महबूबा यहाँ सबकी बस कुर्सी सियासत की ,
फुरसत में तुम्हारा ही दीदार करते हैं ,
खुद से भी ज्यादा तुमको हम प्यार करते हैं।
अपनों से ज़ुदा होने की फ़िक्र है नहीं ,
तुम पर ही जान अपनी निसार करते हैं।
झुकती हमारी गर्दन तेरे ही दर पे आकर ,
हम तेरे आगे सिज़दा बार -बार करते हैं।
ये ज़िंदगी है कितनी हमको खबर नहीं है ,
पलकें बिछाके फिर भी इंतज़ार करते हैं।
बालों में है सफेदी ,न मुंह में दाँत कोई ,
खुद को तेरी कशिश में तैयार करते हैं।
महबूबा यहाँ सबकी बस कुर्सी सियासत की ,
पाने को धक्का -मुक्की और वार करते हैं।
''शालिनी ''देखती है देखे अवाम सारी ,
बहरूपिये बन -ठन कर इज़हार करते हैं।
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियां
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (28-03-2014) को "जय बोलें किसकी" (चर्चा अंक-1565) "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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आप भी आइएगा ....धन्यवाद!