साक्षर भारत मिशन को लेकर उदासीन हैं राज्य
खुशबु(इन्द्री)
khushbu.goyal16@gmail.कॉम
लेखिका-ख़ुशी गोयल
प्रस्तुति-शालिनी कौशिक
कागजों में भले ही बहुत कुछ हो, लेकिन प्रौढ़ अनपढ़ों को साक्षर बनाने का मन शायद राज्य सरकारों का भी नहीं करता। केंद्र ने करीब दो साल पहले साक्षर भारत मिशन शुरू किया था, लेकिन राज्यों ने उसे जरूरी तवज्जो नहीं दी। नतीजा यह है कि कोई भी राज्य ऐसा नहीं, जहां इस मिशन का काम लटका न पड़ा हो। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्य भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। सरकार खुद मानती है कि राज्यों के उदासीन रवैए के चलते निरक्षरता मिटाने के अभियान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व की समीक्षा बैठक में सहमति जताने के बावजूद बिहार का कामकाज काफी पीछे है। सभी जिला व ब्लाकों पर समन्वयक नहीं नियुक्त हो पाए हैं। बेगूसराय, भोजपुर एवं खगडि़या जिलों में हजारों प्रौढ़ शिक्षा केंद्र अब भी नहीं शुरू हो पाए हैं। सरकार ने 2009-10 में मिशन में शामिल तीन जिलों में धन खर्च की रिपोर्ट भी केंद्र को देने में कोताही की। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का कुछ ऐसा ही हाल है। साक्षर भारत मिशन के पहले चरण (2009-10) में प्रदेश के 26 जिलों को शामिल किया गया था जबकि 66 जिले मिशन में शामिल करने की श्रेणी में आते थे। शेष बचे जिलों को इस साल शामिल किया जाना है। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश ने भी पहले चरण में न सिर्फ धन खर्च में उदासीनता दिखाई, बल्कि स्वयंसेवक शिक्षकों (वालंटियर टीचर) के इंतजाम में कोताही की जबकि उसे लगभग चार लाख ऐसे वालंटियर्स की व्यवस्था करनी थी। प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाने में कुछ इसी से मिलती-जुलती अनदेखी पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों में भी सामने आई है। केंद्र की नजर में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत चार प्रदेश की सरकारों ने अपने राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण को जरूरी तवज्जो नहीं दी। मालूम हो कि 2001 में देश में लगभग 30 करोड़ लोग निरक्षर थे। सरकार मानकर चल रही थी कि मिशन कामयाब हुआ तो 2012 तक इसमें 10 से 11 करोड़ की कमी हो जाएगी, लेकिन राज्यों के रुख को देख नहीं लगता कि यह हो पाएगा। सरकार ने 15 से 35 आयु वर्ग के प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए सितंबर, 2009 में साक्षरता भारत मिशन की शुरुआत की थी
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लेखिका-ख़ुशी गोयल
प्रस्तुति-शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
और देखिए एक भेंट आपके लिए
मेंढक शैली के हिंदी ब्लॉगर्स के चिंतन का स्टाइल
जब तक नेता मेंढक प्रवृत्ति नहीं त्यागेंगे तब तक वे सबके कल्याण की बात सोच ही नहीं सकते।
बहुत ही अच्छा लिखा और सार्थक पोस्ट
बहुत ही अच्छा लिखा और सार्थक पोस्ट
सवाई सिंह राजपुरोहित
और अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
thought provoking post !!