कभी भी अपने निजी हित को आड़े नहीं आने दिया बाबू कौशल प्रसाद जी ने - आलोक मिश्रा एडवोकेट
बाबू कौशल प्रसाद जी अधिवक्ता हित के लिए तथा बार एसोसिएशन कैराना की उन्नति हेतु अहर्निश प्रयत्नशील रहते थे ,जिसके लिए उन्होंने न कभी दिन देखा न कभी रात देखी, न जात देखी न बिरदारी देखी. कौशल प्रसाद जी वास्तव में विधि मस्तिष्क के व्यक्तित्व थे ,साथ ही कवि हृदय होने के कारण बहुत ही साफ ,निर्मल मन के स्वामी थे .अधिवक्ता हित के लिए उन्होंने कभी भी अपने निजी हित को आड़े नहीं आने दिया .इसी कारण उनका जीवन ईमानदारी से पूर्ण अत्यंत सादगी भरा था. मेरी याद में बाबूजी कई बार न्यायालय कक्ष में ही पीठासीन अधिकारियों से अधिवक्ता हित के लिए अधिवक्तागण का पक्ष दृढ़ता से प्रस्तुत कर दिया करते थे ,चाहे इससे उनके निजी हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो .
बाबूजी वर्षों-वर्षों बार संघ कैराना के पदाधिकारी रहे ,परन्तु जिन वर्षों में बाबूजी पदाधिकारी नहीं रहे थे ,उन वर्षों में भी आम अधिवक्ताओं के साथ-साथ बार के पदाधिकारी भी बिना उनकी विधिक राय लिए हुए व् बिना उनका सहयोग लिए हुए कोई भी कार्य करने में अपने आपको असमर्थ पाते थे .
श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के सफल निर्देशन व मार्गदर्शन में ही वर्ष 1991-92 में जब कैराना न्यायालय में मात्र 100-125 अधिवक्ता हुआ करते थे ,तत्कालीन ए सी जे एम श्री सुरेश चंद जैन के कठोर व्यवहार व कार्यप्रणाली के विरुद्ध एक माह से अधिक समय तक न्यायालय कक्ष की तालाबंदी करके धरना-प्रदर्शन आदि किया गया है, तथा वर्ष 1993-94 में मेरे सामने बाबूजी श्री सी.के.कुलश्रेष्ठ तत्कालीन मुंसिफ कैराना से अधिवक्ता हित की बात रखते हुए अत्यंत ही आवेशित हो गए थे तथा न्यायालय कक्ष से बाहर आ गए थे .बाबूजी के व्यक्तित्व की ये मह्त्ता ही थी कि बाद में श्री कुलश्रेष्ठ जी को भी उनका पक्ष स्वीकार करना पड़ा .
यहाँ मैं बड़े दुःख के साथ यह कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ कि श्री कौशल जी की मृत्यु के उपरांत आज तक उनके समकक्ष अधिवक्ता हित सर्वोपरि समझने वाला विधि-वेत्ता दूसरा कोई बार संघ कैराना को उपलब्ध नहीं हो सका है .आजकल के परिवेश में तो अधिवक्ता हित की आड़ में निजी हित व् प्रचार-प्रसार की भावना अधिक देखने में आती है .
आदरणीय बाबूजी का वरदहस्त व स्नेह मुझे उनके जीवन में निरंतर प्राप्त रहा , साथ ही मैं सौभाग्यशाली महसूस करता हूँ ,हमारे कई पारिवारिक आयोजनों में मात्र निमंत्रण कार्ड देने पर ही उन्होंने उपस्थित होकर हमें अनुग्रहित किया .मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री के.पी.मिश्रा जी बाबूजी से कई बार मिले थे तथा बाबूजी के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे .मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि साहित्य ,कला व संगीत प्रेमी व्यक्ति हृदय का अत्यंत निर्मल होता है ,जिसे बाबूजी वास्तविक रूप में चरितार्थ करते थे .
सादर नमन सहित आलोक मिश्रा
आलोक मिश्रा एडवोकेट ,
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
शामली स्थित कैराना
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