रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.
गूगल से साभार
तू ही खल्लाक ,तू ही रज्ज़ाक,तू ही मोहसिन है हमारा.
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.
एक आशियाँ बसाया हमने चैनो -अमन का ,
नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा.
कुदरत के नज़ारे बसे हैं इसमें जा-ब-जा,
ये करता तज़्किरा है संसार हमारा.
मेहमान पर लुटाते हैं हम जान ये अपनी ,
है नूर बाज़ार-ए-जहाँ ये मुल्क हमारा.
आगोश में इसके ही समां जाये ''शालिनी''
इस पर ही फ़ना हो जाये जीवन ये हमारा.
कुछ शब्द अर्थ-
खल्लाक-पैदा करने वाला,रज्ज़ाक-रोज़ी देने वाला
मोहसिन-अहसान करने वाला,सब्ज़ाजार-हरा-भरा
महरे आलमताब -सूरज,नाकाबिले-तकसीम--अविभाज्य
तज़्किरा-चर्चा,बाज़ार-ए-जहाँ--दुनिया का बाज़ार
आगोश-गोद या बाँहों में,जा-ब-जा--जगह-जगह
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
जय भारत....
आपको बहुत-बहुत --
बधाई ||
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आते हैं बड़े धूम से गणपति जी,
सबके दिलों में बसते हैं गणपति जी,
उमंग से भरा हो सबका चेहरा,
यही है मेरी गणेश चतुर्थी की शुभकामना ! हमारी भी यही है शुभकामना आपके लिए आपके परिवार के लिए .आप की ब्लोगिया दस्तक हमारे लिए महत्वपूर्ण है .शुक्रिया !
जन आक्रोश आर हर शू मुखरित है .शुक्रवार, २ सितम्बर २०११
शरद यादव ने जो कहा है वह विशेषाधिकार हनन नहीं है ?
शालिनी जी आपके विमत का सदैव ही स्वागत है .आभार !यह विमर्श ही तो हमारी ताकत है .
गूगल से साभार
तू ही खल्लाक ,तू ही रज्ज़ाक,तू ही मोहसिन है हमारा.
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा.
एक आशियाँ बसाया हमने चैनो -अमन का ,
नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा.शब्दार्थ देकर आपने इस ज़ज्बाती रचना को और भी अर्थ पूर्ण बना दिया है .अप्रतिम लेखन के लिए बधाई !
आते हैं बड़े धूम से गणपति जी,
सबके दिलों में बसते हैं गणपति जी,
उमंग से भरा हो सबका चेहरा,
यही है मेरी गणेश चतुर्थी की शुभकामना ! हमारी भी यही है शुभकामना आपके लिए आपके परिवार के लिए .आप की ब्लोगिया दस्तक हमारे लिए महत्वपूर्ण है .शुक्रिया !
जन आक्रोश आर हर शू मुखरित है .शुक्रवार, २ सितम्बर २०११
शरद यादव ने जो कहा है वह विशेषाधिकार हनन नहीं है ?
"उम्र अब्दुल्ला उवाच :"
September 3, 2011 1:00 PM
नाकाबिले-तकसीम यहाँ प्यार हमारा.
कुदरत के नज़ारे बसे हैं इसमें जा-ब-जा,
ये करता तज़्किरा है संसार हमारा.
देशभक्ति की सुंदर रचना
बहुत हि शानदार पस्तुति शालिनीजी
जय हिंद।