न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.
आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार,
न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.
मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये,
आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार.
बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर ,
आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार.
अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल,
ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार.
आंसू की एहसानमंद है तबसे ''शालिनी''
जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार.
कुछ शब्द-अर्थ:
उमरे-रफ्ता--गुज़रती हुई जिंदगी,
जरखेज़-कीमती,
मादूम-नष्ट-समाप्त,
आलमे-फरेफ्तगी--दीवानगी का आलम.
शालिनी कौशिक
http://shalinikaushik2.blogspot.com
टिप्पणियाँ
"न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार."
"न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार."
Nice poem .
पढ़िये नई कविता : कविता का विषय
बधाई स्वीकारें ||
जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार.
Bahut khoob liktee hain aap!
शब्दों का चयन लाजवाब।
शुभकामनाएं आपको.........
इस मुददे पर कुछ पोस्ट्स मीट में भी हैं और हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की 31 पोस्ट्स भी हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित की जा रही हैं।
magar wo bechare ashq , unhe to aankho main bhi jagah nahi milti :P)
फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये,आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार.
मन की मनोदशा को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है ...आद.शालिनी कौशिकजी, आपने
बिल्कुल सही।
भट्टी में बच्चा पका लो,
चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
चाहे तो अपने को जला लो,
blogspot.com) and also post your comments please.
Dr. Ashok Madhup (Geetkar),
NOIDA.