बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट के संपूर्ण जीवन के समर्पण को कठघरे में खड़े करने की नकारात्मक प्रवृत्ति के गर्भ से हुआ इस पुस्तक का सृजन -डॉ शिखा कौशिक 'नूतन '

 


भूमिका

पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। 

पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता ।।

अर्थात पिता ही थर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं।

'पद्मपुराण' का यह श्लोक एक संतान के जीवन में पिता की महत्ता को प्रतिपादित करने के लिए पर्याप्त है। पिता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के मूल शब्द 'पितृ' से हुई है। इस शब्द की व्युत्पत्ति 'पा' धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- रक्षा करना तथा पालन करना। ऋग्वेद की ऋचा में पिता को समस्त कल्याण व करुणा का प्रतीक घोषित किया गया है। पिता हमारे जीवन के दाता ही नहीं वरन मार्गदर्शक भी हैं। पितृ प्रधान समाज में हमारा परिचय हमारे पिता के नाम से ही कराया जाता है। समाज व हमारे बीच की कड़ी पिता ही हैं। हम उनकी ऊंगली पकड़ कर चलना ही नहीं सीखते बल्कि उनके जीवन के अनुभवों से अपने जीवन की दिशा भी निर्धारित करते हैं। कैथरीन पल्सिफेर ने सत्य ही कहा कि "पिता, पिताजी, पापा चाहे आप उन्हें कुछ भी करें, वे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और वे वही व्यक्ति हैं जिन्हें हम (हर परिस्थिति में आदर्श आचरण क्या होना चाहिए? यह हम पिता से ही सीखते हैं) देखते हैं।"

हमें स्व. बाबू कौशल प्रसाद जी जैसे पिता की संतान होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह हमारे संचित पुण्य कर्मों का प्रतिफल रहा होगा। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने आराध्य श्री राम के समान विपत्ति काल में भी कभी मर्यादा का उल्लंघन न किया। निजी व व्यावसायिक जीवन में अनेक विश्वासघात सहे पर किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया। आलोचनाओं का सामना करते हुए अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। जीवन में अनेक वज्रपात सहते हुए भी न कभी नास्तिक हुए और न सदाचरण से विरत. सकारात्मक ऊर्जा से युक्त व्यक्तित्व वाले बाबूजी घोर नकारात्मक माहौल में भी संघर्ष पथ पर अग्रसर रहे। कुटिल परिस्थितियों का उपहास उनके लक्ष्य प्राप्ति के व्रत को कभी भंग न कर पाई, यद्यपि वे इस नीतिपरक उक्ति से भलीभांति परिचित थे कि -

'न गणस्याग्रतो गच्छेत्सिद्धे कार्ये समं फलम।

यदि कार्यविपत्तिः स्यान्मुखरस्तत्र हन्यते ।।'

अर्थात- किसी भी समूह का अग्रणी नहीं बनना चाहिए क्योंकि सफल हो जाने पर सभी को बराबर लाभ होता है और यदि कार्य बिगड़ता है तो अग्रणी ही मारा जाता है।

बाबूजी निरंतर अधिवक्ता हित हेतु बार एसोसिएशन कैराना के माध्यम से सेवा करते रहे। बाबू जी के जीवन का बिम्ब जब भी हमारे मानस में उभरा तब हमें वे कांटों से भरे पथ पर नंगे पांव चलते हुए दिखाई पड़े जैसे चौदह वर्ष के वनवास पर निकले श्री राम दण्डकारण्य में असंख्य चुभते कंटकों से युक्त पथ पर देवी सीता व अनुज श्री लक्ष्मण के साथ बढ़ें चले जा रहे हैं। यहीं से बाबू जी के जीवन पर आधारित पुस्तक का शीर्षक संभवतः मन व मस्तिष्क में कौंधा होगा।

यह भी स्पष्ट है कि जून 2020 से पूर्व ऐसी किसी पुस्तक के सृजन की कल्पना हमने नहीं की थी। पिता से जुड़ी स्मृतियां हमारी नितांत निजी पूंजी थी। समाज व अधिवक्ता हित में किए गए उनके कार्यों से सामान्य जन व अधिवक्ता परिचित हैं ही-ऐसा हमारा मानना था किंतु हमारी इस सोच को सत्र 2020 के लिए निर्वाचित बार एसोसिएशन कैराना की कार्यकारिणी के एक निर्णय ने चुनौती दी। निर्वाचित कनिष्ठ उपाध्यक्ष पद से शालिनी कौशिक एडवोकेट ने इस्तीफा दे दिया।

बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी द्वारा किए गए कार्यों के प्रति अनभिज्ञता जाहिर करते हुए एक माननीय महोदय द्वारा शालिनी कौशिक एडवोकेट से बाबू जी द्वारा किए गए कार्यों का कागजी प्रमाण मांगा गया और इसी भीषण नकारात्मकता के गर्भ में इस पुस्तक के सृजन रूपी भ्रूण ने आकार लेना आरंभ कर दिया। सुख दुख, जीवन मृत्यु के समान सकारात्मकता व नकारात्मकता का भी सापेक्षिक महत्व है। एक के होने से ही दूसरे का अस्तित्व संभव है। किसी भी सृजन का मूल मानवीय जीवन में व्याप्त नकारात्मकता के विरुद्ध संघर्ष ही है, यदि यह कहा जाए तो कदापि प्रकृति विरुद्ध कथन न होगा।

एक व्यक्तित्व के संपूर्ण जीवन के समर्पण को कठघरे में खड़े करने की इस नकारात्मक प्रवृत्ति के विरुद्ध संघर्ष के लिए सर्वप्रथम 4 अगस्त 2020 को 'बाबू कौशल स्मृति ग्रुप' व्हाट्सएप पर सजित किया गया। ग्रुप पर बाबू जी के समकालीन अनेक अधिवक्ताओं ने उनसे जुड़े अपने संस्मरण साझा किए व नये अधिवक्ताओं ने बाबू जी के विषय में और अधिक जानने की जिज्ञासा व्यक्त की। श्री इमरान चौहान एडवोकेट जी ने भी बाबू जी की स्मृति में पुस्तक प्रकाशित करने का निवेदन किया। उनके ही शब्दों में- 'मेरा आप दोनों सिस्टर्स से निवेदन है कि बाबू जी की स्मृति में एक पुस्तक लिखी जानी चाहिए ताकि आने वाली पीढी को पता चले कि उनका बार और समाज के हित में कितना योगदान रहा है और उस पुस्तक को बार एसोसिएशन कैराना की लाइब्रेरी में रखा जाये।' ऐसे ही सुझावों ने हमारे प्रण को निरंतर नयी दृढ़ता प्रदान की।

यद्यपि हम सभी भलीभांति परिचित हैं कि समाज व अपने कार्यक्षेत्र में समर्पित भाव से अपना योगदान करने वाले व्यक्तित्व अपने जीवन में तो सराहना पाते ही हैं वरन देह अवसान के पश्चात एक बहुत बड़े वर्ग की स्मृतियों में गहराई तक समा जाते हैं। आने वाली पीढ़ियों को उनका परिचय उनकी विशिष्ट कार्यक्षमता से जुड़े किस्सों आदि के रूप में सुनने को मिलते हैं। कुछ नकारात्मक ऊर्जा से युक्त विपरीत विचारधारा के व्यक्ति ऐसे व्यक्तित्व के देहावसान को सुअवसर के रूप में लेकर उसके द्वारा किए गए कार्यों का श्रेय स्वयं लेने का प्रयास करने लगते हैं अथवा उसके द्वारा किए गए कार्यों के प्रति अनभिज्ञता दिखाते हुए प्रमाण दिखाने की मांग करते हैं। यद्यपि महान व्यक्तित्व न तो किसी श्रेय के लिए कोई कार्य करता है और न ही पत्थरों पर नाम लिखाने के लिए किंतु कृतज्ञ जन अपने आदर्श व्यक्तित्व की स्मृतियों को अमरत्व प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी भी ऐसे ही व्यक्तित्व रहे हैं। उनकी स्नेहिल स्मृतियों व जन हित, अधिवक्ता हित में किए गए कार्यों को यथासंभव प्रामाणिक कागजात के साथ प्रस्तुत करना संपादक द्वय का उद्देश्य रहा है।

बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के जीवन (जन्म, शिक्षा, विवाह, रूचियां आदि) व अधिवक्ता हित में किए गए कार्यों पर आधारित यह पुस्तक हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कौशल प्रसाद- 'कंटक पथ पर नंगे पांव': Kaushal Prasad synonyms with truth" संयुक्त रूप से प्रकाशित की जा रही है। पुस्तक का उद्देश्य बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के सामाजिक व अधिवक्ता कल्याण हेतु किए गए कार्यों को प्रकाश में लाना है ताकि सृजन का यह बीज साजिशों का शिकार होकर भागते वक्त की मिट्टी के नीचे दफ्न न कर दिया जाये।

बाबू जी के दो प्रिय व सम्मानित बंधु स्व. श्री प्रेमचंद गुप्ता जी व बार एसोसिएशन कैराना के पूर्व अध्यक्ष स्व. श्री मदन मोहन एडवोकेट जी लेखन के दौरान ब्रह्मलीन हुए। मदन मोहन जी अपने संस्मरण साझा करने के इच्छुक थे किंतु उनके खराब स्वास्थ्य के कारण यह संभव नहीं हो पाया। हम परम पिता परमात्मा से पुण्यात्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करने की प्रार्थना के साथ विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास जी की कुछ पंक्तियों को उधृत करते हुए आप सभी के सहयोग व शुभकामनाएं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं तथा नकारात्मक सोच को लक्ष्य कर कहना चाहते हैं -


सियासत ! मैं तेरा खोया या पाया हो नहीं सकता, 

तेरी शर्तों पे गायब या नुमाया हो नहीं सकता, 

भले साजिश से गहरे दफ्न मुझ को कर भी दो पर मैं

 सृजन का बीज हूँ मिट्टी में जाया हो नहीं सकता।।


डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

कांधला, जनपद मुजफ्फरनगर, उ.प्र.


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