ayodhya mamla
अयोध्या मामले में अब सुलह की कोशिशें की जा रही हैं जिनका कोई ओचित्य नज़र नहीं आता . जब तक मामला कोर्ट तक नहीं पहुँचता है तब तक ही उसमे सुलह के प्रयासों का कोई ओचित्य दीखता है लेकिन जब मामला कोर्ट के हाथों में पहुच जाता है तब ऐसे प्रयास बेकार नज़र आते हैं क्योंकि यदि मामला सुलह से सुलझ सकता तो उसे कोर्ट तक ले जाना ही क्यों पड़ता.साथ ही हमेशा से देखा गया है कि समझोते के होने पर सही पक्ष को हानि उठानी पड़ती है .वहीँ यहाँ निर्मोही अखाडा के अध्यक्ष भास्कर दास का ये कहना कि अखाडा परिषद् मुकदमे में न तो पक्षकार है और न ही उसका मालिकाना हक बनता है इसलिए ज्ञानदास और अंसारी के बीच वार्ता बेमतलब है,गलत है क्योंकि रामलला कोई प्रोपर्टी नहीं हैं बल्कि भक्तो के मन में बसने वाले भगवन हैं उनसे जन-जन कि भावनाएं जुडी हैं और भक्तो को भगवान से कोई अलग नहीं केर सकता .इसलिए यदि इस सम्बन्ध में कोई भी पहल होती है तो साडी जनता जुड़ने कि अधिकारी है.
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