बाज़ार बन चुका मीडिया
मीडिया
लोकतंत्र की पहचान
जनता का हथियार
सत्य
सर्वत्र प्रसारित हो
सब हर सच से परिचित हों
कर्त्तव्य परम
किन्तु पथभ्रष्ट हुआ
भटका ये स्तम्भ
समाचारों का प्रकाशन
प्रचार प्रसार
मात्र
चंद रुपयों में
संविदा आधारित व्यापार
बनी आज सत्य पथ पर चलने की
प्रतिज्ञा
प्राप्त जहाँ से ठेका,विज्ञापन
बढ़ा रहा उसे आगे
बता रहा उसे सही
फिर
कहाँ गया विश्वास
सत्य ला रहा ये
किस पर करें भरोसा
जब असत्य कह रहा ये
फिर
कैसी ये पहचान लोकतंत्र की
कैसा ये हथियार जनता का
आज मात्र
बाज़ार बन चुका
मीडिया
जहाँ बिक रहा है
प्रचार ,प्रसार,समाचार।
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियां
आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-03-2014) को "होली के रंग चर्चा के संग" (चर्चा मंच-1555) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ना मुमकिन है। फिर भी कमोबेश मीडिया की साख बरकरार है भले सबके अपने मीडिया घराने हैं
चैनल हैं। बढ़िया मुद्दा उठाती पोस्ट और यह सशक्त रचना। बधाई होली की बढ़िया लेखन की।
कौन करे परमार्थ।