अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .



सन्दर्भ -मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा, 6 की मौत


                     muzaffarnagar-kaval-communal-riot
''मुख्तलिफ  ख्यालात भले रखते हों मुल्क से बढ़कर न खुद  को समझें हम,
बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ऐसे क़दमों को बेहतर  समझें हम.
.................................................. 
है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
.................................................. 
कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती  भूल  समझें हम .
.................................................. 
देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न  समझें हम .
.................................................. 
कहे ये ''शालिनी'' मिल  बैठ मसले  सुलझा लें ,
अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .

         शालिनी कौशिक 
                  [ कौशल ]

टिप्पणियाँ

Darshan jangra ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार-8/09/2013 को
समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





kshama ने कहा…
कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम .
..................................................
देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम .
Wah! Kya kamal likti nhain aap...aisi ekbhi pankti mai likh paun to apneaapko dhanya samajhun!
Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।
अच्छी प्रेरणाप्रद प्रस्तुति है !
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richa shukla ने कहा…
बहुत सुंदर प्रस्तुति
prathamprayaas.blogspot.in-
रविकर ने कहा…
बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीया-
आभार आपका-
है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .

धर्म, जात पात से ऊपर उठने का समय है आज ... इन्सान को इन्सान समझने का समय है ...
Bhola-Krishna ने कहा…
बेटाजी ,आम लोग मजहब के झगड़े दो दिन बाद भुला देते हैं लेकिन नेतागण अपना वोट बेंक सुरक्षित करने की होड में उनके जख्म कुरेड कुरेद कर उन्हें हरा करते रहते हैं !उन्हें उकसाते रहते हैं ! दोनों पक्षों के लोग मारे जाते हैं ! १९३१ से ४७ तक अंग्रेजों की ऎसी ही चाल बाजी देखी ! आजादी के बाद आज तक यू पी की कोंग्रेस,बीजेपी, बी एस पी और सपा सरकारें रो रो कर झेलीं !दशा दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही है ! न् जाने कब सुधरेगी यह वुवस्था !

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