कभी....... न देती
 
   न रखते हैं दुनिया में कभी जीने की हम चाहत ,  तभी तो मौत दरवाजे मेरे दस्तक नहीं देती .  .....................................................  न खाते पेट भरने को जब खाने हम बैठें,  तभी तो रोटी थाली की कभी भी ख़त्म न होती .  ..........................................................  नहीं हम जागना चाहें जो जाके बिस्तर पे लेटें ,  तभी तो नींद पलकों से जा कोसों दूर है बैठी .  ............................................................  नहीं जो चाहो दुनिया में वही हर पल यहाँ मिलता ,  जो चाहा दिल ने शिद्दत से कभी मिलने नहीं देती ..............................................................  तरसती ''शालिनी'' रहती सदा मन चाहा पाने को ,  कभी ख्वाबों को ये कुदरत हकीकत होने न देती .  ...............................................................  शालिनी कौशिक  (कौशल)   
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