आज कौशलप्रसाद जी हमारे मध्य न होकर भी उनकी स्मृतियों की सुगन्ध हर अधिवक्ता के दिल मे है -श्री योगेश कुमार शर्मा एडवोकेट

 
वास्तव में अधिवक्ता समाज जनमानस के साथ-साथ अपने समकक्ष और आने वाली पीढ़ी को दिशा-निर्देश देने की आबद्धता धारण करता है .यद्यपि एक अधिवक्ता की अन्य अधिवक्तागण के प्रति कोई आबद्धता नही होती लेकिन जहाँ सम्भाव्य कारण कुछ अधिवक्तागण तुलनात्मक रूप से अपना स्थान न बना पाते हों सतत अन्य अधिवक्तागण के समतुल्य न होना या न्यायिक गतिविधियों में अपने आप को सही से स्थापित न कर पाना ,यद्यपि यह क्रियात्मक रूप अधिवक्ता समाज में अधिकांशतः सामान्य है और इसके अभिभावी होने का एक मात्र कारण अधिवक्ता समाज की यह परम्परावादी मस्तिष्क की प्रकृति है कि युवा अधिवक्ता मानसिक व् संवेगात्मक रूप से सीनियर अधिवक्ता की अपेक्षा कमजोर होते हैं ,सम्भाव्य कारण अनेक हैं तथा सम्पूर्ण अधिवक्ता समाज में विविध रुप से व्याप्त हैं . अधिकांशतः कुछ अधिवक्तागण इसी उपेक्षा के शिकार होकर रह जाते हैं और इस विभीषिका से त्रस्त होकर सम्पूर्ण विकास को प्राप्त नही हो पाते .ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक अधिवक्ता का यह दायित्व भी होता है कि वह अपने समकक्ष या युवा अधिवक्ता को इस विभीषिका से ग्रसित न होने दे क्योंकि प्रत्येक अधिवक्ता जो अपने गुरु तुल्य अधिवक्ता से अर्जित करता है तथा विरासत ग्रहण करता है उसे वह आने वाली पीढ़ी को दे यह उसका पुनीत दायित्व है . अन्तर्निहित सिद्धांत यह है कि अधिवक्ता अपने समुचित विकास के लिए जो ज्ञान सम्पदा ग्रहण करता है उसको अन्य के साथ उनके विकास में सहयोग करे .यह बात यह सुनिश्चित करने की ईप्सा करती है कि उपेक्षित अधिवक्तागण निराश्रित न छोड़ें जाएँ .

                 माननीय स्वर्गीय श्री  कौशल प्रसाद एडवोकेट जी ऐसे अधिवक्ता थे जिन्होंने अधिवक्ता समाज में उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए कार्य किया तथा इस पुस्तक में उनके उन आदर्शों व जीवन मूल्यों का वर्णन किया गया है जो अधिवक्ता समाज के समुचित विकास के लिए पोषण का कार्य करेंगे .स्व श्री कौशल प्रसाद जी ने अधिवक्ता समाज के परम्परागत आदर्श और मूल्य अधिवक्तागण के हितार्थ कार्य की व्यवस्था पर बल दिया .जीवन पर्यन्त उन्होंने अधिवक्ता समाज को कौटुम्भिक भावना से बांधकर उनके उत्थान हेतु कार्य किया .अपने 26 बार के अध्यक्ष पद के कार्यकाल में उन अधिवक्ताओं को वह स्थान दिलाया जो उपेक्षा व तिरस्कार के कारण गौरवहीन जीवन जीने को बाध्य थे .उन्होंने प्रत्येक अधिवक्ता को इस बात के लिए प्रेरित किया कि जीवन में असमर्थता के परिणाम को समुचित उपाय का प्रावधान कर नियंत्रित किया जाना चाहिए .कोई भी पुस्तक जो अल्पावधि के भीतर ही संस्करण की मांग करती है वहां यह निष्कर्ष पूर्णतया न्यायोचित होगा कि सम्बंधित विषय पर वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुई है .

         अपनी योग्यता के आधार पर समाज में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाले बाबू कौशल प्रसाद जी ने जीवन पर्यंत अपने वक़ालत व्यवसाय में कभी पैसे को महत्व नही दिया ,केवल कार्य को महत्व दिया .उनकी सभी के प्रति समाधानप्रद एवं उदारवादी सोच रहती थी .अधिवक्ता समाज के लिए यदि कौशल प्रसाद एडवोकेट जी को कलपतरु कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. दुर्भावना और निरर्थकता जैसे अवगुणों का संसर्ग उनमें कभी नही दिखता था ,उनका उद्देश्य पैसों की तुलना में कहीं ज्यादा कीमती होता था .किन्हीं भी कठिन परिस्थितियों में दरार से झांकती रौशनी मात्र को पहचानकर और उसी को आलम्बन मान समाधान बिंदु तक पहुँचने की कला बाबूजी में थी .उनका इस संसार से जाना अधिवक्ता समाज ही नहीं उनसे जुड़े सभी समुदाय के लोगों के लिए उसी प्रकार क्षतिकारक है जैसे सूर्य से एक किरण का बिछड़ जाना .आज वे हमारे मध्य न होकर भी उनकी यादें ,उनके प्रेरक प्रसंग ,उनके कार्य हमेशा हमें उनके हमारे पास होने का अहसास दिलाने के साथ-साथ अपनी शक्तिमती प्रेरणा देते हैं .

        कैराना कचहरी मे कार्यरत सभी अधिवक्तागण के लिए प्रेरणास्रोत एवं प्रतिमूर्ति श्री कौशलप्रसाद एडवोकेट जी एक व्यक्ति का नाम नही वरन् एक युग का नाम है जिन्होने जीवनपर्यंत अधिवक्ता समाज के उत्थान हेतू कार्य किया  श्री कौशलप्रसाद  एडवोकेट  यथा नाम तथा गुण। उनके समय को स्वर्ण काल भी कहा जा सकता है। उनके विचार की प्रासंगिकता को आज समझना होगा कि कैसे उन्होंने अधिवक्ता समाज के वृहद वर्ग को अपने हित की सुरक्षार्थ चेतना प्रदान की,उन्होंने  अधिवक्ता के दर्द को समझा और उनकी पीडा को भावनात्मक रूप  मे अपनाकर उनका समाधान किया।  आज हमारे अधिवक्ता समाज मे आई  असहज प्रवृतियो पर आज भी श्री कौशलप्रसाद जी प्रासंगिक है ।हमे आज कौशलप्रसाद जी के विचारो को अपनाना होगा तथा उनके विचारो व दिखाए रास्ते पर चलकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा क्योंकि  हमे यदि आज अपना वर्तमान सुरक्षित करना है तो अतीत से सीख लेनी चाहिए। श्री कौशलप्रसाद जी का जीवन  संघर्षो से भरा रहा लेकिन  उन्होने कभी हार नही मानी। काल की तीव्र गति का अनुमान  मानव बुद्धि से परे होता है  ।उनका इस संसार से जाना  एक युग की समाप्ति  के साथ साथ  अधिवक्ता समाज को अपूरणीय क्षति है । आज वे इस संसार मे नही है लेकिन वे जहा भी है वे वहा पर भी अपनी रोशनी चहूं और  फैला रहे होगें ।आज कौशलप्रसाद जी हमारे मध्य न होकर भी उनकी स्मृतियों की सुगन्ध  हर अधिवक्ता  के दिल मे है लेकिन उनकी अनपेक्षित विदाई आज भी सभी को झकझोर देती है. 

        अब हम सभी का कर्तव्य है कि हम बाबूजी के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर आगे बढ़ें और अधिवक्ता समाज के हितार्थ उनके विचारों को व्यवहारिक रूप से आगे बढ़ाएं ,ताकि उनके विचार अन्य अधिवक्तागण ,आम समाज में सतत प्रवाहशील और संरक्षित रहें. दिव्य आत्मा को शत शत नमन 🙏💐🙏

              योगेश कुमार शर्मा

                           एडवोकेट 

             जिला कोर्ट, शामली 

                      स्थित कैराना 

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