रविशंकर प्रसाद मात्र बोलने के लिए क्यूँ बोलें
''कभी चिराग़ तय थे हरेक घर के लिए ,
कभी चरागाँ मयस्सर नहीं शहर के लिए.''
कहकर भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने कॉंग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र को धोखा करार दिया ,कोई विशेष बात नहीं की हरेक पार्टी अपनी विरोधी पार्टी के वादों को धोखा ही कहती है किन्तु जो कहकर वे कॉंग्रेस के घोषणा पत्र की बुराई कर रहे हैं , आलोचना का विषय वह है कॉंग्रेस वह पार्टी है जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक देश पर सर्वाधिक शासन किया है इसका कारण महज शासन करने की काबिलियत का होना व् जनता में कॉंग्रेस के लिए विश्वास और उसके प्रति प्रेम ही नहीं है अपितु कॉंग्रेस के द्वारा देश हित व् जन हित में किये गए कार्य भी हैं .
कॉंग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र को इस बार युवाओं ,महिलाओं व् समाज के विभिन्न तबकों से बातचीत के आधार पर तैयार किया है .उसने इसमें आने वाले समय के लिए वादे भी किये हैं और अपने दस वर्षीय शासन काल की उपलब्धियां .भी गिनवाई हैं और ये स्वाभाविक भी है क्योंकि इसमें न केवल कॉंग्रेस की मेहनत है बल्कि कॉंग्रेस के द्वारा देशहित में देखे गए वे सपने भी हैं जो वह अपने देश की जनता के लिए पूरे करना चाहती है और ये उपलब्धियां ही विपक्षी दल भाजपा की राह का कांटा हैं जिनके कारण रविशंकर प्रसाद इस घोषणा पत्र को धोखा कह रहे हैं जबकि वे स्वयं जानते हैं कि जनता का वह वर्ग जो इन उपलब्धियों के फायदे उठा रहा है उसका कॉंग्रेस में इससे विश्वास और मजबूत हो जायेगा और जो वर्ग इन उपलब्धियों से अनजान है वह भी अब इनसे परिचित हो जायेगा और धोखे में उसके जो कदम भाजपा की ओर बढे जा रहे थे अब वापस कॉंग्रेस की ओर मुड़ जायेंगें और रही बात रविशंकर प्रसाद के चिराग़ की तो उसका जवाब कॉंग्रेस के बड़े नेता अपने बलिदानों से पहले ही दे चुके हैं जिसे अगर वे गम्भीरता से विचारें ,प्रमाणित मानें या न मानें और कान खोलकर सुनें या बंदकर न सुन पाने का स्वयं को धोखा दें तब भी कभी अपना मुंह नहीं खोल पाएंगे जो मात्र इतना सा है -
''रौशनी देश के हर घर में हो सके ,
मैंने अपने ही घर को बनाया दिया .
देश के बच्चे-बच्चे को सांसे मिलें
खून अपने बदन का बहा यूँ दिया .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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