बाज़ार बन चुका मीडिया
मीडिया
लोकतंत्र की पहचान
जनता का हथियार
सत्य
सर्वत्र प्रसारित हो
सब हर सच से परिचित हों
कर्त्तव्य परम
किन्तु पथभ्रष्ट हुआ
भटका ये स्तम्भ
समाचारों का प्रकाशन
प्रचार प्रसार
मात्र
चंद रुपयों में
संविदा आधारित व्यापार
बनी आज सत्य पथ पर चलने की
प्रतिज्ञा
प्राप्त जहाँ से ठेका,विज्ञापन
बढ़ा रहा उसे आगे
बता रहा उसे सही
फिर
कहाँ गया विश्वास
सत्य ला रहा ये
किस पर करें भरोसा
जब असत्य कह रहा ये
फिर
कैसी ये पहचान लोकतंत्र की
कैसा ये हथियार जनता का
आज मात्र
बाज़ार बन चुका
मीडिया
जहाँ बिक रहा है
प्रचार ,प्रसार,समाचार।
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
ना मुमकिन है। फिर भी कमोबेश मीडिया की साख बरकरार है भले सबके अपने मीडिया घराने हैं
चैनल हैं। बढ़िया मुद्दा उठाती पोस्ट और यह सशक्त रचना। बधाई होली की बढ़िया लेखन की।
कौन करे परमार्थ।