[कहानी] शालिनी कौशिक :अब पछताए क्या होत



[कहानी] शालिनी  कौशिक :अब पछताए क्या होत

3 अक्तूबर 2012

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कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -108- शालिनी कौशिक की कहानी : अब पछताए क्या होत...



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विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही मौत का कारण मानकर खुद को भुलावा देने की कोशिश में थे .विनय की माँ के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे .बच्चे और पत्नी इधर उधर के कामों में व्यस्त थे ....नहीं थी तो बस अवंतिका......विनय की बेटी....कहाँ है अवंतिका ...छोटी सी सबकीआँखों का तारा आज कहाँ है ,दादा जी के आगे पीछे डोल डोल कर कभी टॉफी ,कभी आइसक्रीम के लिए उन्हें मनाने वाली अवंतिका .....सोचते सोचते विनय अतीत में पहुँच गया.
मम्मी पापा का इकलौता बेटा होने का खूब सुख उठाया विनय ने ,जो भी इच्छा होती तत्काल पूरी की जाती ,अब कॉलिज जाने लगा था .मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रहती पर मम्मी ,वो तो शायद बेटे के प्यार में अंधी थी ,कहती -''यही तो उम्र है  अब नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा .''और पापा शायद पैसा कमाने में ही इतने व्यस्त थे कि बेटे की कारगुज़ारी पता ही नहीं चलती और यदि चल भी जाती तो जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है ऐसे ही पैसे के आगे उन्हें कुछ नहीं दिखता .
ऐसे ही गुज़रती जा रही थी विनय की जिंदगी .एक दिन वह  माँ के साथ बाज़ार गया .....मम्मी..मम्मी ....मम्मी विनय फुसफुसाया ...हाँ ... मम्मी बोली तब विनय ने माँ का हाथ पकड़कर कहा -''माँ !मेरी उस लड़की से दोस्ती करा दो ,देखो कितनी सुन्दर ,स्मार्ट है .हाँ ...सो तो है ..मम्मी ने कहा ...पर .बेटा ...मैं नहीं जानती उसे ...मम्मी प्लीज़ ...अच्छा ठीक है .....कोशिश करती हूँ ,तुम यहीं रुको मैं आती हूँ .मम्मी उस लड़की के पास पहुंची ,''बेटी !हाँ हाँ ....मैं तुम्ही से कह रही हूँ .जी -वह युवती बोली ...क्या अपनी गाड़ी में तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगी...,पर ...आंटी मैं आपको नहीं जानती हूँ न आपके घर को फिर भला मैं आपको आपके घर कैसे छोड़ सकती हूँ  .... युवती ने हिचकिचाते हुए कहा ..बेटी मेरी तबीयत ख़राब हो रही है ,मेरा बेटा साथ है पर वह बाईक पर है और मुझे कुछ चक्कर आ रहे हैं .....यह कहते हुए मम्मी ने थोड़े से चक्कर आने का नाटक किया ....लड़की कुछ घबरा गयी और उन्हें गाड़ी में बिठा लिया ....अच्छा आंटी अब अपना पता बताओ ,मैं घर पहुंचा दूँगी ....मम्मी ने धीरे धीरे घर का पता बताया और आराम से गाड़ी में बैठ गयी .
''लो आंटी ''ये ही है आपका घर ,युवती बोली ..हाँ बेटी ...यही  है ...''आओ आओ अन्दर तो आओ ''गाड़ी से उतारते हुए मम्मी ने कहा ,नहीं आंटी जल्दी है .... ....फिर कभी ...ये कह युवती ने जाना चाहा  तो मम्मी बोली....नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता ..... तुम मेरे घर तक आओ और बिना चाय पिए चली जाओ ...मम्मी की जबरदस्ती के आगे युवती की एक नहीं चली और उसे घर में आना ही पड़ा .थोड़ी ही देर में विनय भी आ गया .विनय बेटा....तुम इनके साथ यहाँ बैठो ,मैं चाय लेके आती हूँ ...बीमार मम्मी एकदम ठीक होती हुई रसोईघर में चली गयी और थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम से हंसने खिलखिलाने की आवाज़ आने लगी .
फिर तो ये रोज़ का सिलसिला शुरू हो गया .एक दिन विनय एक लड़की के साथ ड्राइंगरूम में उसकी गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था कि पापा आ गए .पापा !आप ....कहकर हडबड़ाता  हुआ विनय उठा ....हाँ मैं ये कहकर गुस्सा दबाये पापा बाहर चले गए ....पर विनय घबरा गया और लड़की को फिर मिलने की बात कह टाल दिया .घबराया विनय मम्मी के पास पहुंचा ,''मम्मी मम्मी !....क्या है इतना क्यूं घबरा रहा है ?मम्मी पापा आये थे ....पापा आये थे ....कहाँ हैं पापा ..इधर उधर देख मम्मी ने विनय से पूछा और साथ ही कहा तू कहीं पागल तो नहीं हो गया ....नहीं मम्मी ...पापा आये थे और हॉल में मुझे सिमरन की गोद में सिर रखे देखा तो गुस्से में वापस लौट गए .तो तू क्यूं घबरा रहा है ..तेरे पापा को तो मैं देख लूंगी ...तू डर मत ....और हुआ भी यही... रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .
आज विनय की शादी है .मम्मी पापा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं और विनय उसे तो फोन सुनने से ही फुर्सत नहीं ,''अरे यार !कल को मिल रहा हूँ न ,तुम गुस्सा क्यूं हो रही हो ,अच्छा यार कल को मिलते हैं कहकर फोन को काट दिया ...विनय ..हाँ मम्मी ...बेटा ये फोन अभी बंद कर दे कल से जो चाहे करना ....जी मम्मी ...आई लव यू  ..आई लव यू बेटा ...और इस तरह के स्नेहपूर्ण संबोधन के संचार होते ही फोन बंद कर दिया गया .शादी हो गयी .
धीरे धीरे विनय की बाहर की जिंदगी के साथ घर की जिंदगी चलती रही .कहीं कोई बदलाव नहीं था बदलाव था तो बस इतना ही कि विनय के एक बेटा और एक बेटी हो गयी थी .कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .
''विनय'' पापा ने गुस्से में विनय को पुकारा तो विनय अन्दर तक कांप उठा  ''जी पापा!''थाने से फोन आया है ...''क्यूं ''विनय असमंजस भरे स्वर में बोला ..अभय ....तेरा बेटा ...मेरा पोता ..चांदनी जैसे बदनाम होटल में एक कॉल गर्ल के साथ पकड़ा गया है ...''क्याआआआआआअ ''विनय का मुंह खुला का खुला रह गया ...उसकी इतनी हिम्मत ...मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगा ''विनय का मुहं गुस्से से लाल हुआ जा रहा था ...क्यूं मैंने कौन तुम्हे मार डाला ...पापा ने विनय से प्रश्न किया तो विनय सकते  में आ गयाअब पहले अभय की जमानत करनी है फिर देखते हैं क्या करना है चलो मेरे साथ ...पापा के साथ जाकर विनय अभय को घर तो ले आया लेकिन अभय को माफ़ नहीं कर पाया .
एक दिन सुबह जब विनय ने देखा कि घर के सभी लोग सो रहे हैं तो वो अभय के कमरे में पहुँच गया ..पर ये क्या ...अभय वहां नहीं था ..विनय थोड़ी देर अभय का वहां इंतजार कर बाहर निकलने ही वाला था कि पीछे से पापा आ गए ...अभय अब तुम्हे नहीं मिलेगा ...क्यूं पापा? मैंने उसे उसके मामा के घर भेज दिया है ...अच्छे काबिल लोग हैं कम से कम वहां रहकर अभय काबिल तो बनेगा तुम्हारे जैसा आवारा निठल्ला नहीं ...तभी विनय की मम्मी वहां आ गयी और तेज़ आवाज़ में बोली ,''किसने कहा आपसे कि मेरा विनय आवारा निठल्ला है और किसने हक़ दिया आपको अभय को उसके मामा के घर भेजने का ,मैं कहती हूँ आप होते कौन हैं परिवार की बातों में बोलने वाले ,किया क्या है आपने हम सबके लिए ,पैसा वो तो ज़मीन जायदाद से हमें मिलता ही रहता ,आपने कौन कारोबार में अपना समय देकर हमारी जिंदगी बनायीं है ,विनय मेरा बेटा है और मुझे पता है कि वह कितना काबिल है और जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे के लिए दो मिनट भी मिले हैं आपको ..'' विनय की मम्मी बोले चली जा रही थी और विनय के पापा का दिल बैठता जा रहा था ..कितनी मेहनत और संघर्षों से उन्होंने ज़मीन जायदाद को दुश्मनों से बचाया था ...कैसे दिन रात एक कर कारोबार को ऊँचाइयों पर पहुँचाया था ..विनय की मम्मी को इससे कोई मतलब नहीं था ...पापा बीमार रहने लगे और विनय और उसकी मम्मी की बन आई अब उन्हें दिन या रात की कोई परवाह नहीं थी और उधर विनय की पत्नी दिन रात बढती विनय की आवारागर्दी से तंग हर वक़्त रोती रहती थी .घर में नौकरानी से ज्यादा हैसियत नहीं थी उसकी ,उसकी अपनी इच्छा का तो किसी के लिए कोई मूल्य नहीं था .
उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी .''दादीईईईईईईईईईईईइ ,मैं कॉलिज जा रही हूँ शाम को थोड़ी देर से आऊंगी....क्यूं ...वो मेरी बर्थडे पार्टी दी है नील व् निकी ने होटल में ...ठीक है कोई बात नहीं ....आराम से मजे करना बर्थडे कोई रोज़ रोज़ थोड़े  ही आती है ...थैंक यू दादी ,''सो नाईस ऑफ़ यू ''कह अवंतिका ने दादी के गालों को चूम लिया और उधर अवंतिका की मम्मी उसे रोकना चाहकर भी रोक नहीं पाई क्योंकि अवंतिका माँ के आगे से ऐसे निकल गयी जैसे वो उसकी माँ न होकर कोई नौकरानी खड़ी हो .
रात गयी सुबह हो गयी अब शाम के चार बजने वाले थे अवंतिका घर नहीं आई ...दादी ने अवंतिका को ..उसके दोस्तों को फोन मिलाया पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया ..परेशां होकर दादी ने विनय से कहा ,''विनय ..अवंतिका कल सुबह घर से गयी थी अब तक भी नहीं आई ''और आप मुझे अब बता रही हो -विनय गुस्से से बोला .कल उसका बर्थडे था और वह बता कर गयी थी कि दोस्तों ने होटल में पार्टी दी है ..रात को देर से आऊंगी ....घबराते हुए मम्मी ने कहा ..और आपने उसे जाने दिया ..आपको उसे रोकना चाहिए था ...मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे और उसमे अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .
विनय देर रात थका मांदा टूटे क़दमों से घर में घुसा तो मम्मी एकदम से पास में आकर बोली ...कहाँ है अवंतिका ...विनय कहाँ है वो ....मम्मी वो रॉकी के साथ भाग गयी ...क्याआआआआआअ  रॉकी के साथ ,हाँ नील ने मुझे बताया और कहा ये प्लान तो उनका एक महीने से बन रहा था  सुन मम्मी अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गयी ...पापा जो अब तक चुप बैठे थे बोले ,''विनय की मम्मी देख लिया अपने लालन पालन का असर यही होना था ,जो आज़ादी तुम बच्चों के लिए वरदान समझ रही थी उसमे यही होना था .बच्चों की इच्छाएं पूरी करना सही है किन्तु सही गलत में अंतर करना क्या वे कहीं और से सीखेंगे कहते कहते पापा कांपने लगे ....पापा आप शांत हो जाइये मैं अवंतिका को ढूंढ लाऊंगा ....बेटा मैं जीवन भर चुप ही रहा हूँ यदि न रहता तो ये दिन न देखना पड़ता कहते कहते पापा रोने लगे और निढाल होकर गिर पड़े ..
''विनय ''चलो बेटा ...सुन जैसे सोते से जाग गया हो उठा और अपने पापा के अंतिम संस्कार के लिए सिर झुका अर्थी के साथ चल दिया .

घोषणा पत्र
प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न कहानी मौलिक, पूर्णतः अप्रकाशित व अप्रसारित है, तथा इसे रचनाकार-ऑर्ग (http://rachanakar.org में कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन में सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है. मुझे रचनाकार-ऑर्ग की तमाम शर्तें, उनके निर्णय समेत, मान्य होंगे.

टिप्पणियाँ

virendra sharma ने कहा…
.मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने......(सुनाईं).... कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .

.कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो......(रातों रातों )..... अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .

जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे......(उसमें ).... आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे

उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको......(लड़कों ).... के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी

मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे....(मुझमें ).... और उसमे....(उसमें )... अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .

उसमे ....(उसमें )....यही होना था

परिवेश प्रधान बेहद सशक्त कहानी .सोहबत और संस्कार दूर तलक पीढ़ी -दर-पीढ़ी जाते हैं .यही इस वातावरण प्रधान कहानी का हासिल है .बधाई .सशक्त कहानी के लिए .शुभकामनाएं .शालिनी जी .
Rajesh Kumari ने कहा…
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
virendra sharma ने कहा…
मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने......(सुनाईं).... कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .

.कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो......(रातों रातों )..... अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .

जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे......(उसमें ).... आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे

उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको......(लड़कों ).... के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी

मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे....(मुझमें ).... और उसमे....(उसमें )... अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .

उसमे ....(उसमें )....यही होना था

परिवेश प्रधान बेहद सशक्त कहानी .सोहबत और संस्कार दूर तलक पीढ़ी -दर-पीढ़ी जाते हैं .यही इस वातावरण प्रधान कहानी का हासिल है .बधाई .सशक्त कहानी के लिए .शुभकामनाएं .शालिनी जी .

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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )
virendra sharma ने कहा…
.मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने......(सुनाईं).... कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .

.कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो......(रातों रातों )..... अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .

जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे......(उसमें ).... आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे

उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको......(लड़कों ).... के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी

मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे....(मुझमें ).... और उसमे....(उसमें )... अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .

उसमे ....(उसमें )....यही होना था

परिवेश प्रधान बेहद सशक्त कहानी .सोहबत और संस्कार दूर तलक पीढ़ी -दर-पीढ़ी जाते हैं .यही इस वातावरण प्रधान कहानी का हासिल है .बधाई .सशक्त कहानी के लिए .शुभकामनाएं .शालिनी जी .

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प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )
virendra sharma ने कहा…


Virendra Kumar SharmaOctober 9, 2012 6:24 AM
.मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने......(सुनाईं).... कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .

.कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो......(रातों रातों )..... अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .

जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे......(उसमें ).... आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे

उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको......(लड़कों ).... के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी

मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे....(मुझमें ).... और उसमे....(उसमें )... अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .

उसमे ....(उसमें )....यही होना था

परिवेश प्रधान बेहद सशक्त कहानी .सोहबत और संस्कार दूर तलक पीढ़ी -दर-पीढ़ी जाते हैं .यही इस वातावरण प्रधान कहानी का हासिल है .बधाई .सशक्त कहानी के लिए .शुभकामनाएं .शालिनी जी .

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