जागरण जंक्शन पर हिंदी के विभिन्न मुद्दों पर मेरी अभिव्यक्ति -क्या आप सहमत हैं

जागरण जंक्शन पर हिंदी के विभिन्न मुद्दों पर मेरी अभिव्यक्ति -क्या आप सहमत हैं




1-हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में समर्थ हो सकती है -



हिंदी ब्लॉग्गिंग आज लोकप्रियता के नए नए पायदान चढ़ने में व्यस्त है .विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं की तानाशाही आज टूट रही है क्योंकि उनके द्वारा अपने कुछ चयनित रचनाकारों को ही वरीयता देना अनेकों नवोदित कवियों ,रचनाकारों आदि को हतोत्साहित करना होता था और अनेकों को गुमनामी के अंधेरों में धकेल देता था किन्तु आज ब्लॉगिंग के जरिये वे अपने समाज ,क्षेत्र और देश-विदेश से जुड़ रहे हैं और अपनी भाषा ,संस्कृति ,समस्याएं सबके सामने ला रहे हैं . ब्लॉगिंग के क्षेत्र में आज सर्वाधिक हिंदी क्षेत्रों के चिट्ठाकार जुड़े हैं और.अंग्रेजी शुदा इस ज़माने में हिंदी के निरन्तर कुचले हुए स्वरुप को देख आहत हैं किन्तु हिंदी को उसका सही स्थान दिलाने में जुटे हैं और इस पुनीत कार्य में ज़माने से जुड़े रहने को अंग्रेजी से २४ घंटे जुड़े रहने वाले भी हिंदी में ब्लॉग लेखन में व्यस्त हैं .

हम सभी जानते हैं कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा ही नहीं मातृभाषा भी है और दिल की गहराइयों से जो अभिव्यक्ति हमारी ही कही जा सकती है वह हिंदी में ही हो सकती है क्योंकि अंग्रेजी बोलते लिखते वक़्त हम अपने देश से ,समाज से ,अपने परिवार से ,अपने अपनों से वह अपनत्व महसूस नहीं कर सकते जो हिंदी बोलते वक़्त करते हैं .

हिंदी जहाँ अपनों को कभी आप ,कभी तुम व् कभी तू से स्नेह में बांधती है अपनेपन का एहसास कराती है वहीँ अंग्रेजी इस सबको ''यू ''पर टिका देती है और दूर बिठाकर रख देती है ..

आज हिंदी ब्लॉग्गिंग के जरिये दूर-दराज बैठे ,बड़े बड़े पदों को सुशोभित कर औपचारिकता की टोपी पहनने वाले व्यक्तित्व साहित्यकार व् रचनाकार में परिवर्तित हो रहे हैं और इसी क्षेत्र में जुड़े अंजान ब्लोगर से जुड़ रहे हैं .अपनी अभिव्यक्ति पर प्रतिक्रिया की इच्छा रख रहे हैं और अन्यों की अभिव्यक्ति पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और ये सब सुखद है इसलिए क्योंकि इससे अपने विचारों का दूसरों पर प्रभाव भी देखने में आसानी होती है और साथ ही यह भी पता चलता है कि आज भी लोगों के मन में हिंदी को लेकर मान है ,सम्मान है और हिंदी को उसका सही स्थान दिलाये जाने की महत्वाकांक्षा भी .

आज हिंदी ब्लॉगिंग के जरिये दूर-दराज बैठे ,बड़े बड़े पदों को सुशोभित कर औपचारिकता की टोपी पहनने वाले व्यक्तित्व साहित्यकार व् रचनाकार में परिवर्तित हो रहे हैं और इसी क्षेत्र में जुड़े अंजान ब्लोगर से जुड़ रहे हैं .अपनी अभिव्यक्ति पर प्रतिक्रिया की इच्छा रख रहे हैं और अन्यों की अभिव्यक्ति पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और ये सब सुखद है इसलिए क्योंकि इससे अपने विचारों का दूसरों पर प्रभाव भी देखने में आसानी होती है और साथ ही यह भी पता चलता है कि आज भी लोगों के मन में हिंदी को लेकर मान है ,सम्मान है और हिंदी को उसका सही स्थान दिलाये जाने की महत्वाकांक्षा भी . आज हिंदी ब्लॉगिंग का बढ़ता प्रभाव ही समाचारपत्रों में ब्लॉग के लिए स्थान बना रहा है .पत्रकारों का एक बड़ा समूह हिंदी ब्लॉग्गिंग से जुड़ा है और समाचार पत्रों में संपादक के पृष्ठ पर ब्लॉग जगत को महत्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है .पाठकों की जिन प्रतिक्रियाओं को समाचार पत्र कूड़े के डिब्बे के हवाले कर देते थे आज उनके ब्लॉग से अनुमति ले छाप रहे हैं क्योंकि जनमत के बहुमत को लोकतंत्र में वरीयता देना सभी के लिए चाहे वह हमारे लोकतंत्र का कोई सा भी स्तम्भ हो अनिवार्य है और इसी के जरिये मीडिया आज विभिन्न मुद्दों पर जनमत जुटा रहा है और यही हिंदी ब्लॉगिंग आज हिंदी भाषियों को तो जोड़ ही रही है विश्व में अहिन्दी भाषियों को भी इसे अपनाने को प्रेरित कर रही है .यही कारण है कि आज बड़े बड़े राजनेता भी जनता से जुड़ने के लिए ब्लॉगिंग से जुड़ रहे हैं .आज वे हिंदी की जगह अपने ब्लॉग पर अंग्रेजी में लिख रहे हैं किन्तु वह दिन भी दूर नहीं जब वे जनता को अपने करीबी दिखने के लिए हिंदी के करीब आयेंगे क्योंकि जनता इससे जुडी है और जनता से जुड़ना उनकी आवश्यकता भी है और मजबूरी भी . इसलिए ये निश्चित है कि जिस तरह से हिंदी ब्लॉगिंग विश्व में अपना डंका बजा रही है वह इन राजनेताओं को भी अपना बनावटी लबादा उतरने को विवश करेगी और अपनी ताकत से परिचित कराकर सही राह भी दिखाएगी और इस तरह जनता को अपने से जोड़ने के लिए उन्हें हिंदी का हमराही बनाएगी .वैसे भी अपनी ताकत हिंदी ब्लॉगिंग ने आजकल के विभिन्न हालातों पर हर समस्या के जिम्मेदार को कठघरे में खड़ा कर दिखा ही दी है .नित्यानंद जी के शब्द यहाँ हिंदी ब्लॉगिंग की उपयोगिता व् निर्भीकता को अभिव्यक्त करने के लिए उत्तम हैं -

''उसे जो लिखना होता है ,वही वह लिखकर रहती है ,

कलम को सरकलम होने का बिलकुल डर नहीं होता .''



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हिंदी की जगह आज अंग्रेजी ही घेरती जा रही है -[हिंदी बाज़ार की भाषा है गर्व की नहीं ,हिंदी गरीबों अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी है .]-contest -२

हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा बस कहने मात्र को ही रह गयी है .जिस प्रकार यह कहा गया है कि भारत में गाय की पूजा होती है और भारत में ही गाय काटी जाती है इसी सत्य पथ का अनुसरण आज ही क्या जबसे हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर विराजमान किया गया है तब से ही किया जा रहा है .

भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोकतंत्र की स्थापना की गयी थी यहाँ के स्वतंत्रता आन्दोलन में जुटी जनशक्ति देखकर और दुःख भी यहाँ का ये लोकतंत्र ही बनकर रह गया .जनता के प्रतिनिधि सत्ता में बैठकर स्वयं को जनता के सेवक न मानकर उसके सिर का ताज मानकर बैठ गए .और जनता भी कौन दोषमुक्त कही जाएगी वह भी अपने स्वार्थ सिद्ध करने में जुट गयी और परिणाम यह हुआ की यहाँ स्वार्थपूर्ति की दोनों ओर से ऐसी रेलमपेल चली की देश हित गहरे अंधकार में डूब गया .विभिन्न संस्कृतियों ,भाषाओँ के मेल वाला हमारा यह देश आज ऐसे जंगल में फंसकर रह गया है जहाँ जिसको जितना हिस्सा मिल जाता है वह हड़प लेता है .कोई सख्ती यहाँ चल ही नहीं पाती और इसलिए कोई सही काम इस देश में होना एक स्वप्न बनकर रह गया है .चीन जैसा देश सख्ती से एक बच्चे का कानून लागु कर सकता है फिर भारत क्यूं नहीं ?चीन गुलाम नहीं होता क्योंकि वहां गद्दार नहीं हैं किन्तु भारत गुलाम होता है और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी उसी ताकत का गुलाम रहता है क्योंकि यह उसकी इच्छा में है .

कोई भी कार्य जब तक उसके पीछे जनशक्ति न हो ,होना इस देश में असंभव है क्योंकि यहाँ एक -एक वोट एक ऐसी संपत्ति है जिसे हासिल करने के लिए सत्ताधारी दल कोई भी जुगत भिड़ाते हैं .गुलामी के दौरान यहाँ की जनता अंग्रेजियत की ऐसी गुलाम हुई कि आज तक भी उस दासता से मुक्त नहीं हुई .''dogs and indians are not allowed ''भी आज तक हिन्दुस्तानियों का अंग्रेजी प्रेम न घटा पाए .किसी हिंदुस्तानी के घर के द्वार पर कहीं भी यह देखने को नहीं मिला कि ''अंग्रेजी का हम अपमान नहीं करते क्योंकि हमारे यहाँ अतिथि देवो भवः की परंपरा है किन्तु हिंदी के घर में अंग्रेजी मात्र अतिथि है और वही रहेगी ,वह इस मकान की मालकिन नहीं बन सकती .''और यह लिखा होना मुश्किल है क्योंकि यहाँ की जनता अंग्रेजी के रंग में ऐसी रंगी जा रही है कि ये कहना कि हिंदी बाज़ार की भाषा है ,तो ये भी कहाँ सच है ?

बाजार में दुकानों पर जो गर्व ''शॉप ''लिखने में महसूस किया जाता है वह दुकान लिखने में नहीं ,सर्राफ स्वयं को ''गोल्ड स्मिथ'' कहलवाना ज्यादा पसंद करता है .पंसारी चाहता है कि उसे ''टिम्बर मर्चेंट ''कहा जाये .सर्राफ की दुकानों से चादर व् गोल तकिये गायब हो चुके हैं तकियों चादर का स्थान अब टेबिल-चेयर ने ले लिया है .बाजार में किसी उत्पाद के अभिकर्ता आयें या दुकानों पर उपभोक्ता अब कहाँ उनका स्वागत लस्सी या शरबत से होता है हर जगह चाय ,कॉफ़ी ,या फिर कोल्ड ड्रिंक ही इस्तेमाल होते हैं ..

दूसरी ओर ये कहना कि यह गरीबों अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी है तो ये भी गलत क्योंकि आज के गरीब अनपढ़ भी हिंदी बोलकर नीचा नहीं दिखना चाहते ,वे भी अंग्रेजी बोलते हैं और उसी में शान महसूस करते हैं .कमजोरी न कह ''वीक्नेक्स'' बोलते हैं ''वीकनेस ''का अपभ्रंश .भले ही गलत बोल रहे हों किन्तु बोल तो अंग्रेजी रहे हैं इसका सुकून उनके चेहरे पर साफ देखा जा सकता है .अस्पताल की जगह हॉस्पिटल सबकी जबान पर चढ़ा है गवर्नमेंट कहने से सिर ऊँचा होता है सरकार कौन जानता है .और फिर मिसकॉल जनलोकप्रिय शब्द का स्थान ले चूका है कौन कहेगा इसे ''छूटी हुई पुकार ''

और क्या क्या कहें व् कहाँ कहाँ झांके ,हिंदी को तहखाने में मुहं बंद कर डाल चुकी अंग्रेजी अब उसी के घर में चाट पकौड़ी खा रही है और सभी को वही मालकिन नज़र आ रही है .



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contest -३ क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्यधारा में लाई जा सकती है ........अफ़सोस ये कि नहीं .....



भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने कहा था -

''निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल ,

बिनु निज भाषा ज्ञान के ,मिटे न हिय को शूल ''

महात्मा गाँधी जी ने हिंदी को स्वराज्य वाहिका माना था .हमारे प्रत्येक नेता ने यथावसर हिंदी को भारत की जनता की भाषा कहा है .देश के राजनेताओं के लिए हिंदी का महत्व यहाँ से पता चलता है कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की ''डाइनिंग टेबिल ''का नियम था कि वहां बैठने पर सभी हिंदी में ही बात करेंगे और यहाँ की जनता से जुड़ने के लिए इटली निवासी होने पर भी भारतीय बहू बनने पर सोनिया गाँधी जी ने हिंदी सीखी और आज जनसभाओं में गर्व से वे हिंदी भाषा में ही जनता को संबोधित करती हैं .

हमारे संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया क्योंकि हिंदी का स्थान निर्विवाद रूप से राष्ट्रभाषा का है .आज से नहीं कई सदियों से ,महा प्रभु वल्लभाचार्य तथा संत कवियों ,भक्त कवियों से लेकर स्वामी दयानंद सरस्वती ,महात्मा गाँधी ,नेहरु जी तक प्रत्येक लोकनायक एवं लोकसेवक ने जनता की भाषा के रूप में ,राष्ट की बोली के रूप में हिंदी को अपनाया .संत कबीर ने कहा -

''संस्कीरत जल कूप है ,भाषा बहता नीर .''

गोस्वामी तुलसीदास ने भी भारत के कोने कोने तक श्री राम कथा का सन्देश पहुँचाने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग करना आवश्यक समझा .

इस तरह हिंदी की मान्यता के अनगिनत उदाहरण हो सकते हैं किन्तु फिर भी अफ़सोस और वह भी इसलिए कि हिंदी एक सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्यधारा में नहीं लाई जा सकती ,कारण सबके समक्ष है -

सर्वप्रथम तो संविधान निर्माण के समय ही हिंदी को १५ वर्ष का वनवास दे दिया गया .हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा कभी न बन सके इसके लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने दो राजभाषा अधिनियम बनाये हैं .राजभाषा अधिनियम ३४३/१ के अधीन हिंदी के साथ अंग्रेजी को सहभाषा के रूप में प्रचलित रखने का प्रावधान किया गया इसके फलस्वरूप यह स्थिति बनी कि हिंदी के साथ अंग्रेजी को प्रचलित रखने की अवधि १५ वर्ष निश्चित कर दी गयी परन्तु अब यह अवधि अनिश्चित कालीन कर दी गयी है .राजभाषा अधिनियम की धरा ३/१ में यह जोड़ दिया गया है कि जब तक भारत के एक भी राज्य की सरकार हिंदी को अपने राज्य की राजभाषा स्वीकार करने में संकोच करेगी तब तक हिंदी पूरे संघ की राजभाषा नहीं हो सकेगी .स्पष्ट है कि इस प्रावधान द्वारा हिंदी के संघ की राजभाषा बनने की सम्भावना को सदा सर्वदा के लिए नकार दिया गया .तमिलनाडु जैसे राज्य तो हिंदी के कदीमी विरोधी थे ही नागालैंड जैसा छोटा राज्य भी अंग्रेजी को राजभाषा स्वीकार कर चुका है अतःकई ऐसे राज्य हैं जिनसे हिंदी के पक्ष में अर्थात राष्ट्रभाषा के पक्ष में निर्णय की आशा नहीं की जा सकती .

फिर जब स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जनता पर एकाधिकार से प्रभुत्व रखने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरु ये कह सकते हैं -

''हिंदी तथा अहिन्दी भाषियों को दो भागों में बाँट देने से देश का भारी अहित होगा .हिंदी को रजामंदी से आगे ले जाना है ,अगर हिंदी वाले जबरदस्ती करेंगे तो दूसरे लोग ऐंठ जायेंगे इससे ऐसी खाई पैदा हो जाएगी जो हिंदी के लिए नहीं वरन पूरे देश के लिए घातक सिद्ध होगी .हिंदी को और ताकत मिलेगी यदि हिंदी के साथ अंग्रेजी को सहायक भाषा रहने दिया जाये ,क्योंकि अंग्रेजी के जरिये नए नए विचार आते रहेंगे .''

साथ ही ,अपनी सादगी भरी जीवन शैली व् उच्च विचारों वाले तत्कालीन गृहमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी यह कह सकते हैं-

''जब तक हिंदी विकसित नहीं हो जाती और जब तक लोग उसे अच्छी तरह सीख नहीं लेते ,तब तक अंग्रेजी को बनाये रखना ही पड़ेगा .''

फिर आज के किसी नेता से तो इस सम्बन्ध में प्रभावशाली पहल की आशा करना ही व्यर्थ है क्योंकि आज के नेता तो इन नेताओं के महान चरित्र व् त्यागमयी भावनाओं के पास भी नहीं फटकते .ऐसे मे वे हिंदी के लिए सम्मानजनक स्थान बनाने की ओर बढ़ भी सकेंगे ,ये हम सोच भी नहीं सकते क्योंकि पहले के नेता नेता न होकर देश पर मरने मिटने वाले होते थे और आज के नेता देश को ही अपने पर लुटाने वाले होते हैं और ये तथ्य सभी जानते हैं .

और सबसे बढ़कर इस दिशा में हम स्वयं को पायेंगें जिन्हें भले ही टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलनी पड़े किन्तु वह अपनी समृद्ध हिंदी के समक्ष अपने शीश को गर्व से उठाने के लिए आवश्यक जान पड़ती है .आज अहिन्दी भाषियों की तो क्या कहें हिंदी भाषी क्षेत्रों के परिवार अपने बच्चों को 'कॉवेन्ट 'में पढ़ाने की इच्छा रखते हैं भले ही उधार लेकर पढाना पड़े .प्राचीन गुरुकुल मान्यता अब समाप्त हो चुकी है क्योंकि भारतीय जनता जमीन पर बैठकर भोजन करने की नहीं अपितु चेयर -टेबिल पर बैठ लंच ,डिनर की आदि हो चुकी है .

इसलिए अफ़सोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि हिंदी कभी भी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में नहीं लाई जा सकती क्योंकि मुख्य धारा ही अब अंग्रेजी के रंग में रंगीली हो चुकी है .

शालिनी कौशिक

[कौशल ]

टिप्पणियाँ

सार्थक व तार्किक आलेख..
है जिसने हमको जन्म दिया,हम आज उसे क्या कहते है ,
क्या यही हमारा राष्र्ट वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
हे राष्ट्र स्वामिनी निराश्रिता,परिभाषा इसकी मत बदलो
हिन्दी है भारत माँ की भाषा ,हिंदी को हिंदी रहने दो .....

सटीक सुंदर आलेख !

RECENT POST : बिखरे स्वर.
है जिसने हमको जन्म दिया,हम आज उसे क्या कहते है ,
क्या यही हमारा राष्र्ट वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
हे राष्ट्र स्वामिनी निराश्रिता,परिभाषा इसकी मत बदलो
हिन्दी है भारत माँ की भाषा ,हिंदी को हिंदी रहने दो .....

सटीक सुंदर आलेख !

RECENT POST : बिखरे स्वर.
Anita ने कहा…
हिंदी अपना रास्ता खुद बना रही है..यह एक महान भाषा है.
kshama ने कहा…
Aapke harek shabd se sahmat hun...afsos ki dakshin Bharat ne is bhashako aajtak apna nahi mana.Lekin Achhe buri Hindi filmon ka phirbhi kuchh yogdaan to raha hai...
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
ब्रिटेन में 'इटेलिअन' ही राजभाषा बनी रहती यदि प्रधानमंत्री 'डिज़रायली'ने सख्ती के साथ 'इंगलिश' को लागू न करवाया होता तो। अतः जब भारत में 'डिज़रायली' जैसा व्यक्ति प्रधानमंत्री बनेगा तो 'हिन्दी' अपना स्थान प्राप्त कर सकेगी।
HAKEEM YUNUS KHAN ने कहा…
सामायिक रचना.. बदलाव की जरुरत है..
स्थितियां बदलेगी तभी सब संभव है...

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