women right-6

अब जो केस सर्वाधिक विचाराधीन होते हैं वे हैं भरण-पोषण के.और यदि हम विचार करें तो महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या भी भरण-पोषण की होती है.आधिकांश महिलाएं जो की अशिक्षित होती हैं विवाह के पश्चात् यदि पति द्वारा त्याग दी जाएँ तो वे अपने इस अधिकार से अंजान होने  के कारण असहाय अवस्था में पहुँच जाती हैं.जबकि कानून द्वारा दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ में निम्न प्रकार भरण पोषण की व्यवस्था की है-
१२५-पत्नी संतान और माता पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश-१-यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -
क-अपनी पत्नी का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,या
ख-अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे अविवाहित हो या न हो,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,या
ग-अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्नी नहीं है),जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के  कारण अपना  भरण-पोषण करने में असमर्थ है,या
घ- अपने पिता या माता का,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं,भरण पोषण करने की उपेक्षा  करता है या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मगिस्त्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकेगा की वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान पिता या माता पिता के भरण पोषण के लिए ---
पहले ये 500rs. निर्धारित था पर अधिनियम संख्या ५० सन २००१ के संशोधन द्वारा अब यह सीमा हटा ली गयी है और मजिस्ट्रेट असीमित रकम द्वारा भरण पोषण का आदेश दे सकता है.
  मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति  को करे जिसको संदाय करने का मगिस्त्रेट समय समय पर निदेश करे.
इस सम्बन्ध में यदि आप कुछ पूछना चाहे तो पूछ सकती हैं. आगे कल.....

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