आजकल का प्यार तो ये है .
क्या यही प्यार है-
''न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर ,
ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में.''
कवि
गोपाल दास ''नीरज''की या पंक्तियाँ आजकल के कथित प्रेमी-प्रेमिकाओं पर
शत-प्रतिशत खरी उतरती हैं जो कहने को करते तो प्यार हैं लेकिन प्यार के नाम
पर वे कुछ और ही कर रहे हैं कहीं आजकल का कथित प्रेमी प्रेमिका का क़त्ल
कर रहा है तो कहीं आजकल की कथित प्रेमिका अपने पति और ४ -४ बच्चों को छोड़कर
उसके साथ भागी जा रही है। कहीं प्रेमी प्रेमिका को किसी और की होने से
रोकने के लिए उसका चेहरा तेजाब से झुलसा रहा है और इस तरह उसका पूरा जीवन
ही नर्क बना रहा है और एक तरफ प्रेमिका प्यार के नाम पर सौदे कर रही है
कहीं प्रेमी से अपने फोन के बिल भरवा रही है तो कहीं महंगे महंगे उपहार
खरीद रही है जबकि प्यार का एक नाम त्याग भी कहा जाता है ये शायद आजकल के
तथाकथित प्रेमी प्रेमिकाओं को मालूम ही नहीं है।
क्या यही है आज का प्यार जो ऐसी स्थितियां अपने कथित प्यार के लिए उत्पन्न करता है .ये तो वही बात हुई -
'' हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे ''
सभी का प्यार के लिए यही कहना है कि प्यार त्याग का दूसरा नाम है .पहली
बात तो ये है कि जब किसी दुल्हन ने उनके इस कदम का विरोध किया तो साफ बात
ये है कि वह शादी खुद की मर्जी से कर रही थी और ऐसे में यदि वह उससे
प्यार करता था तो उसे अपने प्यार के लिए अपनी भावनाओं का बलिदान करना
चाहिए था किन्तु आज के समय में पुराने समय जैसे पवित्र प्यार की कल्पना तक
नहीं की जा सकती .दूसरी बात आज हर आकर्षण को प्यार का नाम दे दिया जाता
है और यह आकर्षण अधिकांशतया एक तरफ़ा होता है और इसका खामियाजा आये दिन
लड़कियों को भुगतना पड़ता है .कहीं बस में बैठी ,कहीं कोलेज में आई लड़की
को गोली से उड़ा दिया जाता है तो कहीं लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल उसे
अभिशप्त जिंदगी जीने को मजबूर किया जाता है .एक ओर जहाँ लड़कियों के
सशक्तिकरण की कोशिशें की जा रही हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसी घटनाएँ लड़कियों व्
उनके परिजनों में भय व्याप्त कर रही हैं और मैं नहीं समझती कि ये प्यार
है .प्यार में भय का कोई स्थान नहीं .फिल्म मुग़ले-आज़म का लोकप्रिय गीत -
''जब प्यार किया तो डरना क्या''
भी इसी बात का समर्थन करता है और ये घटनाएँ प्यार की मूल भावनाओं को
दरकिनार करते हुए स्वार्थ की भावना को ही ऊपर दिखा रही है .साथ ही जहाँ
कहीं भी किसी लड़के लड़की की बात आती है तो पुलिस प्रशासन और मीडिया तुँरंत
प्रेम सम्बन्ध जोड़ देता है और बदनामी का कलंक लग जाता है लड़की के माथे
पर जिसका दोष केवल इतना है कि वह लड़की है .इसलिए ऐसी घटनाएँ केवल आजकल के
प्यार जो अधिकांशतया [महज आकर्षण है]पर सवालिया निशान खड़ा करती हैं.ऐसे
में अंत में भी कवि गोपाल दास ''नीरज''की यही पंक्तियाँ कहूँगी -
''जिनको खुशबू की न कोई पहचान थी ,
उनके घर फूलों की डोली आ गयी .
मोमबत्ती भी जिनसे नहीं जल सकी,
उनके हाथों में अब रौशनी आ गयी.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक