क्या ये जनता भोली है ?
''जवां सितारों को गर्दिश सिखा रहा था , कल उसके हाथ का कंगन घुमा रहा था . उसी दिए ने जलाया मेरी हथेली को , जिसकी लौ को हवा से बचा रहा था .'' तनवीर गाजी का ये शेर बयां करता है वह हालात जो रु-ब-रु कराते हैं हमें हमारे सच से ,हम वही हैं जो सदैव से अपने किये की जिम्मेदारी लेने से बचते रहे हैं ,हम वही हैं जो अपने साथ कुछ भी बुरा घटित होता है तो उसकी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपते रहते हैं हाँ इसमें यह अपवाद अवश्य है कि यदि कुछ भी अच्छा हमारे साथ होता है तो उसका श्रेय हम किसी दूसरे को लेने नहीं देते -''वह हमारी काबिलियत है ,,वह हमारा सौभाग्य है ,हमने अपनी प्रतिभा के ,मेहनत के बल पर उसे हासिल किया है .''...ऐसे ऐसे न जाने कितने महिमा मंडन हम स्वयं के लिए करते हैं और बुरा होने पर .....यदि कहीं किसी महिला ,लड़की के साथ छेड़खानी देखते हैं तो पहले बचकर निकलते हैं फिर कहते हैं कि माहौल बहुत ख़राब है ,यदि किसी के साथ चोरी ,लूट होते देखते हैं तो आँखें बंद कर पुलिस की प्रतीक्षा करते हैं आदि .आज जनता जिन हालात से दो चार हो रही है उसके लिए सरकार को...