''आखिर मुसलमानों में ऐसा क्या है ?''
''आखिर मुसलमानों में ऐसा क्या है ?''
भारत विभिन्न धर्म-संस्कृतियों का देश है ,हिन्दू,मुसलमान ,सिख ,ईसाई,जैन ,बौद्ध आदि,आदि विभिन्न धर्मावलम्बी इस देश में बसे हैं और जैसे ये देश उन्हें अपनी संतान मानता है वैसे ही ये भी उसे अपनी माँ का स्थान देते हैं ,जैसे ये देश उनके पालन पोषण में कोई कोताही नहीं बरतता वैसे ही ये सभी इस देश पर अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार रहते हैं .शहीद भगत सिंग ,अशफाक उल्लाह खान ,लाला लाजपत राय आदि आदि ऐसे बहुत से नाम हैं जिन्होंने इस देश के लिए कुर्बानी देने में एक क्षण भी नहीं लगाया .
जहाँ एक तरफ श्याम लाल गुप्त''पार्षद ''कहते हैं -
''विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,झंडा ऊँचा रहे हमारा ,''
वहीँ मुहम्मद इकबाल के दिल से भी यही शब्द निकलते हैं -
''सारे जहाँ से अच्छा ,हिन्दोस्तां हमारा .''
ऐसे देश में जहाँ हिन्दू धर्मावलम्बियों का वर्चस्व है और वे बहुसंख्यक भी हैं और अन्य सभी धर्मावलम्बी यहाँ अल्पसंख्यक श्रेणी में हैं ,मुसलमान ,जैन बौद्ध आदि अदि किन्तु यहाँ अल्पसंख्यक बहुसंख्यक से भी पृथक एक श्रेणी है ''विशेष दर्जा ''और वह केवल प्राप्त है मुसलमानों को ,और यही वे धर्मावलम्बी हैं जो किसी भी चुनाव में सत्ता पलटने की ताकत रखते हैं .मात्र13% होने पर और यही वह धर्म है जिसके साथ जुड़ने पर धर्म निरपेक्ष की छवि मिलती है यहाँ किसी भी दल को और यही वह धर्म है जिसके बारे में यहाँ अल्पसंख्यक के नाम पर महत्वपूर्ण योजनायें चलायी जाती हैं जबकि इससे भी अल्पसंख्यक धर्म यहाँ मौजूद हैं ये आप इस सूची में देख सकते हैं -
According to 2001 Population Census
Religion Population (%)
Hindus 827,578,868 80.5
Muslims 138,188,240 13.4
Christians 24,080,016 2.3
Sikhs 19,215,730 1.9
Buddhists 7,955,207 0.8
Jains 4,225,053 0.4
Other Religions & Persuasions 6,639,626 0.6
Religion not Stated 727,588 0.1
Total 1,028,610,328 100.0
किन्तु ये उतनी मजबूत शक्ति नहीं रखते जितनी मजबूत शक्ति यह धर्म अपने अस्तित्व को लेकर रखता है .
मुजफ्फरनगर में दंगे होते हैं मुख्यमंत्री जनता के हाल पूछने ,देखने आते है और मिलते हैं केवल मुसलमानों से ,जो अपने घरों से भागकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं इनसे सहानुभूति सही है किन्तु क्या उनसे कोई सहानुभूति नहीं जिनकी ट्रैक्टर-ट्रोलियाँ गंगनहर में फैंक दी गयी ,लाशें तक बहा दी गयी और जिसके बारे में क्षेत्र के सभी लोगों का कहना था कि यह हमला नक्सली हमले से प्रेरित था और जिसमे गायब लोगों का अभी तक कुछ पता नहीं क्या उनके परिजनों को सांत्वना देने की कोई आवश्यकता नहीं थी सही है क्योंकि जब यही दिखाया जा रहा हो कि मात्र मुसलमान ही दंगे से पीड़ित हैं तब यही होना था जबकि इस दंगे की शुरुआत जहाँ से हुई अर्थात कवाल गाँव से वहां इसमें मरने वालों में एक मुसलमान व् दो हिन्दू थे .
प्रधानमंत्री आते हैं ,मिलते किससे हैं मात्र मुसलमानों से क्योंकि वे घर छोड़कर भाग खड़े हुए हैं ,उनसे क्यूं नहीं जो दबे सहमे अपने घरों में ही दंगों की आंच में झुलस रहे हैं .
भाजपा स्वयं की धर्म निरपेक्ष छवि दिखाना चाहती है और हिन्दुओं की अगुवा भी बने रहना .गुजरात में हुए दंगों के नाम पर हिन्दुओं की शक्तिशाली छवि दिखा हिन्दुओं का खैरख्वाह बनाकर नरेन्द्र मोदी को २०१४ के चुनावों का नेतृत्व सौंपती है किन्तु इस पर भी आशंका से घिरी स्वयं मुसलमानों की ही शरण लेती है .कहीं नहीं दिखाया जाता कि मोदी हिन्दुओं के साथ .उनकी सद्भावना भी तभी दिखती है जब वे मुसलमानों के बीच खड़े होते हैं और उन्हीं के दल के शिवराज सिंह चौहान जो की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं मुस्लिम मतों के लिए मोदी से दूरी बनाते हैं और जन आशीर्वाद यात्रा से मोदी को आउट करते हैं .
समझ में नहीं आता कि आखिर मुसलमानों में ऐसा क्या है जो सभी दल इनके आकर्षण में बंधे हैं और इनका अपने दल से जुड़ना ही सत्ता के द्वार में प्रवेश के लिए आवश्यक मानते हैं .यदि हम अपने आस-पास देखें तो शायद इसका उत्तर पा सकते हैं और जहाँ तक दिखता है वहां तक इसका एक ही जवाब है ''कट्टरता ''मुसलमानों की अपने धर्म के प्रति कट्टरता ही इन्हें वह मजबूत दर्जा दिल रही है जिसकी इस धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए .
आज भी ''इस्लाम खतरे में है ''का नारा सारी विशेषताओं को दरकिनार कर मुसलमान उम्मीदवार को विजय दिला ले जाता है .आज भी यही कट्टरता कई योग्य अभ्यर्थियों के होते हुए इंटरव्यू पैनल में मुसलमान अधिकारी द्वारा मुसलमान को ही वरीयता दिलाती है ,यही कट्टरता गरीबी बेरोजगारी के भंवर में फंसे अन्य अल्पसंख्यकों के समक्ष मुसलमान लड़कियों के किये ही ''हमारी बेटी उसका कल ''जैसी योजनायें शुरू कराती है और यही कट्टरता है जो अन्य धर्मावलम्बियों में असुरक्षा की भावना भर मुजफ्फरनगर जैसे दंगों की भूमिका बनाती है .
यही कट्टरता है जो इनसे एकजुटता से वोट दिलाती है और इसकी यही खूबी राजनीतिक दलों को इसके करीब लाती है और नहीं दिखता है इन्हें कि इसका जन्म कहाँ से हुआ है तो ध्यान दीजिये कि यह उपजी है असुरक्षा की भावना से जो इनमे इन्हीं राजनीतिक दलों द्वारा भरी जाती है जो आपसी प्यार सद्भावना की जगह इन्हें हिन्दू-मुस्लिम सिख इसाई में बाँटने में ही अपना फायदा या हित देखते हैं .
पहले असुरक्षा और फिर कट्टरता के फेर में इन्हें उलझाकर राजनीतिक दल इनके प्रति सद्भाव का नाटक खेलते हैं और इन्हें इस्तेमाल कर सत्ता की सीढ़ी तैयार करते हैं क्योंकि जिस फेर में ये इन्हें उलझाते हैं उसमे उलझ भी केवल ये ही सकते हैं क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने इनके दिमाग में कहीं थोडा स्थान पाकिस्तान के लिए भी रख छोड़ा है और इससे इन्हें भी लगता है कि हम यहाँ पराये हैं .जबकि ये तो इनकी धरती है इनकी माँ है जो अलग हो गया वह इसका मात्र एक हिस्सा था वैसे ही जैसे किसी संतान का माँ से अलग हो जाना अन्य संतान के मन में तो वैर भर सकता है किन्तु माँ के लिए वह उसकी संतान ही रहता है इसलिए भारत देश इन्हें कैसे अलग मान सकता है किन्तु ये हमारे नेतागण इनकी इसी कमजोर नस को पकड़ते हैं और इनमे वैर के बीज बोते हैं .अगर वास्तव में कोई दल धर्मनिरपेक्ष है ,सद्भाव रखने वाला है तो वह इनमे प्यार जगायेगा ,विश्वास जगायेगा और केवल हिन्दू मुस्लिम नहीं बल्कि हर ज़रूरतमंद के काम आएगा और उसके कंधे से कन्धा मिलकर उसे सफलता की डगर पर अपने साथ ले जायेगा क्योंकि सच्चाई भी तो यही है -
''खुदा किसी का राम किसी का बाँट न इनको पाले में ,
तू मस्जिद में पूजा कर ,मैं सिजदा करूँ शिवाले में ,
जिस धारा में प्यार मुहब्बत वह धारा ही गंगा है ,
और अन्यथा क्या अंतर वह यहाँ गिरी या नाले में .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
भारत विभिन्न धर्म-संस्कृतियों का देश है ,हिन्दू,मुसलमान ,सिख ,ईसाई,जैन ,बौद्ध आदि,आदि विभिन्न धर्मावलम्बी इस देश में बसे हैं और जैसे ये देश उन्हें अपनी संतान मानता है वैसे ही ये भी उसे अपनी माँ का स्थान देते हैं ,जैसे ये देश उनके पालन पोषण में कोई कोताही नहीं बरतता वैसे ही ये सभी इस देश पर अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार रहते हैं .शहीद भगत सिंग ,अशफाक उल्लाह खान ,लाला लाजपत राय आदि आदि ऐसे बहुत से नाम हैं जिन्होंने इस देश के लिए कुर्बानी देने में एक क्षण भी नहीं लगाया .
जहाँ एक तरफ श्याम लाल गुप्त''पार्षद ''कहते हैं -
''विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,झंडा ऊँचा रहे हमारा ,''
वहीँ मुहम्मद इकबाल के दिल से भी यही शब्द निकलते हैं -
''सारे जहाँ से अच्छा ,हिन्दोस्तां हमारा .''
ऐसे देश में जहाँ हिन्दू धर्मावलम्बियों का वर्चस्व है और वे बहुसंख्यक भी हैं और अन्य सभी धर्मावलम्बी यहाँ अल्पसंख्यक श्रेणी में हैं ,मुसलमान ,जैन बौद्ध आदि अदि किन्तु यहाँ अल्पसंख्यक बहुसंख्यक से भी पृथक एक श्रेणी है ''विशेष दर्जा ''और वह केवल प्राप्त है मुसलमानों को ,और यही वे धर्मावलम्बी हैं जो किसी भी चुनाव में सत्ता पलटने की ताकत रखते हैं .मात्र13% होने पर और यही वह धर्म है जिसके साथ जुड़ने पर धर्म निरपेक्ष की छवि मिलती है यहाँ किसी भी दल को और यही वह धर्म है जिसके बारे में यहाँ अल्पसंख्यक के नाम पर महत्वपूर्ण योजनायें चलायी जाती हैं जबकि इससे भी अल्पसंख्यक धर्म यहाँ मौजूद हैं ये आप इस सूची में देख सकते हैं -
According to 2001 Population Census
Religion Population (%)
Hindus 827,578,868 80.5
Muslims 138,188,240 13.4
Christians 24,080,016 2.3
Sikhs 19,215,730 1.9
Buddhists 7,955,207 0.8
Jains 4,225,053 0.4
Other Religions & Persuasions 6,639,626 0.6
Religion not Stated 727,588 0.1
Total 1,028,610,328 100.0
किन्तु ये उतनी मजबूत शक्ति नहीं रखते जितनी मजबूत शक्ति यह धर्म अपने अस्तित्व को लेकर रखता है .
मुजफ्फरनगर में दंगे होते हैं मुख्यमंत्री जनता के हाल पूछने ,देखने आते है और मिलते हैं केवल मुसलमानों से ,जो अपने घरों से भागकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं इनसे सहानुभूति सही है किन्तु क्या उनसे कोई सहानुभूति नहीं जिनकी ट्रैक्टर-ट्रोलियाँ गंगनहर में फैंक दी गयी ,लाशें तक बहा दी गयी और जिसके बारे में क्षेत्र के सभी लोगों का कहना था कि यह हमला नक्सली हमले से प्रेरित था और जिसमे गायब लोगों का अभी तक कुछ पता नहीं क्या उनके परिजनों को सांत्वना देने की कोई आवश्यकता नहीं थी सही है क्योंकि जब यही दिखाया जा रहा हो कि मात्र मुसलमान ही दंगे से पीड़ित हैं तब यही होना था जबकि इस दंगे की शुरुआत जहाँ से हुई अर्थात कवाल गाँव से वहां इसमें मरने वालों में एक मुसलमान व् दो हिन्दू थे .
प्रधानमंत्री आते हैं ,मिलते किससे हैं मात्र मुसलमानों से क्योंकि वे घर छोड़कर भाग खड़े हुए हैं ,उनसे क्यूं नहीं जो दबे सहमे अपने घरों में ही दंगों की आंच में झुलस रहे हैं .
भाजपा स्वयं की धर्म निरपेक्ष छवि दिखाना चाहती है और हिन्दुओं की अगुवा भी बने रहना .गुजरात में हुए दंगों के नाम पर हिन्दुओं की शक्तिशाली छवि दिखा हिन्दुओं का खैरख्वाह बनाकर नरेन्द्र मोदी को २०१४ के चुनावों का नेतृत्व सौंपती है किन्तु इस पर भी आशंका से घिरी स्वयं मुसलमानों की ही शरण लेती है .कहीं नहीं दिखाया जाता कि मोदी हिन्दुओं के साथ .उनकी सद्भावना भी तभी दिखती है जब वे मुसलमानों के बीच खड़े होते हैं और उन्हीं के दल के शिवराज सिंह चौहान जो की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं मुस्लिम मतों के लिए मोदी से दूरी बनाते हैं और जन आशीर्वाद यात्रा से मोदी को आउट करते हैं .
समझ में नहीं आता कि आखिर मुसलमानों में ऐसा क्या है जो सभी दल इनके आकर्षण में बंधे हैं और इनका अपने दल से जुड़ना ही सत्ता के द्वार में प्रवेश के लिए आवश्यक मानते हैं .यदि हम अपने आस-पास देखें तो शायद इसका उत्तर पा सकते हैं और जहाँ तक दिखता है वहां तक इसका एक ही जवाब है ''कट्टरता ''मुसलमानों की अपने धर्म के प्रति कट्टरता ही इन्हें वह मजबूत दर्जा दिल रही है जिसकी इस धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए .
आज भी ''इस्लाम खतरे में है ''का नारा सारी विशेषताओं को दरकिनार कर मुसलमान उम्मीदवार को विजय दिला ले जाता है .आज भी यही कट्टरता कई योग्य अभ्यर्थियों के होते हुए इंटरव्यू पैनल में मुसलमान अधिकारी द्वारा मुसलमान को ही वरीयता दिलाती है ,यही कट्टरता गरीबी बेरोजगारी के भंवर में फंसे अन्य अल्पसंख्यकों के समक्ष मुसलमान लड़कियों के किये ही ''हमारी बेटी उसका कल ''जैसी योजनायें शुरू कराती है और यही कट्टरता है जो अन्य धर्मावलम्बियों में असुरक्षा की भावना भर मुजफ्फरनगर जैसे दंगों की भूमिका बनाती है .
यही कट्टरता है जो इनसे एकजुटता से वोट दिलाती है और इसकी यही खूबी राजनीतिक दलों को इसके करीब लाती है और नहीं दिखता है इन्हें कि इसका जन्म कहाँ से हुआ है तो ध्यान दीजिये कि यह उपजी है असुरक्षा की भावना से जो इनमे इन्हीं राजनीतिक दलों द्वारा भरी जाती है जो आपसी प्यार सद्भावना की जगह इन्हें हिन्दू-मुस्लिम सिख इसाई में बाँटने में ही अपना फायदा या हित देखते हैं .
पहले असुरक्षा और फिर कट्टरता के फेर में इन्हें उलझाकर राजनीतिक दल इनके प्रति सद्भाव का नाटक खेलते हैं और इन्हें इस्तेमाल कर सत्ता की सीढ़ी तैयार करते हैं क्योंकि जिस फेर में ये इन्हें उलझाते हैं उसमे उलझ भी केवल ये ही सकते हैं क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने इनके दिमाग में कहीं थोडा स्थान पाकिस्तान के लिए भी रख छोड़ा है और इससे इन्हें भी लगता है कि हम यहाँ पराये हैं .जबकि ये तो इनकी धरती है इनकी माँ है जो अलग हो गया वह इसका मात्र एक हिस्सा था वैसे ही जैसे किसी संतान का माँ से अलग हो जाना अन्य संतान के मन में तो वैर भर सकता है किन्तु माँ के लिए वह उसकी संतान ही रहता है इसलिए भारत देश इन्हें कैसे अलग मान सकता है किन्तु ये हमारे नेतागण इनकी इसी कमजोर नस को पकड़ते हैं और इनमे वैर के बीज बोते हैं .अगर वास्तव में कोई दल धर्मनिरपेक्ष है ,सद्भाव रखने वाला है तो वह इनमे प्यार जगायेगा ,विश्वास जगायेगा और केवल हिन्दू मुस्लिम नहीं बल्कि हर ज़रूरतमंद के काम आएगा और उसके कंधे से कन्धा मिलकर उसे सफलता की डगर पर अपने साथ ले जायेगा क्योंकि सच्चाई भी तो यही है -
''खुदा किसी का राम किसी का बाँट न इनको पाले में ,
तू मस्जिद में पूजा कर ,मैं सिजदा करूँ शिवाले में ,
जिस धारा में प्यार मुहब्बत वह धारा ही गंगा है ,
और अन्यथा क्या अंतर वह यहाँ गिरी या नाले में .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
बेबाक विश्लेषण-
आभार आदरणीया-
RECENT POST : हल निकलेगा
सटीक आलेख !!
सब वोट की राजनीति है ...