पापा की सांसें शायद कैराना में ही अटकी रहती थी-पुत्री शालिनी कौशिक एडवोकेट
पिता एक ऐसा सम्बन्ध, जिस पर एक बेटी की जिंदगी और सम्मान दोनों निर्भर करता है। मेरे पिता स्व. बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी इन दोनों ही कसौटियों पर पूरी तरह से खरे उतरे हैं। हमें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत किन्तु हमारी रुचि अभिरुचि में कभी कोई दखल नहीं रखने वाले थे मेरे पापा। हमारी शिक्षा का पूरा दायित्व हमारी माता जी संभालती थी। स्कूल व महाविद्यालय के शिक्षक व क्लर्क ऑफिस से पापा का परिचय रहता था। हमारी शिक्षिकाओं को भी यदि कभी कानूनी सहायता की आवश्यकता हुई तो वे पापा से मिली और पापा ने उनका कार्य कराने के लिए उन्हें कभी कैराना कचहरी के चक्कर नहीं काटने दिए किन्तु कभी पठन-पाठन या अंक बढ़ोतरी के संबंध में इस परिचय का उन्होनें अवैध लाभ लेने का प्रयास नहीं किया।
पापा के स्वभाव की सहृदयता की न केवल हमारी शिक्षिकाएं बल्कि क्षेत्र के नागरिक मुक्त कंठ से प्रशंसा करते रहे हैं. ये पापा की सहृदयता का ही असर था कि हमारे राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में एक 'सैनी बहनजी' (विद्यालय में शिक्षिकाओं को दीदी और बहनजी कहने का ही नियम था) जो अपने पारिवारिक विषाद के कारण मानसिक संतुलन खो चुकी थी किन्तु ऐसी मानसिक तनाव की स्थिति में भी पापा के प्रति सम्मान का भाव रखती थीं, ने एक बार क्लास की सभी छात्राओं को शोर मचाने पर खड़ा कर दिया और सभी के सिर पर स्केल मारा किन्तु मुझे छोड़ दिया, ऐसा ही, मेरे ही विद्यालय में पढ़ रही मेरी छोटी बहन के साथ हुआ।
सिगरेट पीना उनका शौक था, उन्हें चेन स्मोकर कहा जाना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है. कैराना में भी लगभग सभी अधिवक्ता और मुन्शी, मुवक्किल उनके सिगरेट पीने के बारे में बताते हैं और जिस दिन पापा घर पर रहते थे तब भी अपना काम करते हुए भी और खाली बैठे हुए भी सिगरेट पीते रहते थे. पापा का अपने निर्धारित कार्यों में ही दिमाग लगा रहता था और उसके लिए उन्होंने विलासितापूर्ण सुख ऐश्वर्य जुटाने की कोशिश नहीं की.
एकाग्रचित्त होना पापा के व्यक्तित्व की विशिष्टता थी। अपने कार्य में संलग्न पापा को आसपास क्या घटित हो रहा? कौन क्या बोल रहा है? गर्मी, सर्दी किसी का कोई अहसास नहीं होता था। अपने ऑफिस में बैठकर जो कार्य करना होता था, वह करते थे, वहां पंखा तक नहीं लगा था किंतु हमने उन्हें काम करते समय कभी गर्मी से परेशान होते हुए नहीं देखा.
प्रातः व सोने के समय हिन्दुस्तान टाइम्स पढ़ना और ऑल इंडिया रेडियो पर समाचार सुनना, दूरदर्शन पर समाचार देखना इसके लिए वे समय निकाल ही लेते थे। यह उनकी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पकड़ ही कही जाएगी कि 21 मई 1991 को रात दस बजकर बीस मिनट पर विविध भारती पर फिल्मी गानों का कार्यक्रम रुका और समाचार वाचक ने आल इन्डिया कॉग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कहा तो पापा ने खाना खाते से खुद को रोककर एकदम कह दिया कि राजीव गांधी की हत्या हो गई है और आगे समाचार वाचक उनके कथन की पुष्टि कर रहा था.
स्व. श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट जी अपने मुवक्किलों का साथ मजबूत कानूनी ज्ञान व कौशल के आधार पर देते थे और ऐसे में यदि कानून से अधिकार प्रदान कराने पर भी मुवक्किल उसका फायदा नहीं उठा पाता था तो उस पर गुस्सा होने में भी देर नहीं लगाते थे. हमें याद है कि पापा ने अपने एक मुवक्किल रघुवीर को खेती की जमीन के मुकदमे में स्टे दिला रखा था किंतु वह स्टे होते हुए भी अपनी जमीन पर कब्जा नहीं ले पाता था तो पापा उस पर बहुत गुस्सा होते थे किंतु रघुवीर पापा के गुस्से का कारण जानता था इसलिए कभी भी उसने पापा से अपना मुकदमा वापस नहीं लिया. ऐसे ही, हमारे कस्बा कांधला में एक लेकिन नाम का रिक्शा चालक है. उसका अपना कोई मामला पड़ने पर उसने पापा से स्वयं बात करने से डरते हुए भी पापा के एक मित्र और मुवक्किल स्व डॉ राजकुमार जैन जी को बीच में रखकर पापा से ही अपने मुकदमे की बात की, पापा से ही अपने मुकदमे की बात किए जाने की गरीब पीड़ितों की एक और वजह भी थी कि पापा गरीबों के मुकदमे बगैर एमिकस क्यूरी नियुक्त हुए भी लगभग मुफ्त ही लड़ दिया करते थे.
कानून का गहरा अध्ययन तो दीवानी मामलों में आवश्यक है ही साथ ही वाद की मूल ड्राफ्टिंग मुकदमे की आत्मा होती है। ड्राफ्टिंग की एक चूक मुवक्किल के हितों को प्रभावित कर सकती है। पापा की ड्राफ्टिंग की प्रशंसा अनेक विद्वत जन द्वारा की गई। स्व. डॉ. राज. कुमार जैन जी का अपनी दुकान के किरायेदार से दुकान खाली कराने का केस निचली अदालत में जीतने के बाद (जिसमें पापा उनके अधिवक्ता थे) सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में भी उन्हें विजय प्राप्त हुई जिसका पूर्ण श्रेय सुप्रीम कोर्ट में उनके अधिवक्ता जैन साहब ने भी पापा द्वारा तैयार उनके केस की मूल ड्राफ्टिंग को ही दिया था.
स्व. बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी कभी भी किसी साथी अधिवक्ता को कोई भी कानूनी परामर्श लेना होता था तो उसकी मदद से पीछे नहीं हटते थे, कचहरी के बहुत से जूनियर अधिवक्ता उन्हें पिता का ही दर्जा देते रहे हैं और कचहरी में पेशकार की नौकरी से शुरुआत करने वाले और वर्तमान में माननीय जिला जज न्यायालय में रीडर पद पर कार्यरत स्नेही भ्राता ललित वर्मा जी बाबूजी की मृत्यु के सात साल बाद भी आज उन्हें पापा कहकर ही संबोधित करते हैं.
बाबूजी के प्रिय आरिफ चौधरी एडवोकेट जी ने एक चर्चा के दौरान बताया था कि उन्होंने स्वयं कचहरी के वरिष्ठ अधिवक्ता बाबू ओंकार स्वरूप भटनागर जी को बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के पास आकर उनसे कानूनी मुद्दे पर विचार विमर्श करते हुए देखा था. बाबूजी के अनुज समान श्री सुशील चंद मित्तल एडवोकेट जी पहले कैराना कोर्ट में ही प्रेक्टिस करते थे और फिर दिल्ली चले गए थे किंतु जब भी उन्हें कोई कानूनी सलाह लेनी होती थी तो वे बाबूजी के पास ही आते थे।
बाबूजी के बचपन के दोस्त शेख ताहिर अली एडवोकेट जी का भी जब एक व्यक्तिगत कार्य कठिन हुआ तो बाबूजी उनकी मदद के लिए उन्हें दिल्ली वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी जी के पी ए जैन साहब के पास ले गए। यह बाबूजी के मित्र संबंधों की सशक्तता व श्रेष्ठता ही कही जाएगी कि जब 1989 में उन्हें डायबिटीज की बीमारी ने घेरा और पैरों के दर्द व कमजोरी के कारण कुछ दिन, मात्र 50 वर्ष की उम्र में बेंत लेकर चलने को मजबूर हुए तब श्री सुशील चंद मित्तल एडवोकेट जी ने स्वयं पापा के पैर दबाए थे। जब पापा की मृत्यु की सूचना हमारे चाचा जी द्वारा उन दिनों अलीगढ़ में रह रहे शेख ताहिर अली एडवोकेट जी को दी गई, तब वे अलीगढ़ से अगले ही दिन केवल हमसे मिलने के लिए ही कांधला आए थे.
मित्र शब्द का उल्लेख करते ही बाबू जी के परम मित्र स्व. श्री प्रेमचन्द गुप्ता जी, श्री महावीर सिंह सैनी, श्री सुखबीर सिंह वर्मा जी, श्री अरूण कुमार गर्ग, श्री हेमेंद्र कुमार जैन, श्री जगत प्रकाश अग्रवाल जी के नाम स्वाभाविक रूप से मेरे मन व मस्तिष्क में उभर आते हैं। यह सभी मित्रता की खलील जिब्रान द्वारा दी गई परिभाषा को यथार्थ के धरातल पर साकार करते हैं- " मित्रता सदैव एक मधुर जिम्मेदारी है, यह अवसर कभी नहीं है।"
हमें पापा के सानिध्य का सुख एक लम्बे समय तक प्राप्त हुआ और उसमें हमने यह अनुभव किया कि पापा का जितना ध्यान कैराना कचहरी और बार एसोसिएशन कैराना की ओर था, इतना किसी ओर नहीं था. एक तरह से जीवन का मुख्य उद्देश्य पापा ने यही बना रखा था- कैराना में अदालतों की उच्च स्तरीय व्यवस्था, बार एसोसिएशन कैराना की मजबूती और अधिवक्ताओं के कोर्ट में सम्मानित स्थिति सुनिश्चित करना।
पापा की सांसें शायद कैराना में ही अटकी रहती थी क्योंकि जब 2 मार्च 2015 को हम पापा की अर्थी लेकर घर से चले तब मुक्ति धाम जाने का जो सामान्य मार्ग नगरपालिका के आगे था, वहां तेज बारिश के कारण रास्ता बंद था और हमें पापा की अर्थी लेकर कैराना बस अड्डे तक जाना पड़ा जहां से पापा कैराना की बस पकड़ते थे। दूसरे शब्दों में यह पापा की कैराना कचहरी की ओर अंतिम यात्रा थी और यह भी एक संयोग ही था कि उन दिनों कचहरी कम जा रहे पापा ने डॉ. हेमेंद्र जैन जी के साथ 12 मार्च 2015 को कचहरी जाना तय किया था और 12 मार्च को ही पापा की तेरहवीं हुई तथा पापा की कचहरी पापा की तेरहवीं में यहां कांधला में उपस्थित थीं।
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
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