सबसे अलग रुतबा था बाबू कौशल प्रसाद जी का-विशाल भटनागर


शायर ने क्या खूब शायरी की होगी इन चंद पंक्तियों के साथ-

"मंजिलों की खोज में तुमको जो चलता-सा लगा,

मुझको तो वो जिंदगी भर घर बदलता-सा लगा,

धूप आई तो हवा का दम निकलता-सा लगा,

और सूरज भी हवा को देख जलता-सा लगा।।"

संजय ग्रोवर

    आज मैं ईमानदार और रूतबा कायम करने वाले ऐसे ही एक अधिवक्ता के जीवन पर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, जिन्होंने न केवल लंबे समय तक एक काविल अधिवक्ता के रूप में कैराना कचहरी में वकालत की बल्कि बार एसोसिएशन कैराना जैसी सुदृढ़ संस्था को खड़ा कर अधिवक्ता हित में दो दशक से ज्यादा समय तक इसके अध्यक्ष पद को सुशोभित भी किया।

       कहते हैं कि जब इच्छा शक्ति प्रबल हो तो मुश्किलें भी अपने आप ही आसान हो जाती हैं. बाबू कौशल प्रसाद जी ने एक ईमानदार अधिवक्ता के रूप में जो वकालत की यात्रा आरंभ की वह अनेक उतार चढ़ावों के बावजूद निरंतर जारी रही।

       यही ईमानदारी उनके भीतर उस दृढ़ इच्छा शक्ति को प्रगाढ़ करती रही जिसके बल पर उन्होंने बार एसोसिएशन कैराना को बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से सम्बद्ध कराकर समस्त अधिवक्ताओं को बार एसोसिएशन कैराना के सदस्य के रूप में एक सम्मानजनक व सुरक्षित स्थान प्रदान कराने में सफलता प्राप्त की।

       वकालत के पेशे को आजीविका के रूप अपनाने के बावजूद पैसे को महत्व न देते हुए उन्होंने गरीब वर्ग के सैंकड़ों लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान कर उन्हें न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

      मेरा स्पष्ट मत है कि स्व. श्री कौशल प्रसाद जी ने जिस विशिष्ट भाषा-शैली, वाकपटुता और गहन कानूनी ज्ञान के साथ मुकदमों में अपनी बात रखी, उसी कारण उन्हें अधिकांशतः कानूनी क्षेत्र में सफलता व प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वास्तव में उनका रुतबा व पहचान सबसे अलग थी।


विशाल भटनागर

वरिष्ठ पत्रकार

कैराना (शामली)

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पत्र और पत्रोत्तर

''ऐसी पढ़ी लिखी से तो लड़कियां अनपढ़ ही अच्छी .''