महज़ इज़ज़त है मर्दों की ,महज़ मर्दों में खुद्दारी ,

 
बहाने खुद बनाते हैं,हमें खामोश रखते हैं ,
बहाना बन नहीं पाये ,अकड़कर बात करते हैं .
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हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,
हुकुम मनवाने की ताकत ,पैर में साथ रखते हैं .
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मेहरबानी होती इनकी .मिले दो रोटी खाने को ,
मगर बदले में औरत के ,लहू से पेट भरते हैं .
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महज़ इज़ज़त है मर्दों की ,महज़ मर्दों में खुद्दारी ,
साँस तक औरत की अपने ,हाथ में बंद रखते हैं .
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पूछकर पढ़ती-लिखती हैं ,पूछकर आती-जाती हैं ,
इधर ये मर्द बिन पूछे ,इन्हीं पर शासन करते हैं .
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इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,
खिलाफत खुलकर होने पर ,भी अपनी चाल चलते हैं .
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नहीं हम कर सकते हैं कुछ भी ,टूटकर कहती ''शालिनी ''
बनाकर  जज़बाती हमको ,ये हम पर राज़ करते हैं .

..
शालिनी कौशिक 


   [WOMAN ABOUT MAN

टिप्पणियाँ

शानदार अभिव्यक्ति......
Basant Khileri ने कहा…
बहुत हि अच्छी प्रस्तुती प्रस्तुत कि आपने!
हमारे तकनिकि ब्लॉग पर पधारे- www.hindi-pc.blogspot.com
Kailash Sharma ने कहा…
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,
खिलाफत खुलकर होने पर,भी अपनी चाल चलते हैं बहुत सुन्दर गजल ...!
RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,
खिलाफत खुलकर होने पर,भी अपनी चाल चलते हैं बहुत सुन्दर गजल ...!
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