पुरुष- दंभ का मानवीय रूप



पुरुष
दंभ का मानवीय रूप

टूट जायेगा
पर
झुकेगा नहीं !
दंभ
या तो फूलेगा
गैस के गुब्बारे की तरह
नहीं तो
डूब जायेगा
ऐसे अंधकार में
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .

ऐसे ही पुरुष
गैस के गुब्बारे की तरह फूलता है
और बिना सोचे विचारे
स्वयं को मान सर्वशक्तिमान
बढ़ता रहता है
उड़ता रहता है
नहीं लगता उसे
संसार में कोई अपने
समकक्ष
किन्तु एक समय आता है
जब वह
स्वयं को अकेला पाता है

किन्तु झुकना नहीं
सीखा कभी
इसलिए
असहाय महसूस
करने पर भी
वह किसी से कुछ
नहीं कहता
और
कर लेता है
स्वयं को ऐसे
अंधकार के आधीन
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .

                 शालिनी कौशिक
                         [कौशल ]



टिप्पणियाँ

virendra sharma ने कहा…
बहुत सुन्दर है यह रचना

एक टिपण्णी शालिनी जी हमने रात की थी (ईस्टरन टाइम्स के अनुसार ). अज्ञान से पैदा होता है दंभ।
रविकर ने कहा…
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार
सृष्टि में अपना स्थान समझ जायें, भ्रम और दंभ दूर हो जायेगा।
सच कहा है ... इस दंभ को जितना जल्दी तोड़ दिया जाए उतना अच्छा ...

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