १-धारा ३०४ब-दहेज़ मृत्यु से सम्बंधित है,दाह या शारीरिक क्षति द्वारा पति या पति के किसी नातेदार द्वारा प्रताड़ित करने पर यदि किसी स्त्री की मृत्यु सात वर्ष के अन्दर हो जाये तो इसे दहेज़ मृत्यु माना जायेगा और अपराधी आजीवन कारावास से दण्डित होगा. २-धारा ३१३ भा.द.सहिंता-में स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात करने पर आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है. ३-धारा ३५४-में स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने वाले के लिए दो वर्ष के कारावास व जुर्माने का प्रावधान है. ४-धारा ३६६ विवाह आदि के लिए विवश करने हेतु स्त्री का व्यपहरण या उत्प्रेरित  करने वाले के लिए दस वर्ष के कारावास का दंड निर्धारित करती है. आगे कल पढियेगा और बताइयेगा की क्या मैं सही कार्य कर रही हूँ ?

women right in india

भारत में यदि महिलाओं कि स्थिति की बात की जाये तो चंद प्रगतिशील महिलाओं को छोड़कर अधिकांश की बद से बदतर ही मिलेगी और ऐसा नहीं है की हर बार उनकी इस स्थिति के लिए पुरुष वेर्ग ही ज़िम्मेदार हो,बहुत सी बार अपनी वर्तमान दशा की उत्तरदायी महिलाएं स्वयं भी हैं.उनमे अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता कम है,बहुत सी बार पता होते हुए भी अपने परिवार के प्रति भावुकतावश वे अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती .ऐसी महिलाओं से मेरा तो बस यही कहना है कि अन्याय को सहकर आप अत्याचार को तो बढ़ावा देती ही हैं साथ ही अन्य महिलाओं के लिए भी अपराधी को प्रोत्साहित कर देती हैं.इसलिए जिन महिलाओं को अपने अधिकार पता हैं उन्हें उनका प्रयोग करन चाहिए और जिन को महिलाओं के अधिकार नहीं पता हैं उनके लिए मुझे अभी तक जितने अधिकार पता हैं क्रमवार अपने ब्लॉग "कौशल" के माध्यम से में बताऊंगी और आपसे वादा चाहूंगी कि यदि आपको अधिकार प्रयोग कि आवशयक्ता पड़ी तो आप उनका प्रयोग a वषय करेंगी; सर्वेप्रथम हम देश के सर्वोच्च कानून संविधान द्वारा  महिलाओं को दिए गए अधिकारों के विषय में जानेगे-- १-अनुच्छेद १५ के अनुसार लिंग ,धरम जाति अथवा

kasmir -a general state

आज कश्मीर को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म है.जिसे देखो इस मामले पर बोलकर अपनी राष्ट्रभक्ति प्रदर्शित कर रहा है.चलिए हम मान लेते हैं कि इस मामले पर विचार व्यक्त करने वाले सभी राष्ट्रभक्त हैं किन्तु आश्चर्य है कि कोई भी यह क्यों नहीं कहता कि कश्मीर को संविधान में विशेष दर्जा क्यों दिया गया है?भारत में जुड़े कुछ अन्य राज्यों क़ी तरह कश्मीर को भी क्यों नहीं रखा जाता?कश्मीर के महाराजा के आग्रह पर भारत ने कश्मीर क़ी मदद कीथी और उसे भारतीय गणतंत्र में सम्मिलित किया था किन्तु इसे विशेष दर्जा देना भारतीय  सरकार व भारतीय सेना के जवानो के लिए मारक बन गया.हम मानते हैं कि कश्मीर स्वर्ग है किन्तु उसे धरती वासियों के लिए ही रहने का इंतजाम करना चाहिए न क़ी मृत्यु के बाद का लोक बनाने का प्रयास.कश्मीर का बहुमत द्वारा सरकार को विशेष दर्जा समाप्त करना होगा और उसे भी भारतीय गणतंत्र के अधीन उसी तरह रहना होगा जैसेअन्य राज्य रहते हैं.     

sachin-a great indian

भारत को विश्व में एक सभ्य देश का दर्जा प्राप्त है किन्तु एक व्यवहार ने वास्तव में भारत का सर शर्म से झुकाया है और वह व्यवहार है योग्यता को पीछे धकेलने में बढती सक्रियता.यहाँ इस कार्य के लिए बड़े-बड़े षड़यंत्र रचे जाते हैं.सचिन जैसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर को रोकने के लिए भी बड़े दुष-प्रयत्न किये गए हैं.अब यह तो सचिन का भाग्य कहा जाये या सचिन के सर पर भगवान का हाथ की सचिन ने इन कठिनाइयों को पछाड़ते हुए निरंतर देश का नाम ऊँचा किया है. ४९वे टेस्ट शतक को बनाकर सचिन ने अपने आलोचकों का मुह फिर से बंद किया hai .सचिन से बार-बार सन्यास की मांग करने वालों के मुह पर यह करारा तमाचा है.किसी शायर ने शायद उन्ही की तरफ से ऐसा लिखा है- "तुम्हारे हर सितम पर मुस्कुराना हमको आता है, लगाओ आग पानी में बुझाना हमको आता है."                   ४९वे टेस्ट शतक की बधाई के साथ ५०वे एस्ट शतक के लिए अग्रिम shubhkamnayein.

savitri aaj bhi aadarsh

१० अक्तूबर २०१० को हिन्दुस्तान समाचार पत्र के रीमिक्स में 'क्षमा शर्मा' का लेख ग्लोबल गाँव की देवियाँ पढ़ा.पूरा लेख प्रेरणादायक लगा किन्तु एक बात मन को चुभ गयी.बात थी "सावित्री का उदाहरण आज बहत नेगेटिव रूप में प्रस्तुत किया जाता है".मीडिया चाहे कितना जोर लगा ले नर-नारी के इस पवित्र सम्बन्ध के महत्व से आम जनता का मन नहीं हटा सकती है.स्त्री पुरूष इस जीवन रुपी गाड़ी के दो पहिये हैं ओर दोनों एक दूसरे के प्रेरणास्रोत व शक्तिपुंज रहे हैं.समस्त नारी समुदाय के लिए सावित्री आदर्श हैं.जिस तरह पत्नी बिना घर भूतों का डेरा कहा जाता है ऐसे ही पति बिना घर अराजकता का साम्राज्य होता है.ऐसे में सावित्री द्वारा पति के प्राण यमराज से लौटा लाना पति के प्रति उनके अगाध प्रेम को दर्शाता है जो प्राकर्तिक है. यदि घर के बाहर कार्यशील होना महिलाओं के प्रगतिशील होने का परिचायक है तो घर के भीतर होना भी कोई पिछड़ेपन की निशानी नहीं है.आज ज़रूरतों के नाम पर भोतिक्वाद की प्रधानता हो गयी है,फलतः परिवार नाम की इकाई के अस्तित्व पर संकट आ गया है.इसलिए सावित्री आज के युग में नेगेटिव उदाहरण न होकर आज की महिलाओ

indira-stri shakti

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मेरा रोज़ दो अख़बार पढने का क्रम है.हिंदी का हिंदुस्तान ओर अमर उजाला.दोनों में ही ऐसे लेख छापते हैं जिन्हें पढ़े बिना सुबह की चाय नहीं पी जाती .आज हिंदुस्तान ने navratra  के उपलक्ष्य में स्त्री शक्ति पर लेख प्रकाशित किया .जिसमे इंदिरा जी को स्त्री शक्ति का प्रतीक बताया.सही लिखा हे आखिर इंदिरा जी की शक्ति ही थी जो आज भी उन्हें प्रासंगिक बनाती है.भारत जैसा देश जहाँ स्त्री को पूजनीय दर्जा प्राप्त है वहां देश के प्रधानमंत्री पद पर मात्र एक महिला का चयनित होना यहाँ की रूढ़िवादिता को प्रदर्शित करता है.इंदिरा जी के समान ही भारत में बहुत सी स्त्रियाँ हैं जो परिस्थितियों से लड़कर अपने परिवार का निर्माण करती हैं और सारी जनता के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करती हैं.सरकार ने ऐसी प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए जो प्रयत्न किये हैं वे अच्छे हैं किन्तु नाकाफी हैं.सरकार को उन्हें आगे लाने के लिए पुरूष वर्ग पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाने होंगे अन्यथा महिलाओं का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है क्योंकि हर महिला का भाग्य इंदिरा जी जैसा नहीं होता जिन्हें पारिवारिक माध्यम से आगे बढ़ने का अवसर मिला ओर अपने दिमाग से देश को शासित करने

aaj ka yuva verg

आज युवा वर्ग बहुत जोश में है.चारों ओर युवा वर्ग का आह्वान हो रहा है .हर क्षेत्र में युवाओं की भूमिका की चर्चा है किन्तु यह स्थिति केवल सही दिशा में ही नहीं गलत दिशा में भी है.युवाओं में बड़ों के प्रति सम्मान घटा है.स्वयं को बड़ों के मुकाबले अक्लमंद समझने की भावना युवाओं में हावी है.मैं जिस क्षेत्र से ताल्लुक रखती हूँ वहां मैने युवाओं में यह भावना बढ़ चढ़ कर देखी है.अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए युवा बड़े बुजुर्गों की आवाज़ दबा रहे हैं और यहाँ तक की खुलें उनका अपमान भी कर रहे हैं. उनके ऐसे व्यवहार के कारण बड़ों की सार्वजनिक जीवन में उपस्थिति घटी है और इसका प्रत्यक्ष प्रभाव सार्वजनिक कार्यक्रमों में व्याप्त उद्दंडता में दिखाई दे रहा है.कहने  पर यदि आ जायें तो आज का युवा बहुत जल्दी में है.वह अतिशीघ्र सब कुछ पा लेना चाहता है चाहे इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े. ग़ालिब के शब्दों में मुझे तो उनसे यही कहना है की सबसे पहले इन्सान बनो जो की सबसे मुश्किल है-------       "बस क़ि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,           आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसा होना."  

ramayan prabhav

रामायण का हर अंश दिल पर गहरे तक असर करता है.मन करता है कि किसी तरह राम को वन जाने से रोक दे किन्तु यही तो वेह नियति है जिसे पलटना मनुष्य के हाथ में नहीं है किन्तु जहाँ तक कुछ करने कि बात है तो रामायण से कुछ शिक्षाएँ हम ले सकते हैं और उन्हें अपने जीवन में उतरकर अपना जीवन सफल बना सकते हैं और एक आदर्श samaj कि स्थापना कर सकते हैं;-  १-माता पिता कि आज्ञा को shirodharay  करना. २-नारी का धरम वही जो महारानी सुनयना सीता उर्मिला मांडवी और श्रुतकीर्ति को समझाती हैं; ३-नारी का धरम वही जिसका पालन सीता,उर्मिला.मांडवी करती हैं. ४-पति का धरम वह जिसका पालन राम करते हैं. ५-अनुज का धरम लक्ष्मण कि तरह निभाना. ६-किसी अन्य की बात पर यकीन कर अपने घर में कभी कलह नहीं करनी चाहिए.      इस तरह यदि हम देखें तो रामायण में हर कदम पर आदर्श हैं.जिनका जीवन में उतरना आज के भोतिकवादी मनुष्य के वश में नहीं है किन्तु कुछ कोशिश तो हम कर ही सकते हैं.यदि हम ऐसी कोशिश करते हैं तो रामायण देखना या रामलीलाओं में अभिनय करना sarthak ho jayega.

pyar

प्यार की जिंदगी में          या जिंदगी में प्यार की अहमियत बहुत है; यदि हो सभी में प्यार प्यार से परिपूर्ण हो जीवन तो उस जीवन की अहमियत बहुत है; सभी प्राणी जाने प्यार को सभी व्यक्ति जियें प्यार से क्योंकि दुनिया में प्यार की अहमियत बहुत है.

ayodhya mamla

अयोध्या मामले में अब सुलह की कोशिशें की जा रही हैं जिनका कोई ओचित्य नज़र नहीं आता . जब तक मामला कोर्ट तक नहीं पहुँचता है तब तक ही उसमे सुलह के प्रयासों का कोई ओचित्य दीखता है लेकिन जब मामला कोर्ट के हाथों में पहुच जाता है तब ऐसे प्रयास बेकार नज़र आते हैं क्योंकि यदि मामला सुलह से सुलझ सकता तो उसे कोर्ट तक ले जाना ही क्यों पड़ता.साथ ही हमेशा से देखा गया है कि समझोते के होने पर सही पक्ष को हानि उठानी पड़ती है .वहीँ यहाँ निर्मोही अखाडा के अध्यक्ष भास्कर दास का ये कहना कि अखाडा परिषद् मुकदमे में न तो पक्षकार है और न ही उसका मालिकाना हक बनता है इसलिए ज्ञानदास और अंसारी के बीच वार्ता बेमतलब है,गलत है क्योंकि रामलला कोई प्रोपर्टी नहीं हैं बल्कि भक्तो के मन में बसने वाले भगवन हैं उनसे जन-जन कि भावनाएं जुडी हैं और भक्तो को भगवान से कोई अलग नहीं केर सकता .इसलिए यदि इस सम्बन्ध में कोई भी पहल होती है तो साडी जनता जुड़ने कि अधिकारी है.  

gandhiji aur serve dharm sambhav

कल महात्मा गांधीजी का जन्म दिवस है और हम सभी उन्हें  श्रधांजली देने के विषय में सोच रहे हैं अभी कल ही रामजन्म भूमि मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है और ऐसे में सारे देश में अशांति की आशंकाएं फैली हैं यदि हम गांधीजी के सच्चे अनुयायी हैं तो ऐसी कोई आशंका हमे होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि गांधीजी दोनों धर्मो के लोगों को अपनी दोनों आँखें मानते थे .ऐसे में यदि हम भी यही माने तो भला आपस में किसी विवाद की कोई जगह हमे नहीं दिखती है. सच्चे अर्थों में हिन्दू मुस्लिम एकता को कायम रखना ही गांधीजी को सच्ची श्रधांजलि होगी.एक शेर में भी यही कहा गया है....     बोली अलग अलग सही घर बार एक है,भाषाएँ मुख्तलिफ हैं परिवार एक है;     बैठे हैं एक पद की हम दल दल पर.पक्षी तरह तरह के हैं chahkar एक है.

chain ne loota chain

भारतीय नारी का जीवन अनेकों बंधनों से बंधा है.उन्ही बंधनों में से एक बंधन है सोने से जुड़ा उसके सुहाग का जीवन .मंगलसूत्र का सोने का होना नारी का सुहाग बचाता है भले ही उस मंगलसूत्र को बचाने में कोई भी हादसा घट जाये.आये दिन महिलाओं की सोने की चैन लुट रही हैं लेकिन चैन पहनने वाली महिलाओं की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है.भला सोने की चैन ही अगर सुहाग की रक्षा करती है तो उन महिलाओं के सुहाग की रक्षा कैसे होती है जिनके पति पर उन्हें सोने की चैन पहनाने के पैसे नहीं.इन अंधविश्वासों से भारतीये नारी जितनी जल्दी अपने को दूर हटा लेगी उतनी ही जल्दी विकास की रह पर आगे बढ़ सकेगी.