दूरदर्शन पर खुलेआम महिला शोषण
''सोच बदलो सितारे बदल जायेंगे ,
नज़र बदलो नज़ारे बदल जायेंगे ,
किश्तियाँ बदलने की ज़रुरत नहीं
दिशाएं बदलो किनारे बदल जायेंगे .''
क्या आता है मन में ऐसा शेर सुनकर आपके मन में शेर के लिए और शेर सुनाने वाले के लिए यही न कि ''change is the rule of nature '' अर्थात परिवर्तन प्रकृति का नियम है और ऐसा नियम जिससे हम अपने बहुत से ऐसे पलों से ,दुखों से और पता भी नहीं चलता जानी-अनजानी बहुत सी बातों से मुक्ति पा जाते हैं और जो हमें इस बारे में बता रहा है वह ऐसा सिर्फ इसलिए कर रहा है ताकि हम बहते पानी की तरह बहते जाएँ ,वह हमें पुरानी सड़ चुकी मान्यताओं ,परम्पराओं से निकल एक स्वच्छ आकाश के नीचे जीवन जीने को प्रेरित करता है किन्तु कहीं आज भी
कुछ नहीं बदला ,कहीं आज भी वही पुरानी सोच दिमागों पर हावी है ,उसी ढर्रे पर ज़िंदगी चलती जा रही है और ऐसा यहीं दिखाई दिया जब दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम का कल रात १४ जनवरी २०१४ का एपिसोड देखा .
''भारत की शान रुम-झुम '' कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एंकर श्वेता साल्वे कहती हैं -
''सोच बदलो सितारे बदल जायेंगे ,
नज़र बदलो नज़ारे बदल जायेंगे ,
किश्तियाँ बदलने की ज़रुरत नहीं
दिशाएं बदलो किनारे बदल जायेंगे .''
और उसे सुनकर सभी की वाह वाह के साथ कार्यक्रम के एक गुरु ''संदीप महावीर ''कहते हैं -
''कमाल है श्वेता जी आपका शेर .....कमाल है ......और कमाल हैं आप ऊपर से लेकर नीचे तक कमाल हैं .......''और सभी सुन तालियां बजाकर रह गए और थोडा असहज होकर फिर कार्यक्रम सँभालने लगी श्वेता आखिर कार्यक्रम दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहा था जो कि देश का सबसे बड़ा चैनल है और जिस पर कार्यक्रम में कोई भी गड़बड़ उससे जुड़े सभी के लिए हानिकारक साबित हो सकती है हाँ उसमे हो रही बात नारी गरिमा के लिए भले ही कितनी हानिकारक हो क्या फर्क पड़ता है ?
दूरदर्शन पर प्रसारित इस कार्यक्रम में आज चौबीस घंटे बीतने के बाद भी किसी को कोई संदीप महावीर के कथन में श्वेता साल्वे के लिए कोई अभद्रता,कोई गलत सोच नज़र नहीं आयी वही अभद्रता जो सदियों से पुरुष नारी के प्रति करता आ रहा है, वही सोच जो वह उसके प्रति रखता आ रहा है कि वह उसका मालिक है और वह उसकी गुलाम .जिस शेर पर किसी की भी प्रतिक्रिया यह होती कि ''सही कहा आपने श्वेता जी हमें अपने दिमाग बदलने की ज़रुरत है फिर सब सही है और कहीं भी कोई समस्या नहीं है ..''उस पर संदीप महावीर को श्वेता साल्वे ऊपर से नीचे तक कमाल दिखती हैं नहीं दिखता उनका दिमाग ,जो पूर्व और पश्चिम के मेल का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करता है हमेशा की तरह वही दिखता है जो पुरुष देखना चाहता है एक मात्र नारी शरीर ,और चलिए उन्हें तो दिखता है नारी शरीर किन्तु कहाँ है भारतीय संस्कृति का संरक्षक दूरदर्शन जो अपने पर प्रसारित फिल्मो तक को कांट-छांटकर केवल देश की संस्कृति के अनुरूप ही प्रदर्शन की अनुमति प्रदान करता है और कहाँ हैं वे महिला संगठन जो श्री प्रकाश जायसवाल के 'बीबी पुरानी ''और दिग्विजय सिंह के ''१००% टंच माल ..''जैसे कथनो पर बबाल खड़े करते हैं किन्तु यहाँ कुछ नहीं बोलते .डॉ.सोनल मानसिंह जैसी गुरु श्रेष्ठ ,नृत्यांगना की वहाँ मौजूदगी भी संदीप महावीर का मुंह बंद नहीं कर पाती ,ऐसा नहीं है कि कार्यक्रम में ये पहली बार हुआ है पहले भी एक बार श्वेता के नृत्य पर संदीप महावीर की टिप्पणी ने उन्हें असहज कर दिया था कित्नु हमेशा की तरह जैसे नारी खून के घूँट पीकर पुरुष ज्यादती को सहती रही है वैसे ही तब भी वे सह गयी किन्तु ये उनकी व्यवसायिक मजबूरी थी पर वहाँ मौजूद दर्शकों की ,अन्य गुरु संदीप सोपारकर की और स्वयं नारी होते हुए गुरु श्रेष्ठ डॉ.सोनल मानसिंह की क्या मजबूरी थी जो उन्होंने इसमें हस्तक्षेप करते हुए उन्हें नहीं रोका ?क्या व्यवसायिक दृष्टिकोण से नारी का शोषण करने का पुरुषों को कोई अनुमति पत्र प्राप्त होता है जिसमे किसी को भी कुछ बोलने का अधिकार होता है किन्तु किसी को उसे रोककर सभ्यता ,शिष्टता का आईना दिखने का अधिकार नहीं होता .
मैं निश्चित रूप से कह सकती हूँ कि आजकल इस तरह के कार्यक्रमों ने इन्हें देखना मुहाल कर दिया है और जैसे कि एक समय दूरदर्शन के कार्यक्रम पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते थे अब ऐसा नहीं रह गया है .इस कार्यक्रम में संदीप महावीर को भारतीय नृत्य का गुरु दिखाया गया है ऐसे में तो कोई भी उनसे इस तरह के निम्न श्रेणी के वक्तव्यों की अपेक्षा नहीं कर सकता क्योंकि ये न केवल नारी का बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति व् इसके संवाहक दूरदर्शन का भी अपमान है और दूरदर्शन को इस सम्बन्ध में कड़े कदम उठाने ही होंगें .
साथ ही उन महिला संगठनों को भी ध्यान देना होगा जो आज नारी मुक्ति ,नारी सशक्तिकरण का झंडा बुलंद किये फिरते हैं .इस तरह की बातों पर उनकी चुप्पी उनकी कार्यशैली को संदेह के घेरे में ले आती है जब वे खुलेआम प्रसारित इन कार्यक्रम में नारी के प्रति अभद्रता पर चुप हैं तो दबे छिपे किये जा रहे नारी शोषण के मामलों पर वे कैसे नारी के मददगार साबित होंगें .आज जो हाल हैं उन्हें देखकर तो ''हरबंस सिंह निर्मल ''जी के इन शब्दों में नारी की पीड़ा ही ज़ाहिर होती है -
''पिलाकर गिरना नहीं कोई मुश्किल ,
गिरे को उठाये वो कोई नहीं है .
ज़माने ने मुझको दिए ज़ख्म इतने ,
जो मरहम लगाये वो कोई नहीं है .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (16-01-2014) को "फिसल गया वक्त" चर्चा - 1494 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'