आप ने दिखाया लोकतन्त्र का वास्तविक रूप

Kejriwal called off the protest by AAP government near Rail Bhavan after Lt-Governor accepted their demands.Kejriwal ends his dharnaराजनीतिशास्त्र की विद्यार्थी रही हूँ पढ़ा था कभी अपनी किताबों में कि ''लोकतंत्र मूर्खों का शासन है ''आज देख भी लिया .
दिल्ली में जब से ''आप''की सरकार बनी है तबसे लेकर आज तक अगर देखा जाये तो देश चैन से बैठ ही नहीं पाया .बहुत उत्साही हैं आप के नेता व् कार्यकर्ता बहुत बड़ी विजय कहते हैं दिल्ली की सत्ता हथियाने को .रोज कुछ न कुछ करते ही रहते हैं और लगता ही नहीं कि ये काम कोई सत्ता में बैठे नेता वर्ग द्वारा हो रहा है ,केजरीवाल जी तो कहते ही हैं कि वे ए.सी.के लोकतन्त्र को सड़क के लोकतंत्र में ले आये हैं .वे कहते हैं कि यही लोकतंत्र होता है ,सही कहते हैं केजरीवाल, भला उनसे बेहतर कौन समझ सकता है लोकतंत्र को और वे जो खुद समझते हैं अब सबको समझाकर रहेंगे और दिल्ली वालों को अब दिखाकर रहेंगे कि
''तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको ,
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है ''
और अब ये मुहब्बत जो दिल्ली वालों पहले तुमने अरविन्द केजरीवाल से की अब वे तुमसे कर रहे हैं और दिखा रहे हैं कि वास्तविक लोकतन्त्र के क्या मायने हैं ?
जनता की सरकार ऐसी ही होती है और इसलिए इसे मूर्खों का शासन कहा गया है जहाँ सरकार के मुखिया को काम करना ही न आता हो और वह जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को पहले तो स्वयं इस तरह रोज रोज के धरने कर बर्बाद करता है और फिर जनता के आने जाने सहित रोजमर्रा के कार्यों में विघ्न उपस्थित कर उनसे उनके मुंह का निवाला छीन का बर्बाद करता है .
पुलिस कार्यवाही को लेकर और फिर उनके बर्खास्त किये जाने को लेकर जो धरने की कार्यवाही केजरीवाल की आप ने की वह पूर्णतया सरकार के कार्य करने के तरीके में दखल अंदाजी कही जायेगी जब उन्हें ''न्यायिक जाँच '' का आश्वासन मिल गया था तब ये संशय किया जाना कि वह कैसे हो सकती है जब तक वे पुलिस वाले कार्यरत है जबकि वे स्वयं जानते हैं कि न्यायिक जाँच ''मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाती है जो कि पुलिस से ऊपर स्थान रखते हैं और फिर एक तरफ तो केजरीवाल राजकीय आवास तक नहीं ले रहे थे और अब वे गृह मंत्री द्वारा धरने का स्थान बताने पर कह रहे हैं कि मैं मुख्यमंत्री हूँ मैं जहाँ चाहे बैठ सकता हूँ फिर चाहे उनकी इस गतिविधि से देश में कोई भी स्थिति उत्पन्न हो जाये .उनके कार्यकर्ता कहते हैं कि मेट्रो गलत बंद की खोल दीजिये जबकि स्वयं उनका अपने कार्यकर्ताओं पर कोई नियंत्रण नहीं और उनके धरने के दौरान हिंसा की छिट-पुट वारदात भी हुई ऐसे में अगर स्थिति बिगड़ती तो क्या वे नुकसान की भरपाई कर सकते थे जो उनकी अराजकतावादी गतिविधि से जनता को हो जाता और अब उस धरने को उन्होंने राज्यपाल नजीब जंग जी के ये कहने पर समाप्त कर दिया कि वे पुलिस वाले छुट्टी पर भेज दिए गए हैं और इसे वे अपनी आंशिक सफलता बता रहे हैं तो ठीक तो कहते हैं भाजपा के नेता कि क्या ये आंशिक सफलता ही इतने बड़े धरने का उद्देशय था और क्या यही है आंशिक सफलता कि वे छुट्टी पर भेज दिए गए.क्या इस तरह दोषी पुलिस वालों के खिलाफ जाँच कार्य पूरी सफलता से सम्भव होने की गारंटी मिल गयी ? इस तरह तो साफ तौर पर यही कहा जा सकता है कि वे ये सब दिल्ली में अराजकता फ़ैलाने के लिए ही कर रहे हैं जिस सरकार का कार्य जनता के लिए सुविधाओं की उपलब्धता करना होता है वही उसके लिए सिरदर्द बन गयी है .सस्ती बिजली पानी का दिखावा कर ये सरकार उनके लिए ज़िंदगी ही महंगी कर रही है .जनता की माँ की बात कह लोगों की भावनाओं खेलने वाले केजरीवाल के ये रोज के धरने आज हर नागरिक को जो सुविधाएँ उपलब्ध है उनसे भी वंचित कर रहे हैं सही है दिल्ली की जनता को ये झेलना भी होगा क्योंकि सबसे पहले लोकतन्त्र की सही पहचान भी तो उसने स्वयं इनके पक्ष में वोट डालकर की है .जो जनता अपनी १५ वर्षों से स्थापित सरकार को महज प्याज ,पुलिस कार्यवाही [जिसके लिए उनकी वर्त्तमान सरकार भी पिछली सरकारों को ही दोषी ठहराती थी ] और सस्ती बिजली पानी [जो अब भी कुछ वर्गों को ही मिल पाया है ] के लिए पद से हटाकर अपनी बहुत बड़ी सफलता मानती है उसे अपनी गलतियों का खामियाजा तो भुगतना ही होगा और अपनी इस सरकार के लिए यही सुनना होगा कि -
''तुमसे उम्मीद-ए-वफ़ा जिसे होगी ,उसे होगी ,
हमें तो देखना है कि तुम कातिल कहाँ तक हो .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

दिखा रहे हैं कि लोकतन्त्र को कितना खींचा जा सकता है।
रविकर ने कहा…
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति गुरुवारीय चर्चा मंच पर ।।

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