अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .
सन्दर्भ -मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा, 6 की मौत
''मुख्तलिफ ख्यालात भले रखते हों मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम,
बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ऐसे क़दमों को बेहतर समझें हम.
..................................................
..................................................
है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
..................................................
..................................................
कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम .
..................................................
..................................................
देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम .
..................................................
..................................................
कहे ये ''शालिनी'' मिल बैठ मसले सुलझा लें ,
अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .
शालिनी कौशिक
[ कौशल ]
टिप्पणियाँ
समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम .
..................................................
देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम .
Wah! Kya kamal likti nhain aap...aisi ekbhi pankti mai likh paun to apneaapko dhanya samajhun!
RECENT POST : समझ में आया बापू .
RECENT POST : समझ में आया बापू .
prathamprayaas.blogspot.in-
आभार आपका-
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
धर्म, जात पात से ऊपर उठने का समय है आज ... इन्सान को इन्सान समझने का समय है ...