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शिक्षक दिवस की बधाइयाँ

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शिक्षक दिवस एक ऐसा दिवस जिसकी नीव ही हमारे दूसरे राष्ट्रपति श्रद्धेय पुरुष डॉ.राधा कृष्णन जी के जनम दिवस पर पड़ी .डॉ.राधा कृष्णन जी को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने हेतु ही देश प्रतिवर्ष ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है . सर्वप्रथम डॉ.राधाकृष्णन जी को जन्मदिन पर मैं उन्हें ह्रदय से नमन करती हूँ. . मैं जब बी.ए. में थी तो आगे के लिए करियर चुनने को मुझसे जब कहा एम्.ए.संस्कृत व् आगे पीएच डी.कर शिक्षण क्षेत्र को अपनाने का सुझाव दिया गया तो मैंने साफ इंकार कर दिया क्योंकि मैं अपने में वह योग्यता नहीं देख रही थी जो एक शिक्षक में होती है  मेरी मम्मी जिन्होंने हमें हमारे विद्यालय की अपेक्षा उत्तम शैक्षिक वातावरण घर में ही दिया वे शिक्षक बनने के योग्य होने के बावजूद घर के  कामों में ऐसी रमी की उसमे ही उलझ कर रह गयी और कितने ही छात्र छात्राएं जो उनसे स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकते थे वंचित रह गए..परिवार को प्रथम पाठशाला  और माता को प्रथम शिक्षिका कहा जाता है इसलिए मैंने सबसे पहले  अपनी शिक्षिका अपनी मम्मी को ही इस अवसर पर याद किया है ये उनका ही प्रभाव है कि हमें कभी ट्यूशन के ज़रुरत 

समाज के लिए अभिशाप बनता नशा‏

  खुशबु(इन्द्री) नशा जिसे हम एक सामाजिक बुराई कहते हैं,के कारण आज के युवा विनाश की गर्त में जा रहे हैं। आज समाज में नशाखोरी कंी प्रवृति इस कद्र अपना साम्राज्य फै ला चुकी है कि युवा इसके कारण मौत के आगोश में समा रहे हैं। आये दिन नशे की ओवरडोज के कारण  किसी न किसी घर का चिराग बुझता रहता है। नशाखोरी के कारण समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है। गांव की न्याय व्यवस्था चरमरा रही है तथा परिवार के परिवार उजड़ रहे हैं। लोगों की मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हालत बिगड़ रही है।   नई पीढ़ी में तो नशाखोरी की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। नशे के कारण तो नई युवा पीढ़ी शिक्षा प्राप्ति के मार्ग से विमुख हो रही है। व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, युवा हो या वृद्ध, महिला हो या पुरूष कोई भी वर्ग इस नशे की प्रवृति से अछूता नहीं है । घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या कालेज, गांव हो या शहर,सडक़ हो या नुक्कड़ सभी स्थानों पर नशाखोरों की जमात दिखाई देती है ।  नशाखोरी क्या है? एक बीमारी या एक प्रवृति जिसके चलते इंसान अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है। यह केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है। इसी प्

रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.

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गूगल से साभार तू ही खल्लाक ,तू ही रज्ज़ाक,तू ही मोहसिन है हमारा. रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा. एक आशियाँ बसाया हमने चैनो -अमन  का   , नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा. कुदरत के नज़ारे बसे हैं इसमें जा-ब-जा, ये करता तज़्किरा है संसार हमारा. मेहमान पर लुटाते हैं हम जान ये अपनी , है नूर बाज़ार-ए-जहाँ ये मुल्क  हमारा. आगोश में इसके ही समां जाये '' शालिनी '' इस पर ही फ़ना हो जाये जीवन ये हमारा. कुछ शब्द अर्थ- खल्लाक-पैदा करने वाला,रज्ज़ाक-रोज़ी देने वाला मोहसिन-अहसान करने वाला,सब्ज़ाजार-हरा-भरा महरे आलमताब -सूरज,नाकाबिले-तकसीम--अविभाज्य तज़्किरा-चर्चा,बाज़ार-ए-जहाँ--दुनिया का  बाज़ार आगोश-गोद या बाँहों में,जा-ब-जा--जगह-जगह शालिनी कौशिक