aaj ke neta
आज अगर हम देखें तो यह बात सबसे ज्यादा सिरदर्द पैदा करती है की देश की बागडोर जिन हाथों में हैं वे हाथ देश को पतन के gahre गढढे में धकेल रहे हैं.जब पथ दर्शक ही पथ-भ्रष्ट हो जाये तो विनाश निश्चित है .छोटे से chhote star से लेकर बड़े स्तर तक भ्रष्टाचार ही दिखाई दे रहा है. लोग यह कहते नज़र आते हैं की आज तो वो ईमानदार है जो पैसा लेकर काम कर दे.यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय भी बढ़ते भ्रष्टाचार से परेशान होकर सरकार को काम के पैसे निश्चित करने कि सलाह तक देते हैं.आज के इन नेताओं के बारे में तो कवि कुमार पंकज कि ये पंक्तियाँ यद् आ रही हैं..
सैकड़ों नदियों को पीकर कश्तियाँ तक खा गए,
गाँव गलियां सब पचाकर बस्तियां तक खा गए,
वो वतन कि भूख को कैसे मिटायेंगे भला,
जो शहीदों कि चिताओं की अस्थियाँ तक खा गए.
सैकड़ों नदियों को पीकर कश्तियाँ तक खा गए,
गाँव गलियां सब पचाकर बस्तियां तक खा गए,
वो वतन कि भूख को कैसे मिटायेंगे भला,
जो शहीदों कि चिताओं की अस्थियाँ तक खा गए.
टिप्पणियाँ