काँग्रेस की महान देन देश के लिए - जे एन यू.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, देश की विख्यात शिक्षण संस्थानों में से एक, पिछले कुछ समय से, विशेष तौर पर उस समय से जब से नेहरू विरोधी सत्ता उभरकर सामने आई है एक ऐसे संस्थान के रूप में दिखाया जा रहा है जैसे यह संस्थान राष्ट्र विरोधी ताकतों का "अड्डा" हो, जबकि इस संस्थान का स्थापना से लेकर आज तक देश के विभिन्न मुद्दों पर क्या नजरिया रहा है और देश के संकट की घड़ी में यह संस्थान किस तरह देश के साथ खड़ा रहा है इस पर "अमर उजाला दैनिक" ने एक विस्तृत अवलोकन 22 नवंबर 2019 को प्रस्तुत किया और इस सभी की जानकारी देश को भटकाव की तरफ ले जाने वाले, देश के लिए कुर्बानी का जज्बा और समर्पण की भावना रखने वाले संस्थान की प्रसिद्धि को देश विरोधी गुट से जोड़ने की कोशिश करने वालों की कोशिशों को नाकाम करने के लिए हम सभी आम भारतीयों द्वारा जानना आवश्यक है - 
14 नवंबर 1969 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। भारतीय संसद द्वारा 22 दिसंबर 1966 में इसके निर्माण के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था। जेएनयू को अधिनियम 1966 (1966 का 53) के तहत बनाया गया।

जेएनयू का उद्देश्य रहा है- अध्ययन, अनुसंधान और अपने समस्त जीवन के प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार करना।
जेएनयू का मकसद जवाहरलाल नेहरू ने जिन सिद्धान्तों पर जीवन-पर्यंन्त काम किया, उनके विकास के लिए प्रयास करना है।
जेएनयू  की नींव विचार पर रखी गई थी और फिर इसने एक महत्वपूर्ण संस्था के रूप में अपने आप को स्थापित किया। इससे शिक्षा प्राप्त करके निकले छात्रों ने देश विदेश में बहुत नाम अर्जित किया,  
उपराष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्री, नौकरशाह या फिर फिल्मी दुनिया में अपने हुनर की पहचान बिखेरना हो, मंत्री से संत्री तक और देश विदेश तक अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं।  
अनिल कुमार गुप्ता (उपराष्ट्रपति आरिसेंट) से लेकर मुकुल शर्मा ( कैप जेमिनी अमेरिका एलएलसी, शिकागो ) तक जेएनयू के पूर्व छात्र रहे हैं।
जेएनयू के कामयाब छात्रों की फेहरिस्त में निर्मला सीतारमण, अभिजीत बनर्जी, योगेंद्र यादव, मेनका गांधी, अजित सेठ, पी साईनाथ, तलत अहमद, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात आदि ऐसे बहुत नाम हैं।
सुब्रमण्यम जयशंकर
सुब्रमण्यम जयशंकर ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। जयशंकर ने राजनीति विज्ञान में एमफिल किया है और फिर जेएनयू से पीएचडी की उपाधि ली। सुब्रमण्यम जयशंकर को परमाणु कूटनीति में विशेषज्ञता हासिल है।

विदेश सेवा के 1977 बैच के अधिकारी रहे हैं। जयशंकर की पहली पोस्टिंग रूस के भारतीय दूतावास में थी। सुब्रमण्यम जयशंकर ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। जयशंकर तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के प्रेस सचिव भी रह चुके हैं।

वे विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी के पद पर भी रहे हैं। सुब्रमण्यम जयशंकर अमेरिका में भारत के प्रथम सचिव भी रहे हैं। वे पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी हैं।

निर्मला सीतारमण
वर्तमान में भारत की वित्त मंत्री।
स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद भारत के रक्षा मंत्रालय की कमान संभालने वाली दूसरी महिला नेता हैं और स्वतंत्र रूप से पहली पूर्णकालिक महिला रक्षामंत्री बनी हैं।
2003 से 2005 तक निर्मला सीतारमण राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या रह चुकी हैं।
3 सितंबर 2017 तक भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता के साथ-साथ भारत की वाणिज्य और उद्योग (स्वतंत्र प्रभार) तथा वित्त व कारपोरेट मामलों की राज्य मंत्री रही हैं।
3 सितंबर 2017 को श्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया।
1980 में निर्मला सीतारमण ने सीतालक्ष्मी रामास्वामि कॉलेज, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु से स्नातक की शिक्षा पूर्ण की।
निर्मला सीतारमण ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विषय में एमफिल किया है।

अभिजीत बनर्जी 
अपने कैंपस के दिनों को याद करते हुए नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने लिखा है -
2016 में एक लेख में उन्होंने ये भी बताया था कि,
"उन्हें किस तरह से 1983 में अपने दोस्तों के साथ तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था, तब जेएनयू के वाइस चांसलर को इन छात्रों से अपनी जान को ख़तरा हुआ था अपने आलेख में उन्होंने लिखा था, और हुआ ये था कि एक बार जेएनयू के तत्कालीन वाइस चांसलर पीएन श्रीवास्तव का विरोध करने के बाद छात्रों के घेराव करने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था और तिहाड़ जेल में भेज दिया गया।
जेएनयू की स्थापना कांग्रेस के शासनकाल में हुई थी और इसका नाम भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया। राजनीतिक रूप से जेएनयू कभी भी कांग्रेसी विचारधारा का नहीं रहा। जेएनयू के विद्यार्थियों का झुकाव ज्यादातर वामपंथी राजनीति की तरफ रहा है।
जब जेएनयू ने किया इंदिरा गांधी का विरोध
सत्तर के दशक का समय था आपातकाल घोषित हुआ इसी दौरान जेएनयू तत्कालीन सरकार विरोध में आगे रहा और जेएनयू कैंपस से निकले सीताराम येचुरी और प्रकाश करात ने वामपंथी राजनीति में अपना कमाया और देश की राजनीति में अपनी जगह बनाई।
जेएनयू के आंदोलन के समय ये फोटो सोशल मीडिया में खूब प्रसारित होता है।आंदोलनरत छात्रों से बात करने खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पहुँचती हैं।छात्रसंघ अध्यक्ष सीताराम येचुरी ने उनके सामने ही निंदा प्रस्ताव पढ़ा और जेएनयू के चांसलर पद से इस्तीफा माँगा।इंदिरा जी ने इस्तीफा दिया भी।छात्रों ने जेएनयू की संस्थापक इंदिरा जी को जेएनयू में घुसने नहीं दिया था।घोषित आपातकाल लगाने वाली 'देवी दुर्गा' इंदिरा ने छात्रों पर लाठियाँ नहीं चलवाईं।ये दास्तान तो ज्यादातर लोगों को मालूम है।लेकिन एक अनकही दास्तान बताता हूँ।जेएनयू के अध्यक्ष रहे और आपातकाल में जेल गये डी.पी.त्रिपाठी के हवाले से यह बात लिख रहा हूँ। बात 1977 की है।आपातकाल हटने के ठीक एक दिन पहले की।रात को करीब 1 बजे तीन चार नौजवान प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आवास में बाउण्ड्री फाँदकर घुस आए।सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें पकड़ लिया।नौजवानों ने कहा हम लोग जेएनयू के छात्र हैं और प्रधानमंत्री से मिलने आए हैं।सुरक्षाकर्मियों से कहा सुनी हो रही थी,तभी अंदर से आवाज आई,'कौन है वहाँ।'यह इंदिरा जी की आवाज थी।वे संभवतया परेशान और चिंतित अवस्था में टहल रही थीं। सुरक्षा कर्मियों ने बताया,कुछ लड़के हैं जो कह रहे हैं कि जेएनयू के छात्र हैं और मैडम से मिलने आए हैं।इंदिरा जी ने कहा,ले आओ उन्हें।जेएनयू के छात्र अब प्रधानमंत्री के सामने थे।इंदिरा जी ने पूछा,इतनी रात को बाउण्ड्री से कूदकर क्यौं आए हो।वे बोले,सामने से आते तो क्या आपके सुरक्षा कर्मी हमें घुसने देते।इंदिरा जी ने पूछा,अच्छा बताओ क्यों आए हो।छात्र बोले,मैडम आपको समझाने आए हैं।आप आपातकाल हटा दीजिए।इंदिरा गाँधी कुछ नहीं बोलीं।उन्होंने पूछा और कुछ कहना है।छात्र बोले,नहीं बस यही कहने आए हैं। इंदिरा जी ने सुरक्षा कर्मियों से कहा कि इन्हें चाय पानी पिलाकर भेज दो।छात्रों ने प्रतिकार किया कि हम चाय पानी नहीं पियेंगे।तब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मुख्य द्वार से बाहर भेज दिया। इत्तेफाक देखिए।दूसरे दिन इंदिरा गाँधी ने आपातकाल खत्म करने की घोषणा कर दी।इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उन छात्रों के कहने से इंदिरा जी ने ऐसा किया।लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि आपातकाल हटाने के अपने निर्णय में इस घटना ने जरूर इंदिरा जी की मदद की होगी। ऐसा है जेएनयू और यहाँ के छात्र और उनके आंदोलन।बस फर्क इतना आया है कि हुक्मरान बदल गये।उस समय के शासक जेएनयू के संस्थापक थे,अब के विध्वंसक। (जया सिंह की फेसबुक वाल से साभार) 


सीताराम येचुरी का जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) अध्यक्ष के रूप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन जो मुझे याद है कि श्रीमती को मजबूर करना था। इंदिरा गांधी ने जेएनयू के कुलपति के रूप में पद छोड़ दिया, जिसे उन्होंने 1977 के चुनावों में हार के बाद भी जारी रखा था।

जेएनयू के छात्रों ने पहले ही डॉ बीडी नागचौधरी को कुलपति के रूप में इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था, [और] सीताराम येचुरी के नेतृत्व में 500+ मजबूत प्रदर्शन दोपहर में जेएनयू परिसर से इंदिरा गांधी के निवास तक चला गया था।

"आपातकाल के अपराधियों" के खिलाफ जोरदार नारेबाजी के 10-15 मिनट के बाद, इंदिरा गांधी, अपने कुख्यात आपातकाल के समय के गृह मंत्री ओम मेहता के साथ और दो और गेट तक तेजी से चलीं। मुझे कहना चाहिए कि मैं उसके प्रभावशाली लेकिन सुखद दिखने वाले व्यक्तित्व से प्रभावित था। वह मुस्कुरा रही थी और थोड़ी देर के लिए नारे सुन रही थी। फिर, सीताराम येचुरी ने जेएनयूएसयू की मांगों को पढ़ना शुरू किया। उन्होंने इसे सबसे प्रभावी शैली में पढ़ा, जिसके लिए वह त्रुटिहीन अंग्रेजी में जाने जाते हैं। बहुत पहले पैराग्राफ ने सबसे ग्राफिक विस्तार में वर्णित आपातकाल के दौरान लोगों के खिलाफ उनकी सरकार के अपराधों को सूचीबद्ध किया।

कुछ ही क्षणों में उसकी मुस्कुराहट झुंझलाहट का रास्ता दे गई, वह ज्ञापन को पूरी तरह से नहीं सुन सकी और गुस्से में चेहरे के साथ वापस अपने निवास पर चली गई, अपने चार नाबालिगों के साथ, जैसे वह आई थी। नारेबाजी जारी रही और भाषण भी। ज्ञापन वहाँ छोड़ दिया गया था और अगले दिन, उसने जेएनयू के कुलपति के रूप में इस्तीफा दे दिया

जेएनयू के छात्र चुनाव अपने आप में यूनिक होते है और ये चुनाव खुद छात्र ही करवाते हैं।
कैंपस के छात्र मिलकर ही एक चुनाव समिति बनाते हैं।
जो चुनाव की रणनीति और चुनावी प्रक्रिया तय करते हैं।
चुनावों में खुलकर बहस होती है।
करीब सारे बैनर पोस्टर हाथ से बनाए जाते हैं, छपवा कर पोस्टर बैनर लगाने का चलन नहीं है और यही बात चुनावों को अलग बनाती हैं।बोलने की आजादी हो या फिर चुनावों के दौरान बहस का मुद्दा, इन मुद्दों में सरकार और सरकारी नीतियों की आलोचना भी की जाती है और अपनी बात भी रखी जाती है इसलिए इस कैंपस में छात्रों को बोलने की स्वतंत्रता ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी है। इस तरह की बहस में जमकर पर्चे छपते हैं और इसका जवाब भी पर्चों के माध्यम से आता है।
और आज देश के इस संस्थान को जिसने देश को बड़े बड़े महान व्यक्तित्व दिए हैं, संकट की घड़ी में खड़े रहने की ताकत दी है को बदनाम किया जा रहा है जिसकी स्थापना ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के आदर्शो को ध्यान में रखते हुए की गई है, जिनके अनुसार एक विश्वविद्यालय कैसा होना चाहिए - 

जेएनयू संस्था नहीं विचार है,
13 दिसंबर 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपने भाषण में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था,
"किसी भी विश्वविद्यालय का उद्देश्य मानवता, सहनशीलता, तर्कशीलता, चिंतन प्रक्रिया और सत्य की खोज की भावना को स्थापित करना होता है"
जवाहर लाल नेहरू जी के इन्हीं विचारों के मद्देनजर काँग्रेस पार्टी द्वारा जे एन यू की स्थापना की गयी और उनके इन्हीं आदर्शों को ध्यान में रखते हुए काँग्रेस पार्टी ने वहां अंदरुनी दखलंदाजी से खुद को दूर रखा और इसी का असर यह रहा कि वहां वामपंथी विचारधारा को पनपने का अवसर मिला किन्तु आज बिल्कुल विरोधी विचारधारा सत्तासीन है जो कि येन केन प्रकारेण अपनी विचारधारा को मनवाना चाहती है और इसी लिए देश में इस संस्थान को लेकर ऐसा जाल बिछा रही है जो कि इस संस्थान के विषय में ऐसी ऐसी भ्रांतियां जन जन के मन में फैला रहे हैं जिससे इस संस्थान के वास्तविक स्वरूप से बिल्कुल विपरीत स्वरूप उभरकर सामने आ रहा है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)

टिप्पणियाँ

Rishabh Shukla ने कहा…
सुन्दर अवलोकन...
Shalini kaushik ने कहा…
आभार ऋषभ जी
Ravindra Singh Yadav ने कहा…
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-11-2019) को "कंस हो गये कृष्ण आज" (चर्चा अंक 3530) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव

Shalini kaushik ने कहा…
आभार रवींद्र जी
बेनामी ने कहा…
अच्छा आलेख
Shalini kaushik ने कहा…
आभार राकेश जी
Anita ने कहा…
वामपंथी विचारधारा क्या होती है, वह देश के हित में किस प्रकार है, इस पर कुछ प्रकाश डालिये
Shalini kaushik ने कहा…
वामपंथी राजनीति (left-wing politics या leftist politics) राजनीति में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक बराबरी लाना चाहते हैं। एक समय ऐसा भी था जब वामपंथ को मानने वालों में सिर्फ बुद्धिजीवी लोग थे, [1][2] इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों। राजनीति के सन्दर्भ में 'बाएँ' और 'दाएँ' शब्दों का प्रयोग फ़्रान्सीसी क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ। फ़्रांस में क्रान्ति से पूर्व की एस्टेट जनरल (Estates General) नामक संसद में सम्राट को हटाकर गणतंत्र लाना चाहने वाले और धर्मनिरपेक्षता चाहने वाले अक्सर बाई तरफ़ बैठते थे। आधुनिक काल में समाजवाद (सोशलिज़म) और साम्यवाद (कम्युनिजम) से सम्बंधित विचारधाराओं को बाईं राजनीति में डाला जाता है।
और अनीता जी, मैं वामपंथी विचारधारा की न पक्षधर हूं न विरोधी, मैं केवल इतना कह रही हूँ कि ये केवल कॉंग्रेस है जिसने अपनी स्थापित संस्था में दूसरी विचारधारा को पनपने का अवसर दिया न कि कुचल डाला. टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद अनीता जी

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