प्रोटेम स्पीकर चयन - विवेकाधिकार का इस्तेमाल होना चाहिए था.

 


          देश में 18 वीं लोकसभा गठित होने जा रही है. भारतीय परंपरा के अनुसार जब भी कोई नई लोकसभा गठित होती है तो संसद के निचले सदन अर्थात लोकसभा में सबसे लम्बा समय गुजारने वाले सदस्य या निर्वाचित सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाता है। संसदीय मामलों के मंत्रालय के माध्यम से सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन प्रोटेम स्पीकर का नाम राष्ट्रपति के पास भेजता है। इसके बाद राष्ट्रपति प्रोटेम स्पीकर को नियुक्त करते रहे हैं, प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाते है। नए सांसदों को शपथ दिलाने में प्रोटेम स्पीकर की सहायता के लिए सरकार दो-तीन नामों की सिफारिश करती है। करीब दो दिनों तक सदस्यों को शपथ दिलाने का काम चलता है और इसके बाद सदस्य अपने लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। 

     इस प्राचीन परंपरा के अनुसार कांग्रेस के आठ बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश को 18 वीं लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर चुना जाना चाहिए था. किन्तु कटक से भाजपा सांसद भतृहरि महताब जो कि कॉंग्रेस पार्टी के सांसद के. सुरेश से 1 बार कम 7 बार के सांसद हैं इसलिए वरिष्ठता में उनसे कम हैं, को लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव होने तक पीठासीन अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अस्थायी अध्यक्ष (प्रोटेम) नियुक्त किया गया है.

*कोडिकुन्नील सुरेश 1989 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और उसके बाद उन्होंने 1991,1996 और 1999 के आम चुनावों में अडूर निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चार बार लोकसभा के लिए जीत हासिल की।  2009 में लोकसभा के आम चुनाव में, उन्होंने मवेलिकारा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के आर.एस. अनिल को 48,048 मतों के अंतर से हराया। उन्होंने 2009 के भारतीय आम चुनाव, 2014 के भारतीय आम चुनाव, 2019 के भारतीय आम चुनाव और 2024 के भारतीय आम चुनाव में मवेलिकारा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से जीतना जारी रखा और वर्तमान में वह सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले लोकसभा सांसद हैं क्योंकि वह 29 वर्षों तक सांसद रहे हैं। 

* भतृहरि महताब ने बीजद की टिकट पर 1998 में पहली बार कटक लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कटक सीट से 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज की। वह बीजद से छह बार सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे।  इस बार वह भाजपा की टिकट पर कटक से मैदान में उतरे और बीजद के संतरूप मिश्रा को 57077 वोट से हराया। ऐसे वह सातवीं बार भी सांसद चुने गए।

     इस तरह 8 बार के सांसद, 29 वर्षो से संसद की सेवा करने वाले कोडिकुन्नील सुरेश 18 वीं लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर पद के अधिकारी थे. और अनुच्छेद 95 (1) कहता है कि 

 *95-(1)-जब अध्यक्ष का पद रिक्त है, तो उस पद के कर्तव्यों का पालन उपसभापति द्वारा किया जाएगा, या यदि उपसभापति का पद भी रिक्त है, तो लोक सभा के ऐसे सदस्य द्वारा किया जाएगा, जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे।

     इसलिए यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान अनुच्छेद 95(1) के माध्यम से राष्ट्रपति को स्वविवेक प्रयोग का अधिकार देता है किन्तु भारतीय संविधान द्वारा इतनी शक्तियों के देने के बाद भी राष्ट्रपति द्वारा रबड़ स्टैंप की तरह ही काम किया गया है. 

      भारतीय संदर्भ में राष्ट्रपति की स्थिति को "रबड़ स्टैंप" कहा जाता है. क्यूँ कहा जाता है ये विचारणीय विषय है. भारत के संविधान में राष्ट्रपति जी को आपातकाल में कुछ विशेष शक्तियों के अलावा कोई भी कार्यकारी शक्ति प्रदान नहीं की गई है. सारी कार्यकारी शक्तियां मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री के नियंत्रण में होती हैं और मंत्रिमंडल की अनुसंशा के अनुसार राष्ट्रपति को चलना उनकी बाध्यता है इसलिए राष्ट्रपति को रबर स्टांप कहे जाने की धारणा को बल मिलता है. 

     पिछले राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने भी इस संदर्भ में कहा "कि एक "सोचने और बोलने वाले" व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन का निवासी होना चाहिए, न कि रबर स्टाम्प को, भारत को एक ऐसे राष्ट्रपति की जरूरत है जो संविधान के निष्पक्ष संरक्षक के रूप में काम करे, न कि सरकार के लिए रबर स्टांप के रूप में। राष्ट्रपति के पास अपना दिमाग होना चाहिए और जब भी गणतंत्र की कार्यपालिका या अन्य संस्थाएं संवैधानिक सिद्धांतों से विचलित हों, तो उसे बिना किसी डर या पक्षपात के, ईमानदारी से इसका इस्तेमाल करना चाहिए।"

एक तरह से सारी शक्तियां ही राष्ट्रपति में निहित हैं, वहीं दूसरी तरफ कोई शक्ति नहीं है। भारत में कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ही कानून बनता है। राष्ट्रपति किसी भी विधेयक पर हस्ताक्षर से पहले एक बार संशोधन के लिए वापस भेज सकत हैं किन्तु अगर संसद दुबारा वहीं कानून उन्हें भेजती है तो राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करना होगा. 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971 ने संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति को अपनी मंजूरी देना बाध्यकारी बना दिया है। लेकिन इसी से उनके पास एक अधिकार आ जाता है कि वो उसको वापस न भेज कर अपने पास ही रख लें। इसे जेबी वीटो या पॉकेट वीटो कहते हैं।

संविधान में राष्ट्रपति के लिए ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नही है जिसके अंदर विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना पड़े| इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को एक लम्बे समय तक लम्बित रख सकता है|

1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी सरकार के नेतृत्व में संसद ने ‘भारतीय पोस्ट ऑफिस संशोधन विधेयक’ पारित किया| यह विधेयक प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता था| अनेक लोगों द्वारा इस विधेयक की आलोचना की गई| जब विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया तो तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने पॉकेट वीटो के प्रयोग करते हुए उस पर कोई निर्णय नहीं लिया|

    जब के आर नारायणन राष्ट्रपति बने थे तब उन्होंने कहा था कि वे रबर स्टाम्प और अमेरिकी राष्र्ट्पति के बीच की एक कड़ी की तरह कार्यशील राष्ट्रपति बनना चाहेंगे। उन्होंने यह किया भी और कारगिल युद्ध के समय वाजपेयी को कहा कि लोकसभा न होने पर भी राजयसभा की बैठक लेकर कारगिल युद्ध पर निर्णय ले। ऑफिस ऑफ़ प्रोफिट के मामले में ए पी जे अब्दुल कलाम ने बिल को वापस लौटा दिया था। के.आर. नारायणन राष्ट्रपति थे और इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और रोमेश भंडारी राज्यपाल। बसपा प्रमुख मायावती ने भाजपा से समर्थन वापस वापस ले लिया। इस तरह कल्याण सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सदन में बहुमत साबित करने के लिए 48 घंटे का समय दिया। कल्याण सिंह ने सदन में बहमुत साबित कर दिया। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि कल्याण सिंह ने जोड़-तोड़ और येन-केन तरीकों का प्रयोग किया। प्रधानमंत्री गुजराल ने राज्यपाल की सिफारिश पर उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास भेजा। लेकिन राष्ट्रपति नारायणन ने इसे वापस कर दिया।  उसी तरह बिहार में उन दिनों राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं और सुंदर सिंह भंडारी राज्यपाल थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में बिहार में आपराधिक घटनाएं अधिक हो रही थीं। इसे लेकर राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी ने केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश भेज दी। राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव को वापस कर दिया। उन्होंने भाजपा शासित प्रदेशों में हो रहे अपराध और बिहार के अपराध पर एक रिपोर्ट तैयार की। आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा शासित प्रदेशों में अपराध की दर बिहार से अधिक थी। इसलिए राष्ट्रपति के आर नारायणन ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी. 

     एक तीसरा वाकया कारगिल युद्ध के समय का है। लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो चुका था। इसलिए लोकसभा भंग कर दी गई थी। कारगिल युद्ध पर चर्चा के लिए राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को राज्यसभा का विशेष सत्र बुलाने को कहा। राष्ट्रपति नारायणन ने वाजपेयी जी को याद दिलाया कि 1962 की भारत-चीन की लड़ाई के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। उस वक्त भी लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो चुका था। तब बतौर सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन से राज्यसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के पास जब 1955, में ‘हिंदू कोड रिफॉर्म बिल’ आया तो उन्होंने इसे वापस भेज दिया। 

          हमारे देश का राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रधान होता है और कार्यपालिका की जितनी भी शक्तियां होती हैं वह सभी राष्ट्रपति में निहित होती है लेकिन इनमें से अधिकतर शक्तियों का उपयोग राष्ट्रपति नहीं करते हैं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री और उनकी मंत्री परिषद के द्वारा इनमें से अधिकतर शक्तियों का उपयोग किया जाता है लेकिन इसके बावजूद भी राष्ट्रपति के पास कुछ अपनी शक्तियां होती हैं जो कि राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करती है और इसके लिए उन्हें कोई सलाह नहीं दे सकता जैसे कि अगर लोकसभा में किसी राजनीतिक दल या गठबंधन को बहुमत प्राप्त ना होने पर राष्ट्रपति अपने विवेक के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं और इसी तरह से प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति में भी भारत के राष्ट्रपति द्वारा स्वविवेक का इस्तेमाल कर लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य (सबसे लम्बे समय तक सांसद रहने के आधार पर) की नियुक्ति इस पद पर की जाती रही, जो कि धीरे धीरे एक परंपरा बन गई.  ऐसे में निश्चित रूप से भतृहरि महताब के नाम का प्रस्ताव मौजूदा सत्तारुढ़ पार्टी /गठबंधन एनडीए या बीजेपी की ओर से गया होगा, जिसे माननीय राष्ट्रपति द्वारा प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर भारतीय परंपराओं को तोड़ गया है जबकि यहां उन्हें अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए लोकसभा सदस्य की वरिष्ठता को सम्मान देना चाहिए था.




शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

टिप्पणियाँ

Anita ने कहा…
विचारणीय पोस्ट
Shalini kaushik ने कहा…
आभार अनीता जी 🙏🙏

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