उभारी नफरतें बढ़कर ,सियासत ने जिन हाथों से ,

सरकशी बढ़ गयी देखो, बगावत को बढ़ जाते हैं ,


हवाओं में नफरतों के गुबार सिर चढ़ जाते हैं .

...........................................................................

मुहब्बत मुरदार हो गयी,सियासी चालों में फंसकर ,

अब तो इंसान शतरंज की मोहरें नज़र आते हैं.

..........................................................................

मुरौवत ने है मोड़ा मुंह ,करे अब क़त्ल मानव को ,

सियासत में उलझते आज इसके कदम जाते हैं .

........................................................................

हुई मशहूर ये नगरी ,आज जल्लाद के जैसे ,

मसनूई दिल्लगी से नेता, हमें फांसी चढाते हैं .

..........................................................................

कभी महफूज़ थे इन्सां,यहाँ जिस सरपरस्ती में ,

सरकते आज उसके ही ,हमें पांव दिख जाते हैं .

............................................................................

सयानी आज की नस्लें ,नहीं मानें बुजुर्गों की ,

रहे जो साथ बचपन से ,वही दुश्मन बन जाते हैं .

............................................................................

जलाते फिर रहे ये आशियाँ ,अपने गुलिस्तां में ,

बसाने में एक बगिया ,कई जीवन लग जाते हैं .

.........................................................................

उभारी नफरतें बढ़कर ,सियासत ने जिन हाथों से ,

उन्हीं को सिर पर रखकर ,हमें हिम्मत बंधाते हैं .

..................................................................................

लगे थे जिस जुगत में ''शालिनी''के ये सभी दुश्मन ,

फतह अपने इरादों में ,हमारे दम पर पाते हैं .

........................................................................

शब्दार्थ-मुरदार -मरा हुआ ,बेजान ,

मसनूई -बनावटी ,दिल्लगी-प्रेम ,सरकशी-उद्दंडता ,सरपरस्ती -सहायता .



शालिनी कौशिक

[कौशल ]



....................................................................

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 13-09-2013 के http://charchamanch.blogspot.in.....महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाःचर्चा मंच 1368 जाता है।
Ramakant Singh ने कहा…
कभी महफूज़ थे इन्सां,यहाँ जिस सरपरस्ती में ,

सरकते आज उसके ही ,हमें पांव दिख जाते हैं .

एक से बढ़कर एक दर्द को बयान करती किन्तु ये दिल के करीब
Dr. sandhya tiwari ने कहा…
bahut sundar rachna ,,,,,,,, man krodhit hai saja darindo ko ho bhi jaaye to bhi shanti nahi...........
रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया-
Darshan jangra ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
आज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





virendra sharma ने कहा…
अपने वक्त की नवज टटोलती आला दर्जे की रचना। बधाई।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना