zindgi
जिंदगी क्या है,
शायद ये कोई रस्सी है,
जो हमें संसार से बांधती है.
नहीं यह कच्चे धागे के समान है,
जो एक ही झटके से टूटकर
हमें विश्व से अलग कर देती है.
जिंदगी मनुष्य को मोह में फंसाकर,
मोक्ष से दूर करती है.
जिंदगी प्रेम भी है विवाद भी,
हम इससे khushhal भी हैं बेहाल भी,
फिर भी जिंदगी जिंदगी है,
जिंदगी का स्थान मृत्यु
ले नहीं सकती कभी,
जिंदगी से ही हैं मिलती
दुनिया में खुशियाँ नयी-नयी.
स्त्री अधिकारों पर चर्चा छोड़ी नहीं है बस थोडा मूड बदलने के लिए कविता लिख rahi hoon.kripya jude rahen.
शायद ये कोई रस्सी है,
जो हमें संसार से बांधती है.
नहीं यह कच्चे धागे के समान है,
जो एक ही झटके से टूटकर
हमें विश्व से अलग कर देती है.
जिंदगी मनुष्य को मोह में फंसाकर,
मोक्ष से दूर करती है.
जिंदगी प्रेम भी है विवाद भी,
हम इससे khushhal भी हैं बेहाल भी,
फिर भी जिंदगी जिंदगी है,
जिंदगी का स्थान मृत्यु
ले नहीं सकती कभी,
जिंदगी से ही हैं मिलती
दुनिया में खुशियाँ नयी-नयी.
स्त्री अधिकारों पर चर्चा छोड़ी नहीं है बस थोडा मूड बदलने के लिए कविता लिख rahi hoon.kripya jude rahen.
टिप्पणियाँ
शायद ये कोई रस्सी है,
जो हमें संसार से बांधती है.
नहीं यह कच्चे धागे के समान है,
सच ज़िन्दगी ना जाने क्या है.....? बहुत सुंदर
कविता में यथार्थ का दर्शन है !
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जन्नत में जल प्रलय !