वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम.''
''ए दोस्त हमें तूने बहुत आजमा लिया ,
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम.''
आज ही क्या हमेशा से महिलाओं के वस्त्र पुरुष सत्तात्मक समाज में विवादों का विषय रहें हैं और जब तब इन्हें लेकर कोई न कोई टीका टिपण्णी चलती ही रहती है .आज सल्ट वाल्क को लेकर विवाद खड़े किये जा रहे हैं कहा जा रहा है कि ये कुछ सिरफिरी युवतियों का कार्य है और साथ ही इसे हिन्दुस्तानी सभ्यता संस्कृति से जोड़कर और भी गुमराह करने के प्रयास किये जा रहे हैं .कहीं लखनऊ की तहजीब का हवाला दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि ये वो शहर है जहाँ एक समय तवायफें भी सिर ढक कर निकलती थी पर ये कहते हुए भी ये नहीं सोचा जा रहा है कि एक ऐसी पहल जो बरसों से जुल्म सह रही नारी जाति को वर्तमान में दबाये जा रहे प्राचीन पुरुष सत्तात्मक समाज में सही स्थान दिलाये जाने के लिए की जा रही है उसे कितनी कुत्सित टिप्पणियों से नवाज़ा जा रहा है .सलीम खान जनाब लखनऊ शहर की तवायफों की सर ढके होने की बात कह इस शहर को तहजीब वाला कहते हैं पर ये भी तो विचारयोग्य है कि एक शहर सभ्यता में कितना पतनशील कहा जायेगा जहाँ नारी को अपने पेट को भरने के लिए तवायफ बनना पड़े और यहाँ क्या केवल नारी को ही सभ्यता से जोड़ा जायेगा क्या तवायफ वहां रह सकती हैं जहाँ उनके कद्रदान न हों और ये भी साफ है कि तवायफ के कद्रदान में कोई नारी तो नहीं आएगी इसके लिए वहां के पुरुष ही कद्रदान में गिने जायेंगे और ऐसे में वहां की तहजीब पर तो खुद सलीम खान जी ही ग्रहण लगा रहे हैं .
आरम्भ से लेकर आज तक पुरुष ने नारी को अपनी संपत्ति माना है और उस पर अपनी इच्छा लादने का प्रयत्न किया है ऐसे में नारी भी काफी कुछ पुरुषवादी सोच में ढल चुकी है और उसके अनुसार रहने को ही अपनी नियति मान चुकी है .नारी समस्याओं की प्रमुख लेखिका श्रीमती प्रेमकुमारी दिवाकर का कथन है -''आधनिक नारी ने निस्संदेह बहुत कुछ प्राप्त किया है पर सब कुछ पाकर भी उसके भीतर का परंपरा से चला आया हुआ कुसंस्कार नहीं बदल रहा है .वह चाहती है कि रंगीनियों से सज जाये और पुरुष उसे रंगीन खिलौना समझकर उससे खेले ,वह अभी भी अपने को एक रंगीन तितली बनाये रखना चाहती है .'' और ऐसी ही स्त्री जाति के रहने के आदि पुरुष समाज द्वारा उसके इस पुरुष आश्रित प्राणी के खोल से बाहर निकलना पुरुष को न कभी सुहाया है न सुहाएगा.स्वतंत्र भारत की नारियों में आज नव चेतना है और वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं वे सही गलत का अंतर कर सकती हैं और विभिन्न अनुभवों ने उन्हें ये सोच बनाने को विवश कर दिया है कि नारी के प्रति होने वाले कोई भी अपराध हों उनमे नारी की गलती का होना हमेशा ज़रूरी नहीं है अपवाद यहाँ सम्मिलित नहीं हैं .नारी को चाहे वह पिता हो ,पति हो ,पुत्र हो या भले ही कोई एक तरफ़ा प्यार में डूबा कोई प्रेमी हो अपने अनुसार चलाना चाहता है और उसके अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करने पर वह तिलमिला उठता है.यदि कपडे ही नारी के साथ होने वाले दुष्कर्मों के लिए उत्तरदायी हैं तो कोई बताये कि खेत में काम करने वाली महिलाएं जो सिर से लेके पाँव तक ढकी रहती हैं वे क्यों इसका शिकार बनती हैं .ऐसे बहुत से उदाहरण हैं और ये भी कि बड़े शहरों में ही ये घटनाएँ नहीं हैं ये घटनाएँ छोटे गाँव कस्बों में भी हैं और वहां जहाँ तक अभी का समाज है युवतियां साधारण वस्त्रों में ही दिखाई देती हैं.
अभी दिल्ली में ये सल्ट वाक हुआ और ये ही बात सामने आई कि जो भी युवतियां इसमें सम्मिलित हुई उन्होंने वे ही कपडे पहने जो साधारणतया वे पहनती हैं और पश्चिमी देशो का कोई अनुसरण यहाँ नहीं दिखाई दिया ऐसे में इस सल्ट वाक को निंदा का विषय न बनाकर सभी को चाहिए कि इसे प्रोत्साहित करें और अपराध को जड़ से समाप्त करने के अपनी सोच में परिवर्तन लायें और देखें कि ये अपराध जो हमारी नारी जाति को अपनी चपेट में ले रहा है और उसके उज्जवल भविष्य में बाधा बन रहा है इसे मिलजुल कर ख़त्म कर अपने समाज को स्वच्छ वायु दें और इन्हें साँस लेने के लिए सुरक्षित आकाश .इनकी इस मुहीम की सफलता के लिए मैं तो बस यही कहूँगी-
''कदम चूम लेती है खुद आके मंजिल ,
मुसाफिर अगर अपनी हिम्मत न हारे.''
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
तेरे माथे पे जो आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,तू इस आँचल को एक परचम बना लेती तो अच्छा था |
तेरे माथे पे जो आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,तू इस आँचल को एक परचम बना लेती तो अच्छा था |
मुझे आपका यह कथन सर्वाधिक पसंद आया कि-
.सलीम खान जनाब लखनऊ शहर की तवायफों की सर ढके होने की बात कह इस शहर को तहजीब वाला कहते हैं पर ये भी तो विचारयोग्य है कि एक शहर सभ्यता में कितना पतनशील कहा जायेगा जहाँ नारी को अपने पेट को भरने के लिए तवायफ बनना पड़े और यहाँ क्या केवल नारी को ही सभ्यता से जोड़ा जायेगा क्या तवायफ वहां रह सकती हैं जहाँ उनके कद्रदान न हों
आखिर किस लखनऊ की तहजीब की दुहाई दे रहें हैं सलीम जी .जब तक किसी स्थान पर एक स्त्री को देह व्यापर करने के लिए विवश होना पड़े तब तक उस स्थान के समाज ,तहजीब -सभी को धिक्कार है .
आपको मुबारकबाद पेश करता हूं।
2. नारी के मुददों पर हर पहलू से विचार सदा से ही समय की मांग रही है।
...देखिए बड़े ब्लॉगर इस तरह गोल-मोल बात करके निकल लेते हैं और अपने प्रशंसकों का दायरा बढ़ाते चले जाते हैं और एक हम हैं कि हमेशा अपनी वही सोच सार्वजनिक कर देते हैं जो कि दिल में सोचते हैं और लोग बिदक कर भाग जाते हैं।
आप सलाह दीजिए कि क्या हम भी बड़े ब्लॉगर्स का रास्ता पकड़ लें ?
ब्लॉगर्स मीट वीकली
अपनी शक्ति के अनुसार रास्ते और मन्जिल का चयन ज़रूरी है।
विषय गंभीर है, मैं इस मामले में कुछ टिप्पणी करुं तो फिर इसे स्त्री बनाम पुरुष बनाया जा सकता है। लेकिन हां मैं इतना जरूर कहूंगा कि महिलाएं क्या पहनें क्या ना पहने, इस पर चर्चा करने से बेहतर है कि उन्हें बस देश की संस्कृति को बचाए रखने के लिए प्रेरित किया जाए। कपडे पहनने की आजादी तो हर आदमी को दी ही जानी चाहिए, चाहे स्त्री हो या फिर पुरुष।
मुसाफिर अगर अपनी हिम्मत न हारे.''
सच...
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
फिर भी उसे अबतक पुरुष मानसिक जड़ता के आगे झुकना पड़ता है.कभी वस्त्र मुद्दा होता है तो कभी परम्परा और संस्कार,
सलीम खान ने तवायफों के सर ढकने की बात कह रहे हैं,तो क्या उस समय सर ढकने से तवायफों को इज्जत की नज़र से देखा जाता था? आज भी औरतें अपनी पसंद के कपडे नही पहन सकती,क्यूंकि ये उनके पिता ,भाई या पति को पसंद नही.
अब इन्हें अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है. टिका टिपण्णी करने की नही.
मुसाफिर अगर अपनी हिम्मत न हारे.''
कितनी सारी सफलता की राज लिए बात है यह जो आपने अंतिम पंक्तियों में लिखा है जो सचमुच हमारी सफलता सिर्फ हमारे हिम्मत पर निर्भर करती है यह पंक्ति इंसान की जीवन को सार्थक बना देती है आपको इस लेख के लिए बहुत बहुत बधाई हो.
आप कभी कभी यहाँ भी आकर मुझे अनुग्रहित करें
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- MADHUR VAANI: ज्ञान की कुंजी ......
3- BINDAAS_BAATEN: ज्ञान की कुंजी ......
शायद अच्छी सोच और शिक्षा की कमी ही इन सब घटनाओं का प्रमुख कारण है..
सही और अच्छी शिक्षा एक पहलू हो सकता है ऐसे कृत्यों को कम करने में...
--- सिर्फ पेट भरने के लिए कोई तवायफ नहीं बनतीं...अन्य बहुत से कारण हैं , नारी की त्रुटियाँ व पुरुष व समाज का लालच ....
--- कपड़ों से फर्क अवश्य पडता है ..आ बैल मुझे मार की स्थिति होती है......यदि नहीं पडता तो हम कपडे पहनते ही क्यों है ..नंगा रहना ही ठीक है..
--- स्लट slut= derog( insult), careless, untidy, irregular,indiscriminate woman ---- तो एसी वूमन का क्या वाक् .....???
---तो सलीम ने क्या खराब बात कही है....
--मजाज़ के उदधृत शेर का आखिर अर्थ क्या है... नारी आँचल को ही परचम बनाए...स्लट वाक् को नहीं ...अधनंगे वस्त्रों को नहीं ..
---सही कहा अधिकाँश ब्लोगर घिसी-पिटी बातें कहकर निकल लेते हैं....
---यह कहानी युगों से चल रही है चलती रहेगी...