साक्षर भारत मिशन को लेकर उदासीन हैं राज्य‏

खुशबु(इन्द्री)

 कागजों में भले ही बहुत कुछ हो, लेकिन प्रौढ़ अनपढ़ों को साक्षर बनाने का मन शायद राज्य सरकारों का भी नहीं करता। केंद्र ने करीब दो साल पहले साक्षर भारत मिशन शुरू किया था, लेकिन राज्यों ने उसे जरूरी तवज्जो नहीं दी। नतीजा यह है कि कोई भी राज्य ऐसा नहीं, जहां इस मिशन का काम लटका न पड़ा हो। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्य भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। सरकार खुद मानती है कि राज्यों के उदासीन रवैए के चलते निरक्षरता मिटाने के अभियान में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व की समीक्षा बैठक में सहमति जताने के बावजूद बिहार का कामकाज काफी पीछे है। सभी जिला व ब्लाकों पर समन्वयक नहीं नियुक्त हो पाए हैं। बेगूसराय, भोजपुर एवं खगडि़या जिलों में हजारों प्रौढ़ शिक्षा केंद्र अब भी नहीं शुरू हो पाए हैं। सरकार ने 2009-10 में मिशन में शामिल तीन जिलों में धन खर्च की रिपोर्ट भी केंद्र को देने में कोताही की। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का कुछ ऐसा ही हाल है। साक्षर भारत मिशन के पहले चरण (2009-10) में प्रदेश के 26 जिलों को शामिल किया गया था जबकि 66 जिले मिशन में शामिल करने की श्रेणी में आते थे। शेष बचे जिलों को इस साल शामिल किया जाना है। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश ने भी पहले चरण में न सिर्फ धन खर्च में उदासीनता दिखाई, बल्कि स्वयंसेवक शिक्षकों (वालंटियर टीचर) के इंतजाम में कोताही की जबकि उसे लगभग चार लाख ऐसे वालंटियर्स की व्यवस्था करनी थी। प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाने में कुछ इसी से मिलती-जुलती अनदेखी पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों में भी सामने आई है। केंद्र की नजर में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत चार प्रदेश की सरकारों ने अपने राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण को जरूरी तवज्जो नहीं दी। मालूम हो कि 2001 में देश में लगभग 30 करोड़ लोग निरक्षर थे। सरकार मानकर चल रही थी कि मिशन कामयाब हुआ तो 2012 तक इसमें 10 से 11 करोड़ की कमी हो जाएगी, लेकिन राज्यों के रुख को देख नहीं लगता कि यह हो पाएगा। सरकार ने 15 से 35 आयु वर्ग के प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए सितंबर, 2009 में साक्षरता भारत मिशन की शुरुआत की थी
ये आलेख ख़ुशी जी ने मुझे इ-मेल से भेजा है आप यदि उन्हें अपने विचार प्रेषित करना चाहें तो इस मेल पर भेज सकते हैं.
khushbu.go​yal16@gmail​.कॉम
लेखिका-ख़ुशी गोयल 
प्रस्तुति-शालिनी कौशिक 

टिप्पणियाँ

DR. ANWER JAMAL ने कहा…
Nice post .

और देखिए एक भेंट आपके लिए

मेंढक शैली के हिंदी ब्लॉगर्स के चिंतन का स्टाइल

जब तक नेता मेंढक प्रवृत्ति नहीं त्यागेंगे तब तक वे सबके कल्याण की बात सोच ही नहीं सकते।
desh me jab tk indian children act ke tht bachchon ko nhin pdhaane vaalon ke khilaaf karyvaahi nahin hogi or srkar khud aese bachchon ki pdaayi ki zimmedaari imaandari se nhin uthaayegi tb tk aesaa asmbhv hai ........akhtar khan akela kota rajsthan
राजनीति से फुरसत मिले तो शिक्षा पर भी ध्यान दें सरकारें।
कागजों पर साक्षरता....अनुदान की डकार तक नहीं !
Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…
आदरणीय शालिनी कौशिक जी
बहुत ही अच्छा लिखा और सार्थक पोस्ट
Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…
आदरणीय शालिनी कौशिक जी
बहुत ही अच्छा लिखा और सार्थक पोस्ट
Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…
आदरणीय शालिनी कौशिक जी प्रथम विजेता के रूप में चुने जाने पर बहुत बधाई/शुभकामनाये...
सवाई सिंह राजपुरोहित
Maheshwari kaneri ने कहा…
सार्थक पोस्ट.....
Anita ने कहा…
सार्थक पोस्ट, प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा दिए बिना बाल शिक्षा भी अधूरी रह जाती है मातापिता जहां अशिक्षित हैं वे बच्चों की पढाई में कोई सहयोग नहीं देते. सरकारों को जागना होगा...
Dinesh pareek ने कहा…
आप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
और अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
Jyoti Mishra ने कहा…
Politicians are too busy in trivial things for them such topics are less useful.
thought provoking post !!

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