शायद ही अन्य कोई वकील भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना अड़ कर अपने मुवक्किल के साथ खड़ा हो पाता-हनीफ अहमद

हमारे पिताजी की कांधला में स्टेट बैंक के पास लॉन्ड्री की शॉप थी, जो उन्होंने 73 रुपये महावार पर लगभग बीस वर्ष से लाला बद्री प्रसाद जी से किराये पर ली हुई थी। अस्सी के दशक में दुकान मालिक ने हमसे दुकान खाली करने के लिए कहा। यह हमारे लिए संभव नहीं था। पिताजी बीमार चल रहे थे और हमारा परिवार बड़ा था जिसके भरण-पोषण के लिए यह शॉप हमारा मजबूत सहारा थी। दुकान की लोकेशन परिवर्तित करने से हमारा व्यवसाय ठप्प हो जाता। अतः कैराना अदालत में 'बशीर अहमद बनाम बद्री प्रसाद' मुकदमा बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी से दायर कराया। इसमें हमारी जीत हुई। विपक्षियों ने इस निर्णय के विरुद्ध अपर जिला जज न्यायालय में अपील कर दी। उनके वकील बाबू तेजेंद्र कुमार थे और हमारे बाबू कौशल प्रसाद जी ही थे।

      मुकदमे के दौरान हमारे पिता जी श्री बशीर अहमद व विपक्षी लाला बद्री प्रसाद की मृत्यु हो जाने के कारण दोनों पक्षों के वारिस कायम कराये गये। लाला बद्री प्रसाद के पोते श्री मनोज अग्रवाल व मैंने (हनीफ अहमद) ने मुकदमे में पैरवी की। मुकदमे की अपील में तत्कालीन अपर जिला जज श्री मुन्नी लाल ने किरायेदारी कानून का खुलकर उल्लंघन करते हुए विपक्षियों के पक्ष में निर्णय दे दिया। हमारे वकील साहब श्री कौशल प्रसाद जी ने उस पाइंट के आधार पर मुझे उच्च न्यायालय इलाहाबाद से स्टे लेने भेजा तथा मेरे वकील श्री ए.के. योग नियुक्त कराये। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तुरंत स्टे दे दिया किंतु विपक्षियों ने मेरे इलाहाबाद जाने का फायदा उठाकर पुलिस के साथ सांठगांठ कर मेरी दुकान खाली करा दी।

       विपक्षी उच्च न्यायालय इलाहाबाद से मिले हमारे स्टे के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे। वहां मैने बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी द्वारा बताये गये बिंदुओं को स्वयं दो जजों की बैंच के समक्ष रखा। यद्यपि वहां अंग्रेजी में कार्य किया जा रहा था किंतु मेरे द्वारा हिंदी में बात रखने को बैंच ने स्वीकार किया व सहानुभूतिपूर्वक मुझे सुना। उन दो जजों में एक शायद जस्टिस एस.पी. भरुच थे। इस सब का परिणाम यह निकला कि बैंच ने हाईकोर्ट इलाहाबाद को अपर जिला जज श्री मुन्नी लाल के विरूद्ध भ्रष्टाचार के आरोप की जांच हेतु समिति गठित करने का आदेश दिया।

9, 10, 11 दिसंबर 1998 को माननीय न्यायमूर्ति श्री एस सी वर्मा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति ने मेरे, मेरे भाई सलीम व माता जी तथा विपक्षी श्री मनोज अग्रवाल व हमारे वकील साहब श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के बयान दर्ज किये। कौशल प्रसाद जी ने मुझे पहले ही निर्देशित कर दिया था कि हम श्री मुन्नीलाल द्वारा लिए गए आर्थिक लाभ को सुबूत के माध्यम से प्रमाणित नहीं कर सकते पर सत्य यह है कि उन्होनें इसी कारण गलत निर्णय दिया है। अतः सवालों के जवाब सोच समझ कर देना। मेरे भाई व माता जी ने जांच समिति के समक्ष बस इतना कहा कि मुकदमे का सारा काम हनीफ ही देखता है। हम कुछ नहीं कह सकते।

इसके पश्चात जांच समिति के सामने मैं प्रस्तुत हुआ। जब जांच समिति ने मुझसे पूछा कि क्या रुपये का लेन देन तुम्हारे सामने हुआ था ? तब मैंने कहा कि मैंने तो लाला जी को कोर्ट से बाहर आते हुए यह कहते हुए सुना था कि 20 हजार रुपये देकर हमने अपना काम करा लिया है। रुपये दिए या नहीं - यह मैं नहीं कह सकता हूँ। बहरहाल, जांच समिति ने सेवानिवृत्त अपर जिला जज श्री मुन्नीलाल द्वारा दिए गए गलत निर्णय व भ्रष्टाचार के आरोपों को सही पाया और उन्हें बर्खास्त किया गया। मेरा मानना है कि यह केवल हमारे ईमानदार व कानून का बारीकी से ज्ञान रखने वाले बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के मार्गदर्शन से ही संभव हो पाया। यदि अन्य कोई वकील होता तो वह भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद ही इतना अड़ कर अपने मुवक्किल के साथ खड़ा हो पाता।

द्वारा

हनीफ अहमद

कांधला (शामली)

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